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पारिवारिक समस्याओं के बीच शांति कैसे मिलेगी? 00:05:29 पारिवारिक समस्याओं के बीच शांति कैसे मिलेगी? Video Duration : 00:05:29 आप क्या योगदान करते हैं, अपनी फैमिली की हैप्पीनेस के लिए ?

प्रश्नकर्ता : सर! मैं पूछना चाहता हूं कि परिवार की समस्याओं के साथ शांति कैसे लाई जा सके। चूंकि हमारी जिम्मेदारी परिवार के प्रति बहुत होती है और कोशिश भी करते हैं, फिर भी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते। तो कृपया मार्गदर्शन करें!

 

प्रेम रावत जी : देखिए! जहां तक परिवार की बात है — मैं एक चीज आपको याद दिलाऊं कि — आप जानते हैं कि चेन क्या होती है। जैसे बाइसिकिल की चेन होती है। तो उसमें छोटे-छोटे, छोटे-छोटे लिंक्स होते हैं। आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि एक — अगर उसमें सौ लिंक भी हैं और एक लिंक निकाल दिया जाए और 99 हैं तो वो चेन, चेन नहीं रहेगी। अब उसका वो लिंक टूट गया है।

 

सबसे पहले आप यह मालूम करिए अपने आप में कि आप क्या योगदान करते हैं, अपनी फैमिली की happiness के लिए ?

 

मैं खाने की बात नहीं कर रहा हूं, मैं घर की बात नहीं कर रहा हूं! देखिए! फैमिली एक ऐसी चीज है कि वो भूखे हैं, आप हैं, प्यार है तो वो भूखे भी चलेगा, फैमिली रहेगी! बारिश भी हो रही है, छत नहीं है, फैमिली है, आप सब साथ हैं, तो भी चलेगा। फैमिली चीज ही एक ऐसी है। तो आप अपनी फैमिली को क्या योगदान कर रहे हैं ? आप उनके problems solver बन गए हैं या अभी भी आप वो फैमिली के हिस्से हैं, जो कि उस फैमिली में सुकून, चैन, happiness, joy ला सकते हैं। और वो, जब आपकी फैमिली है तो वो रहेगा।

 

अब लोग क्या हैं! लोगों को फैमिली में भी — अभी ये बात मेरे से दो-तीन साल पहले किसी ने पूछी थी कि हमारे फैमिली में ये सब चुगली होती रहती है, ये सबकुछ होता रहता है और disharmony होती रहती है।

 

तो मैंने कहा कि "आपका क्या योगदान है उसमें ?"

 

तो पहले तो उनको लगा कि "ऐं ? मेरा क्या योगदान है ?" फिर उनको समझ में आया कि मैं क्या कह रहा हूं और उनका वो योगदान था।

 

देखिए! आप घर आते हैं अपनी नौकरी से। थके-मांदे आते हैं। और आपको ये है कि थोड़ा-सा चैन मिल जाए। और घर आते हैं तो कई बार ये होता है कि "मेरे को ये चाहिए, पापा! ये चाहिए, पापा! ये चाहिए, मेरे को ये कर दो! मेरे को ये कर दो, ये कर दो!" ये एक दिन में नहीं बदलेगी बात। क्योंकि ये माहौल आपने बनाया, इसमें मदद किया आपने इस माहौल को बनाने में। क्योंकि जब वो छोटे ही छोटे, छोटे, छोटे, छोटे थे — "वो! बहुत प्यारा है! हां! मैं ऑफिस से आया हूं, ये है, वो है!" पर धीरे-धीरे वो बड़े हो रहे हैं। ये तो वही वाली बात है, जैसे शेर पाल रखा है न ? जब वो छोटा है तो म्याऊं-म्याऊं करता है। और जब बड़ा हो जाता है तो वही शेर "हाऽऽऽऽऽऽ' करके आता है। इस माहौल को भी आप बदल सकते हैं। इस माहौल को भी आप बदल सकते हैं कि "आओ! बैठो! दो बात करो! दो बात! डिमांड नहीं।"

 

देखिए! अब मैं यहां इसलिए नहीं आया हूं कि मैं दुनिया की सारी समस्याएं solve करूं। परंतु सबसे बड़ी चक्कर — सबसे बड़ा चक्कर क्या है इस दुनिया के अंदर आप जानते हैं ? लोग एक-दूसरे की बात नहीं सुनते हैं। लोग एक-दूसरे की बात नहीं सुनते हैं। विद्यार्थी, टीचर की बात नहीं सुनते हैं। और कई बार — विद्यार्थी तो यही कहेंगे, टीचर हमारी बात नहीं सुनते हैं। नागरिक politician की बात नहीं सुनते हैं, politician नागरिक की बात नहीं सुनते हैं। पुलिस वाले यही कहेंगे, वो हमारी बात नहीं सुनते हैं और नागरिक यही कहेंगे, वो हमारी बात नहीं सुनते हैं। दो बात सुनने के लिए क्या लगेगा ? कुछ नहीं। कुछ नहीं! कुछ नहीं! कुछ नहीं। परंतु दो बात सुन लीजिए अपनी फैमिली से। और मैं सच कहता हूं कि वो दो बात अगर आप सुनना शुरू करें तो वो एक दिन तीन शब्दों में बदल जायेगी —  I love you!

