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हिम्मत का समय: छटी कड़ी (वीडियो) 00:15:52 हिम्मत का समय: छटी कड़ी (वीडियो) Video Duration : 00:15:52 श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश

हिम्मत का समय (छठा भाग)

प्रेम रावत जी : Ok.. So Thank you again for joining Dr. Kiran. And I understand you are in Seattle.

डॉ. किरण : Yes, I am, जी मैं...I am in Seattle.

प्रेम रावत जी : हिंदी में स्विच कर देते हैं। और आप — कहां से ग्रेजुएट किया आपने मेडिकल स्कूल ?

डॉ. किरण : जी, मैंने मेडिकल ट्रेनिंग अपनी भारत में, अहमदाबाद शहर में बी.जे. मेडिकल कॉलेज है वहां से की थी मैंने। प्रेम रावत जी : अच्छा!

डॉ. किरण : और उसके बाद रेजीडेंसी ट्रेनिंग भी मेरी इंटरनल मेडिसिन में वहीं उससे जुड़ी हुई सिविल हॉस्पिटल है अहमदाबाद में, वहां मैंने अपनी पूरी की थी।

प्रेम रावत जी : जी, जी। तो आपको तो यह ज्ञात होगा ही कि हिन्दुस्तान में इस कोरोना वायरस को लेकर के बहुत ही गड़बड़ हो रही है और बहुत लोग परेशान हैं क्या किया जाये। और एक चीज मैं यह चाहता था कि आज कुछ आप जरा समझायें कि यह कोरोना वायरस क्या है और इससे डरने की जरूरत नहीं है। इससे सावधान होने की जरूरत है।

डॉ. किरण : जी, जी! तो यह जो कोरोना वायरस कि एक परिवार है viruses का जो, जिसमें से एक वायरस जिसे SARS-CoV-2 के नाम से पहचाना गया था, वह 2019 में सबसे पहले पाया गया था, तो तब से लेकर के कोई ऐसा — मैं मानती हूं ऐसा कोई देश नहीं है जो इस वायरस के संक्रमण से बचा रहा हो। लेकिन यह जो है, यह लहरों में कई देशों में देखा गया है तो कई देशों में एक, पहली लहर आयी, फिर वह उतर गयी, फिर दूसरी लहर आयी। तो हिन्दुस्तान में अभी जो है वह दूसरी लहर से जूझ रहे हैं सब। तो यह जो वायरस है यह जुकाम से लेकर के एक Severe acute respiratory syndrome जिसे कहते हैं वो symptoms में पूरा उसका रेंज करता है। मगर जो समझने वाली बात है कि 85 से 90 प्रतिशत लोगों में यह बहुत ही सौम्य, माइल्ड इंफेक्शन करता है, जिन्हें कोई दवा, कोई hospitalization या कोई बहुत ज्यादा मेडिकल केयर की जरूरत नहीं पड़ती। यह अपने आप ही ठीक हो जाता है। और अब तक जो दुनिया में लगभग 170 मिलियन cases दर्ज़ किये गए हैं उसमें से 150 मिलियन से ऊपर cases रिकवर हो चुके हैं। और इसका जो mortality मतलब मृत्यु रेट है वह 2 प्रतिशत से भी कम है। तो इससे हमें कंट्रोल करने की जरूरत है, पर इससे बिलकुल भी घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रेम रावत जी : यह आपने बहुत अच्छी बात कही कि डरने की बात नहीं है. डर, लोग डर जाते हैं, क्योंकि बहुत कुछ सुना है लोगों ने और कई जो इत्तला करते हैं लोगों को, वो गलत इत्तला की है, मतलब इससे कि मर जायेंगे, ये कर जायेंगे और जो मैंने सुना है उसका — वह तो बहुत साधारण-सा एक हल है उसका कि मास्क पहनो, छह फीट की दूरी रखो लोगों से और अपने हाथ धोओ.....

डॉ. किरण : जी!