बलवान कौन (ऑडियो) 00:09:28 बलवान कौन (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:28

प्रेम रावत:

एक आदमी था। बहुत मेहनत करता था, पत्थर का काम करता था। वो हर रोज अपने घर से चल के पहाड़ पर जाता था। एक बड़ा-सा टुकड़ा जो वह अपने घर तक ले जा सके, इतना बड़ा पत्थर का तोड़ता था, घर ले जाता था और उसको फिर छेनी से, हथौड़े से उसकी तरह-तरह की चीजें बनाता था — मूर्ति बनाता था, सिलबट्टा बनाता था — ये सारी चीजें बनाता था।

सारे दिन उसको काम करना पड़ता था। धूल उड़ती थी, पसीने का काम था, मेहनत का काम था। हर रोज, चाहे इतवार हो, चाहे शनिचर हो, चाहे शुक्र हो, कोई भी त्योहार हो, उसको तो जाना था। क्योंकि जो कुछ भी थोड़ा-बहुत बनाकर के वो बाजार में बेचता था, उससे उसका पेट चलता था। अब उसको ऐसा लगता था हमेशा कि जो उसके साथ हो रहा है, वो ठीक नहीं है कि वह शक्तिशाली क्यों नहीं है ? वह इतना गरीब क्यों है ? शक्तिशाली होना चाहिए उसको ।

एक दिन वो सड़क से जा रहा था। एक बहुत बढ़िया आलीशान कोठी थी, वहां पार्टी हो रही थी। तो उसने रुककर के, दीवाल के ऊपर से देखा तो उस घर में — बहुत रईस आदमी का घर था वो। उसके नौकर-चाकर और उसमें उसके गेस्ट आ रखे थे, पार्टी हो रही थी। सब बढ़िया चल रहा था। लोग उसको बधाई दे रहे थे। उसको लगा कि ‘मेरे को तो ये चाहिए!’

तो वो भगवान की तरफ उसने चेहरा किया, ‘‘हे भगवान! मेरे को ऐसा क्यों नहीं बनाया ? ऐसा बना दे!’’

उस दिन भगवान अच्छे मूड में थे। देख रहे थे नीचे की तरफ, उसकी तरफ! चुटकी बजाई और वो रईस बन गया। अब रईस बन गया, उसके नौकर-चाकर सब ‘‘जी हुजूर! जी हुजूर! जी हुजूर!’’ और उसके दोस्त आ रहे हैं, उससे मिलना चाहते हैं। बड़ा ही वो ‘जरूरी आदमी’ बन गया। उसको अच्छा लगा कि ‘‘हां! ये है न जिंदगी! वो पत्थर वाली जिंदगी नहीं, जहां हर रोज पत्थर घसीटना पड़ता है। हर रोज काम करना पड़ता है। अब मेरी कितनी इज्जत है। मैं कितना शक्तिमान हूं।’’

ऐसे-ऐसे करके कुछ दिन निकल गए। तो एक दिन काफी आवाज आ रही थी सड़क से तो उसने जाकर देखा तो वहां सब — सारे शहर के अमीर लोग वहां खड़े हुए और जो आ रहा है, जैसे ही जैसे उसकी सवारी आए, सभी लोग उसके सामने झुक रहे हैं।

उसने पूछा किसी से कि ‘‘ये कौन है, जो मेरे से भी ज्यादा शक्तिशाली है ?’’

तो कहा ‘‘ये राजा है।’’

‘‘राजा तो मेरे से भी शक्तिशाली है! हे भगवान! मुझे राजा बना दे!’’

उस दिन भी भगवान अच्छे मूड में थे और उसकी तरफ देखा, चुटकी बजाई और वो राजा बन गया। अब राजा बन गया तो उसको लगा कि ‘‘यह तो बहुत ही बढ़िया है! अब यहां तो सभी लोग मेरे को — मेरे सामने झुकते हैं। कितनी मेरी शान है!’’

ऐसे करते-करते कुछ दिन बीते तो एक दिन वो सबेरे-सबेरे उठकर के अपने बरांडे में, बाहर खड़ा-खड़ा चाय पी रहा था और उसने देखा कि इतना बड़ा सूरज उगने लगा, उदय होने लगा। और जैसे सूरज उदय होने लगा, सारी चिड़ियां, सारे जानवर जगने लगे, लोग उठने लगे। सबकुछ होने लगा।

उसने कहा, ‘‘बाप रे बाप! ये सूरज कितना बलवान है! ये तो मेरे से भी ज्यादा बलवान है। इसके उदय होने से सारी पृथ्वी जागने लगी है। हे भगवान! मेरे को सूरज बना दो!’’

उस दिन भी भगवान कुछ अच्छे मूड में थे, सूरज बना दिया। अब वो जहां जाए, चमके और लोग उसकी तरफ देखें और सारी सृष्टि, सारी चिड़िया, सारे जानवर — जब वो उदय हो, तब वो चलने लगें। लोग उठने लगें। ‘‘यह तो बहुत ही बढ़िया है!’’

एक दिन वो आकाश में चमक रहा था। चमक रहा था। जहां देखो, चमक रहा था। देखा उसने पृथ्वी पर एक जगह थी, जहां वो चमक नहीं पा रहा था। पता नहीं क्या है ये ? मेरी चमक वहां तक क्यों नहीं पहुंच रही है ? तो उसने देखा, एक बादल! अब वो जितनी कोशिश करे उस बादल से चमकने की, वो चमका ही नहीं, उसकी रोशनी पृथ्वी तक पहुंचे ही नहीं।

‘‘ये बादल तो सूरज से भी बलवान है! ये तो सूरज को भी रोक देता है! हे भगवान! मुझे बादल बना दे!’’

अब वो बादल बन गया। और जहां सूरज चमक रहा है, वहां वो आए और सूरज की रोशनी को रोक दे। ऐसा करते-करते, करते-करते उसको लगा कि, ‘‘मैं कितना बलवान हो गया हूं!’’

एक दिन वो अपने बलवानपने पर खूब सोच रहा था, उसके बारे में खुश हो रहा था कि उसने देखा कि वो चल रहा है। एक जगह नहीं है। चल रहा है वो! ‘‘बादल को कौन चला रहा है ? बादल को कौन चला रहा है ? मैं तो सबसे शक्तिमान हूं! मैं तो सूरज से शक्तिमान हूं। जो राजा से शक्तिमान है, जो साहूकार से शक्तिमान है। कौन ऐसी चीज है, जो इस बादल को चला रही है ?’’

उसने देखा, तो हवा! हवा उस बादल को चला रही है। ‘‘हवा मेरे से भी शक्तिमान है ? हवा तो मेरे से भी ज्यादा शक्तिमान है! मैं बादल हूं। बादल सूरज से भी ज्यादा शक्तिमान है। सूरज राजा से भी ज्यादा शक्तिमान है। और राजा साहूकार से ज्यादा शक्तिमान है। और ये हवा तो मेरे से भी ज्यादा शक्तिमान है। हे भगवान! मेरे को हवा बना दे!’’

हवा बन गया वो। जहां जाए, जहां जाए, बहे। सारी टहनियां उसके आगे हिलें, धूल चले, सबकुछ हो रहा है। जा रहा है, जा रहा है, बह रहा है। कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। बह रहा है, बह रहा है। खूब गति से बह रहा है। बादलों को इधर से उधर कर रहा है। सबकुछ कर रहा है। चल रहा है, चल रहा है। एक दिन आकर के धड़ाक — रुक गया!

‘‘हवा को किसने रोक दिया ? हवा, जो बादल से ज्यादा बलवान है। बादल, जो सूरज से ज्यादा बलवान है। सूरज, जो राजा से ज्यादा बलवान है। राजा, जो साहूकार से ज्यादा बलवान है। किस चीज ने रोक दिया ? देखा तो पहाड़! अब जितनी भी कोशिश करना चाहे हवा पहाड़ के पार नहीं हो सकती।’’

‘‘हे भगवान! मेरे को पहाड़ बना दे!’’ {चुटकी बजाई} पहाड़ बन गया।

सचमुच में सबसे बलवान! खड़ा-खड़ा वहां, ‘‘मैं अब सबसे बलवान हूं!’’

एक दिन वह अपनी शक्ति पर खूब गौर कर रहा था। नीचे से एक आवाज आयी और उसको लगा कि कोई इस पहाड़ को काटने में लगा हुआ है। उसने कहा, ‘‘इस पहाड़ से कौन बलवान हो सकता है ? ज्यादा बलवान, जो पहाड़ को काट रहा है ? क्योंकि पहाड़ हवा से ज्यादा बलवान है। हवा बादल से ज्यादा बलवान है। बादल सूरज से ज्यादा बलवान है। सूरज राजा से ज्यादा बलवान है। राजा साहूकार से ज्यादा बलवान है। पहाड़ तो सबसे बलवान है। फिर उसको कौन काट रहा है ? इससे बलवान कौन हो सकता है ?’’

नीचे देखा तो उसी की तरह एक पत्थर को काटने वाला — उसी की तरह एक पत्थर को काटने वाला उस पहाड़ को काट रहा था। तो सबसे बलवान तो वो पहले से ही था पर उसको नहीं मालूम था कि वो बलवान है। पर वो था। ठीक उसी प्रकार से, तुम्हारे जीवन में सब आशीर्वाद हैं।

सपने और हकीकत (ऑडियो) 00:09:34 सपने और हकीकत (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:34 मेरे को आनंद से मतलब है, मेरे को शांति से मतलब है, मेरे को संतोष से मतलब है। मेर...

प्रेम रावत:

एक बार एक राजा ने अपने माली को कहा कि महल के पास यह जगह है और यहां मैं चाहता हूं कि बहुत सुंदर एक बाग लगाओ। तो महल ऊपर पहाड़ी पर बना हुआ था। रोज माली एक बांस बड़ा और आगे एक मटका और पीछे एक मटका, उसको लेकर नीचे रास्ते से जाता था और जो नीचे, पहाड़ के नीचे जो नदी थी, उससे पानी, अपने मटके में भर के और फिर ऊपर तक, अपने बाग तक उसको ले जाता था। ऐसे करते-करते, करते-करते, काफी समय बीता। हरियाली होने लगी बाग में। फूल लगने लगे। बाग अच्छा लगने लगा।

एक दिन माली ने जैसे ही मटके को रखा तो एक मटका, जो पीछे वाला मटका था, उसमें छेद हो गया। फिर भी माली ने उस मटके को फेंका नहीं। और न ही अपने बांस से निकाला। वो रोज उन्हीं दो मटकों को नीचे तक ले जाता था, पानी से भरता था, फिर ऊपर लाता था। चलता रहा ये।

एक दिन आगे वाला मटका, पीछे वाले मटके से बोलता है, ‘‘तू किसी काम का नहीं रहा! तेरे में तो छेद है।’’

जो पीछे वाला मटका था, उसको अहसास हुआ कि सचमुच में किसी काम का नहीं हूं मैं।

आगे वाले मटके ने कहा कि ‘‘ये माली इतनी मेहनत करके नीचे ले जाता है, दोनों मटकों को भरता है और जब तक वो ऊपर, इस बाग में पहुंचता है, तेरे में तो एक बूंद पानी नहीं रहता है। और ये जो बाग — हरियाली इस बाग की जो दिखाई दे रही है, वो तो सिर्फ मेरे कारण है। तेरे कारण तो है नहीं! तू तो किसी काम का नहीं है।’’

मटके को बड़ा बुरा लगा। एक दिन पीछे वाला जो मटका था, वो रोने लगा।

माली आया। माली ने दोनों मटकों को देखा। पीछे वाले मटके को देखकर कहता है, ‘‘तू रो क्यों रहा है ?’’