प्रेम रावत जी : .... तो ये करने से आदमी बच सकता है इससे।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, जी बिलकुल आपने एकदम सही कहा कि लोगों में डर और पैनिक बहुत ही फैल रहा है, लेकिन कोरोना से बचने के ये आपने जो बताये वो बहुत-ही सरल रास्ते हैं। और एक अब और हमारे में add हो गया है इसमें जो है कि वैक्सीनेशन्स, हमारे पास अब उपलब्ध हैं। तो जैसे-जैसे लोगों के, जैसे-जैसे वैक्सीन्स और उपलब्ध होंगी, वैसे-वैसे इसका ट्रांसमिशन और भी कम होता जायेगा। तो ये मास्किंग और जितना हो सके, जितना जरूरी हो उतना ही घर से बाहर निकलें, जबतक कि इसका कंट्रोल न आये और हाथ धोये रखना, surfaces को disinfectant से साफ करते रहना और अपना जो इम्यून सिस्टम है उसे सशक्त, मजबूत रखना। क्योंकि आखिर में यह इम्यून सिस्टम ही है जो इस वायरस से लड़ता है बाकी सब दवाइयां तो जरा कुछ हेल्प करती हैं।

प्रेम रावत जी : तो यह स्वयं मनुष्य की अपनी शक्ति है अगर उसका जो इम्यून सिस्टम है वह अच्छा है तो उससे हैंडल किया जा सकता है। एक बात हमारे सुनने में आयी एक डॉक्टर कह रहे थे कुछ इसके बारे में कि जिन लोगों के ट्रांसप्लांट हुए हैं जैसे, किडनी ट्रांसप्लांट हुई है या हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है तो उन लोगों पर क्योंकि उनको दवाई लेनी पड़ती है ताकि रिएक्शन न हो इम्यून सिस्टम का तो उसकी वजह से वो बहुत ही डेंजर में हैं, खतरे में हैं कि उनको यह वायरस न लगे।

डॉ. किरण : जी, जी बिलकुल, सही कहा आपने। क्योंकि ये जिन लोगों का ट्रांसप्लांट हुआ है किसी भी ऑर्गन (organ) का तो उन्हें ऐसी दवाइयां दी जाती हैं ताकि उनका इम्यून सिस्टम उस organ को रिजेक्ट न करे। तो इसलिए उनका इम्यून सिस्टम दवाइयों से दबाया जाता है और इसलिए जब उन्हें अगर यह वायरस लगे तो इम्यून सिस्टम already दबा हुआ होता है। तो वो इतना, उसका डटकर मुकाबला नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनलोगों को खास उससे सावधानी बरतने की जरूरत है और कुछ जो कैंसर के मरीज हैं जो कि कीमोथेरेपी पर हैं या जिन्हें हृदय की तकलीफ है या डायबिटीज़ जिनका कंट्रोल नहीं है वे सब भी इसमें सीवियर बीमारी गंभीर रूप से होने में उन्हें खतरा बना रहता है।

प्रेम रावत जी : यह बात मैं इसलिए कह रहा था क्योंकि कई लोग हैं जो मास्क नहीं पहनना चाहते हैं। तो मैं उनको यह कहना चाहता हूं कि भाई, तुम नहीं पहनना चाहते हो तो कोई बात नहीं मत पहनो, परन्तु औरों के लिए तो पहनो। क्योंकि तुम उनको यह बीमारी दे सकते हो।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, हर नागरिक की यह जवाबदारी होनी चाहिए कि खुद को तो बचायें पर सामने वाले को भी बचाना बहुत जरूरी है, आप उन्हें ना दें यह बीमारी। क्योंकि यह जो वायरस है यह जितना टाइम फैलता रहेगा या उसका ट्रांसमिशन चलता रहेगा, उतना इस वायरस को मौका मिलेगा अपना रूप बदलने का, mutate होने का। तो इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हर तरीके से हम इसका ट्रांसमिशन रोकें। नहीं तो हम ऐसी स्थिति में शायद पहुंच सकते हैं जहां हमारी जो अभी वैक्सीन्स हैं, वो उतना अच्छे से काम न करें। तो हमें यह बिलकुल रोकना है।

प्रेम रावत जी : तो मतलब यह तो मानवता की बात है। यह तो सभ्यता की बात है कि कम से कम अगर हम नहीं पहनना चाहते हैं मास्क तो भाई, घर में रहो; बाहर मत जाओ और अगर बाहर जाओ तो मास्क पहनकर जाओ ताकि तुमको न लगे वह बात अलग है, परन्तु और लोगों को जिनको यह डायबिटीज़ है या हार्ट की बीमारी है या ट्रांसप्लांट है, तो उनको बहुत खतरा हो सकता है इस चीज से।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, जी बिलकुल, आपने बिलकुल सही कहा। यह हर एक की एक नैतिक जवाबदारी होनी चाहिए कि आप जो, समाज में जिन्हें इसका खतरा ज्यादा है उनकी सुरक्षा के बारे में भी आप सोचें और मास्क पहनना उसके लिए बहुत ही जरूरी है। तो मैं मानती हूं कि हर एक को पहनना चाहिए मास्क।