कहा, ‘‘मैं किसी काम का नहीं रहा। तुम इतनी मेहनत करते हो, नीचे दोनों मटकों को भरते हो, ऊपर लाते हो और जबतक ऊपर लाते हो, मेरे में तो एक बूंद पानी नहीं रहता है। मैं तो किसी काम का नहीं।’’

माली ने कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है। मुझे मालूम है, जिस दिन तेरे में छेद हुआ। मुझे मालूम है। पर मैं तेरे को फिर भी भरता रहा और ऊपर तक लाता रहा। इस बाग में जो हरियाली है, वो तो आगे वाले मटके की वजह से है। परंतु तैंने देखा, जो रास्ता नदी से इस बाग तक आता है, उसमें कितनी हरियाली है! और वो तेरी वजह से है। इस बाग में सब कोई नहीं आ सकता। और उस रोड पर सब लोग आते हैं, जाते हैं और वो उन फूलों को देखकर खुश होते हैं। आगे वाला मटका तो एक ही आदमी को खुश करता है और तू दिन में हजारों लोगों को खुश करता है।’’

क्योंकि सोचने की बात है हम अपने को अभागा समझते हैं। क्योंकि हमारी जो धारणाएं हैं, हमारी जो सोच है — ऐसा होना चाहिए। हमारे जो सपने हैं, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए। हम ये चाहते हैं, हम ये चाहते हैं, ये साकार नहीं होते हैं और जब साकार नहीं होते हैं तो हमको दुःख होता है। हम कहते हैं, ‘‘हमारे साथ ये क्यों हो रहा है ? उसके साथ ये क्यों हो रहा है ? उसके साथ सबकुछ अच्छा है, हमारे साथ सबकुछ बुरा है।’’ अपने कर्मों को कोसते हैं। जब दुःख आता है, ‘‘मेरे कर्मों का फल है। मैंने क्या कर्म किए होंगे पिछले जन्म में ?"

मतलब, सारी बात दिमाग में ऐसे-ऐसे घुसेड़ते हैं कि पूछो मत! और घुसेड़ने वाले भी एक नहीं हैं, अनेक हैं। ‘‘जो कुछ आज हो रहा है, वह तेरे कर्मों का फल है।’’ तो मुझे याद क्यों नहीं है ? मैंने क्या कर्म किए थे ? अगर याद होता कि ये-ये कर्म करने से मेरे को अच्छा फल मिल रहा है तो दुबारा करता! याद तो है नहीं! अब क्या करूं ? पर चक्कर है — कर्मों का नहीं, तुम्हारे सपने पूरे न होने का। चक्कर ये है! चक्कर कर्मों का नहीं है। चक्कर कर्मों का नहीं है! चक्कर है — तुमने जो धारणाएं बना रखी हैं कि मेरे सपने ये हैं, मेरे सपने ये हैं और दुनिया तुमको दिखाती है सपने।

क्यों ? ये है मनुष्य इस कलयुग का और भूल गया है मनुष्य अपनी ही प्रकृति को। भूल गया है मनुष्य कि वो सचमुच में वो क्या है, वो कौन है ?

और लोग लगे हुए हैं, ‘‘हां! हां, हां!!’’

देखो! जो तुमको समझ में न आए, वो कूड़ा है। जो तुमको समझ में न आए! अगर वो, जो समझ में नहीं आता है, उसको निकाल दो तो तुम जानते हो, तुम्हारे कंधों का बोझ कितना हल्का होगा ? कर्मों के चक्कर से निकल के तुम किस चक्कर में पड़ोगे कि मेरे को अपने जीवन में शांति चाहिए। मैं आनंदमय — हर दिन मैं आनंदमय होना चाहता हूं। बस! अब ये पैसे से आए तो फिर पैसा कमाऊंगा और पैसे से न आए, जैसे आए, मेरे को आनंद से मतलब है, मेरे को शांति से मतलब है, मेरे को संतोष से मतलब है। मेरे को उस चीज से मतलब है, जो मेरे हृदय में है। और चीजों से मेरे को मतलब नहीं है।

तुम्हारी प्रकृति है ये कि तुम्हें लगी है असली प्यास और असली प्यास है उस परमानन्द की, अपने आपको जानने की। क्योंकि अगर तुम अपने आपको जानते तो तुमको पता लगता कि तुम्हारे में कितना बल है! तुम अगर अपने आपको जानते तो और चीजों के पीछे न लगकर के, अपने पीछे लगते। अपने अंदर स्थित जो मंदिर तुम्हारे हृदय के अंदर है, वहां जाकर तुम दर्शन करते। वहां जाकर के उस भगवान का पूजन करते, जो असली भगवान, जो था, है और रहेगा, तुम्हारे अंदर जो है। 

पहचान (ऑडियो) 00:09:22 पहचान (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:22 यह जो जीवन रूपी दिन मिला है, यह जो सूरज चढ़ा है, क्या करोगे तुम इस दिन में ? क्या...