प्रेम रावत जी : और यह नहीं है कि सिर्फ यहां लगाया हुआ है मास्क और नाक में नहीं लगाया या फिर यहां लगाया हुआ है और मुँह में नहीं लगाया। उसको अगर पहनना है तो ठीक ढंग से पहनना है और ऐसा मास्क पहनना है जो वायरस को ट्रांसमिट न करे। के एन-95 जैसे मास्क हैं, क्योंकि जो पतले-पतले मास्क होते हैं जो सिर्फ कपड़ा लगाते हैं तो कपड़े में बहुत बड़े-बड़े छेद होते हैं अगर उसको मैग्नीफाइंग गिलास से देखा जाए तो उसमें बड़े-बड़े छेद हैं तो उनसे वायरस निकल जायेगी। परन्तु कुछ ऐसा होना चाहिए ताकि उसमें किसी भी रूप से वायरस निकल न पाए।

डॉ. किरण : जी, जी आपने बिलकुल सही कहा। तो ये मास्क जो है उसका उचित फिट होना बहुत जरूरी है। तो नाक और मुँह दोनों ही ढकना चाहिए। एक अच्छी सील होनी चाहिए तो हवा साइड से अंदर न जाये सिर्फ मास्क के थ्रू ही जाए। और यह आपने बिलकुल सही कहा कि एन -95 या के एन-95 मास्क जो होते हैं तो वो ज्यादा अच्छा फिटरेशन, ज्यादा अच्छा सुरक्षा देते हैं। कभी अगर न भी मिल पायें आपको किसी कारण से तो आजकल कहते हैं कि डबल मास्किंग का करना भी उचित रहेगा। तो जिससे कि हम एक और लेयर सुरक्षा का उसमें डाल सकें ताकि आप सुरक्षित ज्यादा रह सकें।

प्रेम रावत जी : हिन्दुस्तान में मैंने यह देखा है कि लोग छूते हैं चीजों को और फिर अपने को छूते हैं या आँख साफ कर रहे हैं या कान खुजा रहे हैं या नाक खुजा रहे हैं, तो ये सारी चीजें इन पर ध्यान जाना चाहिए लोगों का कि कहीं भी हाथ लग गया तो वायरस उसमें लग सकती है और उनको खतरा हो सकता है।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, तो यह जो वायरस है उसका जो सबसे बड़ा mode of transmission जो हम कहते हैं, वो ड्रॉपलेट, मतलब बड़ी बूंदों से होता है, तो ये बड़ी बूंदें नीचे settle हो जाती हैं तो जिन surfaces पर, जो surfaces बहुत use होते हैं तो उन पर यह वायरस काफी टाइम तक रहता है। तो अगर उसको छुआ और फिर अपने मुँह के आस-पास आप ले गए तो आपको वह वायरस आपके शरीर में अंदर जाने की संभावना बनी रहती है। इसलिए यह कहते हैं कि जो ऐसे surfaces हों उन्हें बार-बार साफ करते रहें।अपने मुँह के आस-पास हाथ न ले जाएं जितना हो सके, क्योंकि यह वायरस नाक और मुँह से सबसे ज्यादा, सबसे आसानी से शरीर में अंदर प्रवेश करता है और जितना बार-बार आपको जितनी बार याद आये पानी और साबुन से अपने हाथ साफ करते रहें। तो ये जो बेसिक कोविड का जो प्रोटेक्शन है, उससे रहता है।

प्रेम रावत जी : हां, तो बड़ी अच्छी बात कही आपने कि इससे सचमुच में हम बच सकते हैं अगर थोड़ा-सा हम लिहाज़ करें, परहेज करें तो बहुत आसानी से हम इससे बच सकते हैं और सबकुछ ठीक हो सकता है।

डॉ. किरण : जी बिलकुल!

प्रेम रावत जी : यह तो बहुत shock का कारण बन गया है हिन्दुस्तान में कि कितने लोग चले गए हैं, परन्तु बुढ़ापे में लोग चले जाते हैं क्योंकि या फिर डायबिटीज़ है या हार्ट कंडीशन है ये सबकुछ है, परन्तु फिर भी जितने लोगों को यह वायरस सारे संसार में हुआ है उसकी mortality रेट मतलब, मरने की जो रेट है वह बहुत ही कम है अगर थोड़ा-सा भी लिहाज़ और डॉक्टरों ने तो बहुत अच्छा काम किया है इसके ऊपर।

डॉ. किरण : जी, वहां पर जो हेल्थ केयर है वह बिलकुल ही स्ट्रेच हो चुका था, पर डॉक्टर्स फिर भी अपनी पूरी जी-जान से मेहनत कर रहे हैं, पूरा काम कर रहे हैं। लेकिन लोगों को भी मैं यह आश्वस्त करना चाहूंगी कि आपने जैसे कहा, mortality रेट उसका बहुत कम है — ये हमने इतने cases देखे इसलिए हम इतना सुन रहे हैं, पर इस बीमारी का जो बेसिक mortality रेट है वह कम है, तो हमें पैनिक या डर की जरूरत नहीं है, हिम्मत रखनी है। और ये जो बेसिक हाइजीन चीजों का और जो भी directives आते हैं हमारे, हमें फॉलो करने चाहिए और अपने आपको बचाया बिलकुल जा सकता है।

प्रेम रावत जी : और यह सुनने में भी आया है कि एक चीज है "ब्लैक फंगस" तो उसके बारे में आप कुछ कहेंगे ?

डॉ. किरण : जी, तो यह ब्लैक फंगस जो हम मेडिकल अपनी भाषा में उसे "Mucor Mycosis" कहते हैं, तो यह इन्फेक्शन नया नहीं है। यह कोविड के पहले भी पाया जाता था। बहुत कम देखा जाता था क्योंकि सिर्फ जिन लोगों में इम्यून सिस्टम फिर से जिनमें कम हो जैसे कि डायबिटीज़ के मरीज जिनका शुगर कंट्रोल में नहीं है, कैंसर के मरीज जो कीमोथेरपी पर हैं या जो ट्रांसप्लांट के patients हैं, immuno separation पर उन सब में देखा जाता था यह ब्लैक फंगस। लेकिन अब जब से यह कोविड की दूसरी लहर आयी है भारत में तो हम इसके cases बढ़ गए हैं यह सुन रहे हैं और उसमें एक बहुत बड़ा कारण जो इसका यह भी माना जाता है कि कोविड हमारे immune system को suppress करता है, को दबाता है और इसलिए ऐसी बीमारियों का उभरना आसान हो जाता है। इसलिए उसमें आजकल हम ज्यादा सुन रहे हैं इस Mucor Mycosis के बारे में।

प्रेम रावत जी : और मैं तो लोगों को यह भी कहना चाहूंगा अगर आप इस बात से सहमत हैं कि जो लोग सुनते हैं, तो हर एक चीज जो सुनते हैं उस पर विश्वास न करें, क्योंकि अफवाह फैलाने वाले बहुत हो गए हैं और गलत-गलत बात करते हैं।

अब देखिये, लोगों को भक्ति करनी है परन्तु जिस भगवान को वो पूजना चाहते हैं कहीं जाकर के, वह तो उनके अंदर है।

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।

वो तो वहीं बैठा है। उसकी पूजा करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। भक्त बनने के लिए भक्ति की जरूरत है, परन्तु भक्त बनने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। भक्ति जिसकी करनी है वो भी तुम्हारे अंदर है, वो हमारे अंदर है और सबकुछ जिसकी जरूरत है वह सब हमारे अंदर है। तो आराम से, देखकर के एक-एक कदम ख्याल से रखकर आगे बढ़ें तो ये सबकुछ ठीक हो सकता है।

डॉ. किरण : जी, आपने बिलकुल सही कहा। जैसा कि आप कहते हैं कि "भगवान आपके अंदर ही है। जिस भी चीज की आपको जरूरत है वह आपके अंदर ही है।" तो बिलकुल आपने सही कहा कि आप जहां बैठे हैं वहीं बैठकर आपको जो चाहिए आप पा सकते हैं। तो कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है और ऐसी, ऐसी परिस्थिति में तो आप अपने और दूसरे दोनों के बचाव, समाज के बचाव के लिए सबसे अच्छी बात तो यही होगी कि जहां जरूरी न हो, आप बाहर, घर के बाहर न जाएं।

प्रेम रावत जी : बड़ी अच्छी बात कही आपने और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आप ये सारी चीजें लोगों के सामने ला सकें। और हमारे श्रोताओं को हमारा नमस्कार!

डॉ. किरण : जी, धन्यवाद!