आना, जाना इस संसार के अंदर जैसे लहर आती जाती रहती हैं, जैसे ये बादल आते जाते रहते हैं, जैसे ये सूरज सबेरे चढ़ता है और शाम को ढल जाता है — ये है तुम्हारी जिंदगी। ये एक दिन का सूरज का चढ़ना है — ये एक सबेरा है, एक दोपहर है, एक शाम है। सूरज के चढ़ने से पहले भी अंधेरा था और सूरज के ढलने के बाद भी अंधेरा हो जायेगा। पर ये जो दिन मिला है, ये जो जीवन रूपी दिन मिला है, ये जो सूरज चढ़ा है, क्या करोगे तुम इस दिन में ? क्या करोगे तुम आज ? क्योंकि ये है तुम्हारा आज। ये जीवन, ये शरीर, इस जीवन का मिलना है तुम्हारा आज, ये है तुम्हारा सवेरा, और एक दिन दोपहर भी होगी और फिर सूरज ढलेगा और शाम भी होगी, और शाम के बाद फिर रात भी होगी।

क्या किया तुमने आज ?

जो तुम कर रहे हो अपने जीवन में, अगर तुमने उस ‘हंस’ को, जो तुम्हारे अंदर विराजमान है, अगर उसको नहीं जाना तो तुम्हारा आना-जाना बराबर है। क्या आना-जाना ?

मुट्ठी बांधे आया जग में, हाथ पसारे जायेगा।

सोचो! सोचने की बात है! अगर विचार करोगे, बच जाओगे। विचार करोगे, बच जाओगे।

एक छोटा-सा कुत्ता था। तो एक दिन टहलते-टहलते, टहलते-टहलते, टहलते-टहलते, वो जंगल में चला गया। और जब जंगल में चला गया तो उसको लगा कि बाप रे बाप! मैं इतने गहरे जंगल में आ गया हूं। खतरा लगा उसको! खतरा लगा तो वो सूंघा उसने। कुत्ता तो है ही! सूंघा उसने। तो उसको गंध ऐसी आई जैसे पहले कभी आयी नहीं थी। तो उसको लगा कि ये कोई शेर-वेर है, जो मेरे को खायेगा। तो आगे चलता गया, चलता गया, चलता गया, चलता गया। आगे उसको मिला एक हड्डियों का बहुत बड़ा ढेर! तो वहां जाकर के बैठ गया। बैठ गया।

अब सोचने लगा, "बचना है, सोच ले!"

इतने में आया शेर पीछे से गुर्राता हुआ।

तो कुत्ता बोलता है, "वाह, वाह, वाह!" कुत्ता बोलता है, "वाह, वाह, वाह! इतने शेरों को खा गया, अभी भी मेरी भूख खत्म नहीं हुई है। एक और शेर मिल जाए तो हो सकता है, मेरी भूख खत्म हो जाए।"

जैसे ही शेर ने ये सुना कि एक छोटा-सा कुत्ता और उसके सामने हड्डियों का ढेर! तो उसको भी लगा कि "हो सकता है, ये मेरे को खा जाय।"

तो शेर बेचारा मुड़ा और चल दिया वहां से दुम दबाए हुए। एक बंदर पेड़ पर चढ़ा हुआ ये सब देख रहा था। बंदर आया नीचे, गया शेर के पास और शेर को उसने बताया, "ये तेरे को बेवकूफ बना रहा है। ये छोटा कुत्ता तेरे को बेवकूफ बना रहा है। ये कह रहा था इसलिए सिर्फ, ताकि तू डर जाये। इसने किसी शेर-वेर को नहीं खाया।"

शेर को बड़ा गुस्सा आया। शेर को बड़ा गुस्सा आया कि मेरे को बेवकूफ बनाता है।

तो बंदर ने कहा, "चलो, वापिस चलो, खाने के लिए उसको!"

शेर ने कहा, "तू बैठ मेरी पीठ पर। चलते हैं।"

बंदर बैठ गया शेर की पीठ पर और चलने लगे।

अब कुत्ता वहीं का वहीं था। सोचा, "फिर सोच ले! अब की गया! इस बार तो बंदर भी आ रहा है। इसी ने कहीं गड़बड़ की होगी। सोच ले!"

तब कुत्ता बोलता है कि "वो बंदर गया कहां ? उसको आधे घंटे मैंने पहले भेजा था शेर लाने के लिए, अभी तक वापिस नहीं आया।"

और जैसे ही शेर ने सुना, उठाया बंदर को, फेंका नीचे और भागना शुरू कर दिया उसने।

सोच लो! क्यों सोच लो ? वो तो शेर था। तुम्हारे आसपास काल मंडरा रहा है। काल! इंतजार कर रहा है, "कब मौका मिले ?" इंतजार कर रहा है, "कब मौका मिले ?" तुम हो, तुमको परवाह ही नहीं है, क्योंकि तुम घमण्ड के नशे में चूर हो। घमण्ड हो जाता है न, घमण्ड! "मैंने ये कर लिया, मैं ये हूं! मेरा ये है, मेरा वो है!" और भूल जाते हैं कि यहां क्यों आए ? क्यों आए ? क्यों तुम्हारा जन्म हुआ ? इसके लिए नहीं। अरे, ये तो कुत्ते के पास भी है। कबीरदास जी कहते हैं, कि "तुम्हारा जन्म हुआ है, ताकि तुम उस चीज को पहचानो, उसको जानो और अपने जीवन को सफल बनाओ।" इसीलिए तुम्हारा जन्म हुआ।

देखो इस दुनिया को। आज जितने स्कूल हैं इस दुनिया के अंदर, पहले कभी नहीं थे। और जितनी क्रांति है इस संसार के अंदर, पहले कभी नहीं थी।

लोग तो कहते हैं न कि "अगर लोग पढ़े-लिखेंगे तो अच्छे बनेंगे।"

अरे, अब इतने स्कूल हैं तो क्रांति क्यों फैल रही है ? पढ़ने-लिखने से क्रांति का कोई संबंध नहीं है। क्रांति मन की अशांति के कारण फैलती है। जबतक मन शांत नहीं होगा लोगों का, जबतक शांति का अहसास नहीं होगा उनको अपने जीवन के अंदर, क्रांति फैलती रहेगी। तुम्हारे जीवन के अंदर भी क्रांति है। तुमको भी परेशान करती है। बिना बात के परेशान करती है। और तुम्हारे घट में है क्या ? अलख पुरुष अविनाशी! और तुम उसको जानते नहीं हो। अगर तुम उसको जान जाओ, तभी तुम्हारे जीवन के अंदर शांति आयेगी। उससे पहले नहीं आ सकती। घमण्ड करने से कुछ नहीं होगा इस संसार के अंदर!

एक वैद्य था — हकीम! उसको मालूम था कि जब वो, उसका टाइम आने वाला है, मरेगा। तो उसको मालूम था कि आयेगा, यमराज का दूत आयेगा। और उसको ये भी मालूम था कि वो एक ही को ले जा सकता है, दो को नहीं ले जा सकता। तो उसने अपना पुतला बनाया और ऐसा पुतला बनाया, ऐसा पुतला बनाया, ऐसा पुतला बनाया कि दोनों एक ही तरीके से दिखाई दें। और जब समय आया तो वो भी लेट गया अपने पुतले को साथ में रख दिया।

आया यमराज का दूत लेने के लिए।

अब वो भी दुविधा में पड़ गया कि "एक ही को ले जाना है, यहां तो दो हैं। किसको ले जाऊं ?"

अब वो भी पड़ा हुआ है वहां, कुछ बोल नहीं रहा है। अपने पुतले की तरह ही वो भी चुपचाप है।

तब यमराज का दूत बोलता है, "हकीम जी! मान गये आपको। ऐसा पुतला बनाया है, ऐसा पुतला बनाया है कि हम भी अचंभे में पड़ गये! पर आप एक चीज भूल गये।"

अब हकीम से रहा नहीं गया। बोलता है, "क्या भूल गया ?"

यम का दूत बोलता है, "ये भूल गया! चुप रहना भूल गया। घमण्ड है तेरे को इतना कि तू चुप नहीं रह सका। तेरे को बोलना था। क्या भूल गया ? यही भूल गया कि तू घमण्ड के अधीन है। चल!" ले गया। यही मनुष्य के साथ होता है।

- प्रेम रावत

अच्छा बुरा 00:09:17 अच्छा बुरा Audio Duration : 00:09:17 हर एक व्यक्ति में 50 प्रतिशत अच्छाई है और 50 प्रतिशत बुराई है।

प्रेम रावत:

एक बार एक काफिला था, जो एक जगह था। तो एक दिन एक लड़का, एक बच्चा, जो काफिले का सरदार था, उसके पास आया और उसने अपने सरदार से कहा कि "सरदार! मेरा एक सवाल है।"

कहा, "क्या ?"

कहा, "मैं देखता हूं कि कुछ लोग — जो अच्छा महसूस करते हैं, जो अच्छे हैं, कई बार वो बुरा काम करते हैं, बुरी चीज करते हैं और वो लोग, जो बुरी चीज करते हैं, कई बार वो अच्छा करते हैं। जो लोग खुश रहते हैं, वो कई बार दुःखी हो जाते हैं और जो लोग दुःखी रहते हैं, फिर कई बार वो खुश हो जाते हैं। ऐसा क्यों है ?"

सरदार ने कहा, "हर एक मनुष्य के अंदर दो शेर हैं। एक अच्छा शेर है और एक बुरा शेर है। और दोनों शेर आपस में लड़ते हैं।"

उसने सोचा। सोच के वो बोलता है, "फिर क्यों लड़ते हैं ?"

कहा, "इसलिए लड़ते हैं कि तेरे पर काबू कर सकें।"

फिर सोचा उसने। कहा, "सरदार! जीतता कौन है ? कौन-सा शेर जीतेगा ? अंत में कौन-सा शेर जीतेगा ? अच्छा वाला या बुरे वाला ?"

सरदार ने कहा, "जिस शेर को तू खिलाएगा, वही जीतेगा।"

कहानी तुमको पसंद आयी ? बुरे शेर को खिलाओगे, वो जीतेगा। वो तुम पर काबू करेगा, तुम पर राज करेगा। अच्छे शेर को खिलाओगे, वो जीतेगा, वो तुम पर काबू करेगा, तुम पर राज करेगा। अच्छे वाला शेर अच्छा है, बुरे वाला शेर बुरा है।

समझे ? तो किस शेर को खिलाते हो तुम ?

बुरे वाले शेर को खिलाओगे, वही जीतेगा। तुमको गुस्सा करने में कितनी देर लगती है ? तुमको निराश होने में कितनी देर लगती है ? क्या मतलब है इसका ? कौन-से शेर को खिला रहे हो ?

कई लोग तो ये समझते हैं, "हमें बुरे शेर को कुछ नहीं खिलाना चाहिए।"

तो वो किसी को कुछ नहीं खिला रहे हैं। अच्छे शेर को खिलाना जरूरी है! अगर अच्छा चाहते हो तुम अपने जीवन में तो अच्छे शेर को खिलाना जरूरी है! बुरे शेर से संबंध मत बनाओ! उससे न बात करो, न उसके पास जाओ, न उसको कहो कि ‘‘तू बुरा शेर है!’’ अच्छे शेर की देखभाल करो, उसको खिलाओ, हर समय उसको खिलाओ, ताकि वो बलवान हो!