हिम्मत का समय: छटी कड़ी (ऑडियो) 00:15:52 हिम्मत का समय: छटी कड़ी (ऑडियो) Audio Duration : 00:15:52 श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश

हिम्मत का समय (छठा भाग)

प्रेम रावत जी : Ok.. So Thank you again for joining Dr. Kiran. And I understand you are in Seattle.

डॉ. किरण : Yes, I am, जी मैं...I am in Seattle.

प्रेम रावत जी : हिंदी में स्विच कर देते हैं। और आप — कहां से ग्रेजुएट किया आपने मेडिकल स्कूल ?

डॉ. किरण : जी, मैंने मेडिकल ट्रेनिंग अपनी भारत में, अहमदाबाद शहर में बी.जे. मेडिकल कॉलेज है वहां से की थी मैंने। प्रेम रावत जी : अच्छा!

डॉ. किरण : और उसके बाद रेजीडेंसी ट्रेनिंग भी मेरी इंटरनल मेडिसिन में वहीं उससे जुड़ी हुई सिविल हॉस्पिटल है अहमदाबाद में, वहां मैंने अपनी पूरी की थी।

प्रेम रावत जी : जी, जी। तो आपको तो यह ज्ञात होगा ही कि हिन्दुस्तान में इस कोरोना वायरस को लेकर के बहुत ही गड़बड़ हो रही है और बहुत लोग परेशान हैं क्या किया जाये। और एक चीज मैं यह चाहता था कि आज कुछ आप जरा समझायें कि यह कोरोना वायरस क्या है और इससे डरने की जरूरत नहीं है। इससे सावधान होने की जरूरत है।

डॉ. किरण : जी, जी! तो यह जो कोरोना वायरस कि एक परिवार है viruses का जो, जिसमें से एक वायरस जिसे SARS-CoV-2 के नाम से पहचाना गया था, वह 2019 में सबसे पहले पाया गया था, तो तब से लेकर के कोई ऐसा — मैं मानती हूं ऐसा कोई देश नहीं है जो इस वायरस के संक्रमण से बचा रहा हो। लेकिन यह जो है, यह लहरों में कई देशों में देखा गया है तो कई देशों में एक, पहली लहर आयी, फिर वह उतर गयी, फिर दूसरी लहर आयी। तो हिन्दुस्तान में अभी जो है वह दूसरी लहर से जूझ रहे हैं सब। तो यह जो वायरस है यह जुकाम से लेकर के एक Severe acute respiratory syndrome जिसे कहते हैं वो symptoms में पूरा उसका रेंज करता है। मगर जो समझने वाली बात है कि 85 से 90 प्रतिशत लोगों में यह बहुत ही सौम्य, माइल्ड इंफेक्शन करता है, जिन्हें कोई दवा, कोई hospitalization या कोई बहुत ज्यादा मेडिकल केयर की जरूरत नहीं पड़ती। यह अपने आप ही ठीक हो जाता है। और अब तक जो दुनिया में लगभग 170 मिलियन cases दर्ज़ किये गए हैं उसमें से 150 मिलियन से ऊपर cases रिकवर हो चुके हैं। और इसका जो mortality मतलब मृत्यु रेट है वह 2 प्रतिशत से भी कम है। तो इससे हमें कंट्रोल करने की जरूरत है, पर इससे बिलकुल भी घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रेम रावत जी : यह आपने बहुत अच्छी बात कही कि डरने की बात नहीं है. डर, लोग डर जाते हैं, क्योंकि बहुत कुछ सुना है लोगों ने और कई जो इत्तला करते हैं लोगों को, वो गलत इत्तला की है, मतलब इससे कि मर जायेंगे, ये कर जायेंगे और जो मैंने सुना है उसका — वह तो बहुत साधारण-सा एक हल है उसका कि मास्क पहनो, छह फीट की दूरी रखो लोगों से और अपने हाथ धोओ.....

डॉ. किरण : जी!