तो अगर तुम यह महसूस करते हो कि तुम बड़ी आसानी से निराश हो जाते हो, अगर तुम यह महसूस करते हो कि बड़ी जल्दी से गुस्सा हो जाते हो, आशाएं टूट जाती हैं, अपने आपको तुम भ्रमित पाते हो, कभी यहां की सोचते हो, कभी वहां की सोचते हो, कभी — ये कैसा है, वो कैसा है ? इसका क्या उत्तर है ? ये ऐसा है, वो वैसा है — इन सब चीजों में लगते हो। इसका मतलब है कि तुम बुरे शेर को खिला रहे हो।

अच्छे शेर को खिलाओगे, तब वो कहेगा, "तेरे को इसकी क्या फिक्र है, उसकी क्या फिक्र है ? अगर तेरे को फिक्र करनी है तो इसकी फिक्र कर, जो तेरे अंदर आ रहा है, जा रहा है। जिसके न आने से तू कुछ भी नहीं कर पायेगा!"

अरे! विटामिन तो ठीक है — ये ऐसी विटामिन है कि इसके बिना एक दिन भी नहीं चलोगे तुम। एक दिन तो छोड़ो, तीन मिनट! तीन मिनट! और ये जब तक चल रहा है, इसकी तरफ तुम ध्यान नहीं देते हो और जब ये बंद होने लगता है, तब तुम्हारा ध्यान जायेगा। तो इसका मतलब है कि तुमने अपने सारे जीवन भर बुरे शेर को खिलाया। वो तुम्हारा बलवान है, वो तुमको खाएगा और उससे बड़ा नर्क हो नहीं सकता! जो आदमी स्वर्ग में बैठा-बैठा नहीं जानता है कि वह स्वर्ग में है, इससे बड़ा नर्क क्या हो सकता है ?

तो समझो! ध्यान देने से सबकुछ होगा। उस चीज को अपनाने से सबकुछ होगा। जो तुममें अच्छाई है, उसको उभरकर बाहर आने दो। जितना बाहर आएगी, उतना ही तुम्हारे जीवन के अंदर और सुंदरता आएगी। जो शांति है, उसको आने दो बाहर। अशांति को नहीं।

ये सारी चीजें तुममें हैं। तुममें बुराई भी है और तुममें अच्छाई भी है। और कितनी बुराई है और कितनी अच्छाई है ? हर एक व्यक्ति में, हर एक मनुष्य में 50 प्रतिशत अच्छाई है और 50 प्रतिशत बुराई है।

कोशिश करो! कोशिश करो इस शांति के लिए, इस आनंद के लिए, अपने जीवन को सफल बनाने के लिए। इसमें ज्यादा समय नहीं लगता। इसमें ज्यादा समय नहीं लगता। अच्छाई में रोशनी जब आती है, कितना समय लगता है और रोशनी जब जाती है तो अंधेरे को आने में कितना समय लगता है! रोशनी अंधेरे को हटाती है। ये तो दो बहनें हैं — एक तरफ रोशनी है और एक तरफ अंधेरा है। बस, फ़र्क इतना है कि ये एक-दूसरे को नहीं जानते। पर रहते बहुत नजदीक हैं। बहुत नजदीक हैं! जैसे ही रोशनी जाती है, तुरंत अंधेरा आता है। और जैसे ही — जब रोशनी चली जाती है, अंधेरा ही अंधेरा हो जाता है। बहुत नजदीक हैं एक दूसरे के पर एक दूसरे को नहीं जानते। क्योंकि अंधेरे ने कभी रोशनी को नहीं देखा, रोशनी ने कभी अंधेरे को नहीं देखा।

अच्छाई भी है, बुराई भी है। तुम्हारी अच्छाई, तुम्हारी बुराई को नहीं जानती और तुम्हारी बुराई तुम्हारी अच्छाई को नहीं जानती पर रहते ये एक ही में हैं। तुममें रहते हैं। हममें रहते हैं। और ये हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि मैं उस शांति तक पहुंच सकूं, जो मेरे अंदर अच्छाई है, उस तक मैं पहुंचूं, उसको मैं आगे बढ़ावा दूं और आनंद लो! क्योंकि इसका — इसका सारा सार यही है। सच्चिदानन्द! सत् ये है और जब मेरा चित्त इसमें लगेगा तो क्या मिलेगा ? आनंद मिलेगा। ये सारा — चक्कर ही सारा आनंद का है।

मैं कह रहा था न, दो मौज हैं। एक तो दुनिया की मौज है और एक अंदर की मौज है। अंदर की मौज करोगे तो अंदर की मौज में कितने भी तुम बुड्ढे हो जाओ, कोई अंतर नहीं आएगा।

आपका स्वभाव क्या है 00:08:59 आपका स्वभाव क्या है Audio Duration : 00:08:59 हमारे जीवन में एक आदत है और वह आदत है भूलने की। हम भूल जाते हैं कि हमारा स्वभाव ...