प्रेम रावत जी : .... तो ये करने से आदमी बच सकता है इससे।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, जी बिलकुल आपने एकदम सही कहा कि लोगों में डर और पैनिक बहुत ही फैल रहा है, लेकिन कोरोना से बचने के ये आपने जो बताये वो बहुत-ही सरल रास्ते हैं। और एक अब और हमारे में add हो गया है इसमें जो है कि वैक्सीनेशन्स, हमारे पास अब उपलब्ध हैं। तो जैसे-जैसे लोगों के, जैसे-जैसे वैक्सीन्स और उपलब्ध होंगी, वैसे-वैसे इसका ट्रांसमिशन और भी कम होता जायेगा। तो ये मास्किंग और जितना हो सके, जितना जरूरी हो उतना ही घर से बाहर निकलें, जबतक कि इसका कंट्रोल न आये और हाथ धोये रखना, surfaces को disinfectant से साफ करते रहना और अपना जो इम्यून सिस्टम है उसे सशक्त, मजबूत रखना। क्योंकि आखिर में यह इम्यून सिस्टम ही है जो इस वायरस से लड़ता है बाकी सब दवाइयां तो जरा कुछ हेल्प करती हैं।

प्रेम रावत जी : तो यह स्वयं मनुष्य की अपनी शक्ति है अगर उसका जो इम्यून सिस्टम है वह अच्छा है तो उससे हैंडल किया जा सकता है। एक बात हमारे सुनने में आयी एक डॉक्टर कह रहे थे कुछ इसके बारे में कि जिन लोगों के ट्रांसप्लांट हुए हैं जैसे, किडनी ट्रांसप्लांट हुई है या हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है तो उन लोगों पर क्योंकि उनको दवाई लेनी पड़ती है ताकि रिएक्शन न हो इम्यून सिस्टम का तो उसकी वजह से वो बहुत ही डेंजर में हैं, खतरे में हैं कि उनको यह वायरस न लगे।

डॉ. किरण : जी, जी बिलकुल, सही कहा आपने। क्योंकि ये जिन लोगों का ट्रांसप्लांट हुआ है किसी भी ऑर्गन (organ) का तो उन्हें ऐसी दवाइयां दी जाती हैं ताकि उनका इम्यून सिस्टम उस organ को रिजेक्ट न करे। तो इसलिए उनका इम्यून सिस्टम दवाइयों से दबाया जाता है और इसलिए जब उन्हें अगर यह वायरस लगे तो इम्यून सिस्टम already दबा हुआ होता है। तो वो इतना, उसका डटकर मुकाबला नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनलोगों को खास उससे सावधानी बरतने की जरूरत है और कुछ जो कैंसर के मरीज हैं जो कि कीमोथेरेपी पर हैं या जिन्हें हृदय की तकलीफ है या डायबिटीज़ जिनका कंट्रोल नहीं है वे सब भी इसमें सीवियर बीमारी गंभीर रूप से होने में उन्हें खतरा बना रहता है।

प्रेम रावत जी : यह बात मैं इसलिए कह रहा था क्योंकि कई लोग हैं जो मास्क नहीं पहनना चाहते हैं। तो मैं उनको यह कहना चाहता हूं कि भाई, तुम नहीं पहनना चाहते हो तो कोई बात नहीं मत पहनो, परन्तु औरों के लिए तो पहनो। क्योंकि तुम उनको यह बीमारी दे सकते हो।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, हर नागरिक की यह जवाबदारी होनी चाहिए कि खुद को तो बचायें पर सामने वाले को भी बचाना बहुत जरूरी है, आप उन्हें ना दें यह बीमारी। क्योंकि यह जो वायरस है यह जितना टाइम फैलता रहेगा या उसका ट्रांसमिशन चलता रहेगा, उतना इस वायरस को मौका मिलेगा अपना रूप बदलने का, mutate होने का। तो इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हर तरीके से हम इसका ट्रांसमिशन रोकें। नहीं तो हम ऐसी स्थिति में शायद पहुंच सकते हैं जहां हमारी जो अभी वैक्सीन्स हैं, वो उतना अच्छे से काम न करें। तो हमें यह बिलकुल रोकना है।

प्रेम रावत जी : तो मतलब यह तो मानवता की बात है। यह तो सभ्यता की बात है कि कम से कम अगर हम नहीं पहनना चाहते हैं मास्क तो भाई, घर में रहो; बाहर मत जाओ और अगर बाहर जाओ तो मास्क पहनकर जाओ ताकि तुमको न लगे वह बात अलग है, परन्तु और लोगों को जिनको यह डायबिटीज़ है या हार्ट की बीमारी है या ट्रांसप्लांट है, तो उनको बहुत खतरा हो सकता है इस चीज से।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, जी बिलकुल, आपने बिलकुल सही कहा। यह हर एक की एक नैतिक जवाबदारी होनी चाहिए कि आप जो, समाज में जिन्हें इसका खतरा ज्यादा है उनकी सुरक्षा के बारे में भी आप सोचें और मास्क पहनना उसके लिए बहुत ही जरूरी है। तो मैं मानती हूं कि हर एक को पहनना चाहिए मास्क।

प्रेम रावत जी : और यह नहीं है कि सिर्फ यहां लगाया हुआ है मास्क और नाक में नहीं लगाया या फिर यहां लगाया हुआ है और मुँह में नहीं लगाया। उसको अगर पहनना है तो ठीक ढंग से पहनना है और ऐसा मास्क पहनना है जो वायरस को ट्रांसमिट न करे। के एन-95 जैसे मास्क हैं, क्योंकि जो पतले-पतले मास्क होते हैं जो सिर्फ कपड़ा लगाते हैं तो कपड़े में बहुत बड़े-बड़े छेद होते हैं अगर उसको मैग्नीफाइंग गिलास से देखा जाए तो उसमें बड़े-बड़े छेद हैं तो उनसे वायरस निकल जायेगी। परन्तु कुछ ऐसा होना चाहिए ताकि उसमें किसी भी रूप से वायरस निकल न पाए।

डॉ. किरण : जी, जी आपने बिलकुल सही कहा। तो ये मास्क जो है उसका उचित फिट होना बहुत जरूरी है। तो नाक और मुँह दोनों ही ढकना चाहिए। एक अच्छी सील होनी चाहिए तो हवा साइड से अंदर न जाये सिर्फ मास्क के थ्रू ही जाए। और यह आपने बिलकुल सही कहा कि एन -95 या के एन-95 मास्क जो होते हैं तो वो ज्यादा अच्छा फिटरेशन, ज्यादा अच्छा सुरक्षा देते हैं। कभी अगर न भी मिल पायें आपको किसी कारण से तो आजकल कहते हैं कि डबल मास्किंग का करना भी उचित रहेगा। तो जिससे कि हम एक और लेयर सुरक्षा का उसमें डाल सकें ताकि आप सुरक्षित ज्यादा रह सकें।

प्रेम रावत जी : हिन्दुस्तान में मैंने यह देखा है कि लोग छूते हैं चीजों को और फिर अपने को छूते हैं या आँख साफ कर रहे हैं या कान खुजा रहे हैं या नाक खुजा रहे हैं, तो ये सारी चीजें इन पर ध्यान जाना चाहिए लोगों का कि कहीं भी हाथ लग गया तो वायरस उसमें लग सकती है और उनको खतरा हो सकता है।

डॉ. किरण : जी बिलकुल, तो यह जो वायरस है उसका जो सबसे बड़ा mode of transmission जो हम कहते हैं, वो ड्रॉपलेट, मतलब बड़ी बूंदों से होता है, तो ये बड़ी बूंदें नीचे settle हो जाती हैं तो जिन surfaces पर, जो surfaces बहुत use होते हैं तो उन पर यह वायरस काफी टाइम तक रहता है। तो अगर उसको छुआ और फिर अपने मुँह के आस-पास आप ले गए तो आपको वह वायरस आपके शरीर में अंदर जाने की संभावना बनी रहती है। इसलिए यह कहते हैं कि जो ऐसे surfaces हों उन्हें बार-बार साफ करते रहें।अपने मुँह के आस-पास हाथ न ले जाएं जितना हो सके, क्योंकि यह वायरस नाक और मुँह से सबसे ज्यादा, सबसे आसानी से शरीर में अंदर प्रवेश करता है और जितना बार-बार आपको जितनी बार याद आये पानी और साबुन से अपने हाथ साफ करते रहें। तो ये जो बेसिक कोविड का जो प्रोटेक्शन है, उससे रहता है।

प्रेम रावत जी : हां, तो बड़ी अच्छी बात कही आपने कि इससे सचमुच में हम बच सकते हैं अगर थोड़ा-सा हम लिहाज़ करें, परहेज करें तो बहुत आसानी से हम इससे बच सकते हैं और सबकुछ ठीक हो सकता है।

डॉ. किरण : जी बिलकुल!