प्रेम रावत:

हमको हमारे जीवन में एक आदत है और वह आदत है भूलने की। हम भूल जाते हैं। हम भूल जाते हैं कि हम कौन हैं। हम भूल जाते हैं कि हमारा स्वभाव क्या है ? हम भूल जाते हैं कि हमारी प्रकृति क्या है ? हम भूल जाते हैं कि हमारी चाह क्या है ? हम भूल जाते हैं कि हमारी जरूरत क्या है ? तो कौन-सी ऐसी चीज है, जिसके भूल जाने से हमारे जीवन के अंदर एक ऐसा माहौल पैदा होता है कि हम समझ नहीं पाते हैं कि ये सबकुछ क्या है ? क्या हो रहा है ? मेरे साथ गलत क्यों होता है ? किसी के साथ सही क्यों होता है ?

ये सारी बातें हम भूल जाते हैं। बात ये है! और सच्चाई है ये! अज्ञानता तुमसे दूर नहीं है और ज्ञान भी तुमसे दूर नहीं है। सुख भी तुमसे दूर नहीं है और दुःख भी तुमसे दूर नहीं है। तुम जहां जाते हो, जो कुछ भी तुम करते हो अपने जीवन के अंदर — जहां भी जाते हो, जो कुछ भी करते हो — सुख और दुःख, दोनों तुम्हारे साथ चलते हैं। अज्ञान और ज्ञान तुम्हारे साथ चलते हैं। अच्छाई और बुराई तुम्हारे साथ चलती है।

अब मनुष्य हो, मनुष्य के नाते तुम्हारी यह प्रकृति है कि दुःख तुमसे सहन नहीं होगा। तुम दुःख को सहन नहीं कर सकते हो। मैं जो बोल रहा हूं ये बात — मैं कितनी ही जेलों में जाता हूं, लोगों को सुनाने के लिए कि जिस शांति की तुमको तलाश है, वो शांति तुम्हारे अंदर है और पहले से ही मौजूद है। उन जेलों में जो लोग पड़े हुए हैं, उनके लिए आशा क्या नाम की चीज है ?

एक आदमी, जिसको दो सौ पचास साल की कैद है, सजा है। दो सौ पचास साल! अर्थात् वो उस जेल से जिंदा नहीं निकलेगा। चाहे वो किसी की भी प्रार्थना कर ले! समझे न मेरी बात! उसका शव ही बाहर निकलना है। तभी उसको आजादी मिलेगी उस जेल से, उससे पहले आजादी उसके लिए संभव नहीं है। तो ऐसे आदमी को क्या कहोगे ? क्या कहोगे ? क्या समझाओगे उसको ?

पर उसको भी समझाना कि तेरे साथ — तेरे कैद में, तेरे जेल में, तेरे सेल में आशा भी तेरे साथ ही लॉक्ड है और निराशा भी तेरे साथ ही लॉक्ड है। दोनों चीजें! और ये जो दीवालें हैं, ये जो खिड़कियां हैं, ये जो लोहे की सलाखें हैं, तेरे शरीर को तो जरूर काबू में, कैद में रख सकती हैं, परंतु एक चीज है तेरे अंदर, जो कभी कैद नहीं की जा सकती। वो कैद में होते हुए भी फरार है। उसको कभी पकड़ा नहीं और न उसको कोई पकड़ सकता है। ये तो हुई बात उस व्यक्ति की, जो दो सौ पचास साल के लिए कैद में है।

अब चक्कर ये है कि जब उन लोगों की बात, मैं उन लोगों को सुनाता हूं जो कैद में नहीं हैं तो वो तो यही सोचते हैं कि ये तो कैदियों की बात कर रहे हैं, हमारे लिए थोड़े ही लागू है ? ऐसी बात नहीं है। तुम भी कैदी हो! तुम भी कैदी हो! वो जो कैद में है, उसके लिए तो बढ़िया है। उसको तीन टाइम का खाना कहां से आएगा, उसको परवाह करने की जरूरत नहीं है। तुम तो हर दिन वो खाना कहां से आएगा, उसकी चिंता करते हो। अच्छा, दूसरी बात! वहां सिक्योरिटी बहुत बढ़िया है। वहां बिना बुलाए कोई नहीं आएगा। तुम तो अपने घर में सलाखें रखते हो, कुत्ते रखते हो, किसी नाइट ड्यूटी वाले को तनख्वाह देते हो। वहां सब प्रबंध है। और तुम भी कैदी हो। और तुम किस चीज के कैदी हो ? अपनी भावनाओं के कैदी हो। अपने विचारों के कैदी हो। उन चीजों ने तुमको कैद करके रखा हुआ है।

तो प्रश्न ये होता है — प्रश्न ये नहीं है कि ब्रह्म कहां है ? पारब्रह्म परमेश्वर जिसे कहते हैं — प्रश्न ये नहीं है कि वो कहां है ? प्रश्न ये है कि अगर वो तुम्हारे अंदर है, अगर वो तुम्हारे अंदर है तो तुम उसको क्यों नहीं जानते हो ? नहीं ? ये हुआ न प्रश्न ?

दुनिया तो प्रश्न करती है, "है जी! है या नहीं है, हमको नहीं मालूम। आप बताइए। है तो हमको जरा दर्शन कराइए! ये करवाइए, वो करवाइए!"

हम कहते हैं, हम प्रश्न पूछते हैं तुमसे कि अगर तुम्हारे अंदर वो पारब्रह्म परमेश्वर है तो यह कैसे संभव है कि तुम उसको नहीं जानते ? क्या हो रहा है कि तुमने उस पारब्रह्म परमेश्वर को नहीं जाना! क्यों ? क्यों ? कौन-सी ऐसी चीज है इस सारे संसार के अंदर, जो उससे ज्यादा महत्व रखती है कि मैं अपने अंदर स्थित उस ब्रह्म को जानूं! है कोई चीज ? हो सकती है कोई चीज ? हो सकती है कोई चीज ?

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