प्रेम रावत जी : यह तो बहुत shock का कारण बन गया है हिन्दुस्तान में कि कितने लोग चले गए हैं, परन्तु बुढ़ापे में लोग चले जाते हैं क्योंकि या फिर डायबिटीज़ है या हार्ट कंडीशन है ये सबकुछ है, परन्तु फिर भी जितने लोगों को यह वायरस सारे संसार में हुआ है उसकी mortality रेट मतलब, मरने की जो रेट है वह बहुत ही कम है अगर थोड़ा-सा भी लिहाज़ और डॉक्टरों ने तो बहुत अच्छा काम किया है इसके ऊपर।

डॉ. किरण : जी, वहां पर जो हेल्थ केयर है वह बिलकुल ही स्ट्रेच हो चुका था, पर डॉक्टर्स फिर भी अपनी पूरी जी-जान से मेहनत कर रहे हैं, पूरा काम कर रहे हैं। लेकिन लोगों को भी मैं यह आश्वस्त करना चाहूंगी कि आपने जैसे कहा, mortality रेट उसका बहुत कम है — ये हमने इतने cases देखे इसलिए हम इतना सुन रहे हैं, पर इस बीमारी का जो बेसिक mortality रेट है वह कम है, तो हमें पैनिक या डर की जरूरत नहीं है, हिम्मत रखनी है। और ये जो बेसिक हाइजीन चीजों का और जो भी directives आते हैं हमारे, हमें फॉलो करने चाहिए और अपने आपको बचाया बिलकुल जा सकता है।

प्रेम रावत जी : और यह सुनने में भी आया है कि एक चीज है "ब्लैक फंगस" तो उसके बारे में आप कुछ कहेंगे ?

डॉ. किरण : जी, तो यह ब्लैक फंगस जो हम मेडिकल अपनी भाषा में उसे "Mucor Mycosis" कहते हैं, तो यह इन्फेक्शन नया नहीं है। यह कोविड के पहले भी पाया जाता था। बहुत कम देखा जाता था क्योंकि सिर्फ जिन लोगों में इम्यून सिस्टम फिर से जिनमें कम हो जैसे कि डायबिटीज़ के मरीज जिनका शुगर कंट्रोल में नहीं है, कैंसर के मरीज जो कीमोथेरपी पर हैं या जो ट्रांसप्लांट के patients हैं, immuno separation पर उन सब में देखा जाता था यह ब्लैक फंगस। लेकिन अब जब से यह कोविड की दूसरी लहर आयी है भारत में तो हम इसके cases बढ़ गए हैं यह सुन रहे हैं और उसमें एक बहुत बड़ा कारण जो इसका यह भी माना जाता है कि कोविड हमारे immune system को suppress करता है, को दबाता है और इसलिए ऐसी बीमारियों का उभरना आसान हो जाता है। इसलिए उसमें आजकल हम ज्यादा सुन रहे हैं इस Mucor Mycosis के बारे में।

प्रेम रावत जी : और मैं तो लोगों को यह भी कहना चाहूंगा अगर आप इस बात से सहमत हैं कि जो लोग सुनते हैं, तो हर एक चीज जो सुनते हैं उस पर विश्वास न करें, क्योंकि अफवाह फैलाने वाले बहुत हो गए हैं और गलत-गलत बात करते हैं।

अब देखिये, लोगों को भक्ति करनी है परन्तु जिस भगवान को वो पूजना चाहते हैं कहीं जाकर के, वह तो उनके अंदर है।

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।

वो तो वहीं बैठा है। उसकी पूजा करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। भक्त बनने के लिए भक्ति की जरूरत है, परन्तु भक्त बनने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। भक्ति जिसकी करनी है वो भी तुम्हारे अंदर है, वो हमारे अंदर है और सबकुछ जिसकी जरूरत है वह सब हमारे अंदर है। तो आराम से, देखकर के एक-एक कदम ख्याल से रखकर आगे बढ़ें तो ये सबकुछ ठीक हो सकता है।

डॉ. किरण : जी, आपने बिलकुल सही कहा। जैसा कि आप कहते हैं कि "भगवान आपके अंदर ही है। जिस भी चीज की आपको जरूरत है वह आपके अंदर ही है।" तो बिलकुल आपने सही कहा कि आप जहां बैठे हैं वहीं बैठकर आपको जो चाहिए आप पा सकते हैं। तो कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है और ऐसी, ऐसी परिस्थिति में तो आप अपने और दूसरे दोनों के बचाव, समाज के बचाव के लिए सबसे अच्छी बात तो यही होगी कि जहां जरूरी न हो, आप बाहर, घर के बाहर न जाएं।

प्रेम रावत जी : बड़ी अच्छी बात कही आपने और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आप ये सारी चीजें लोगों के सामने ला सकें। और हमारे श्रोताओं को हमारा नमस्कार!

डॉ. किरण : जी, धन्यवाद!

हिम्मत का समय: तीसरी कड़ी (वीडियो) 00:09:58 हिम्मत का समय: तीसरी कड़ी (वीडियो) Video Duration : 00:09:58 श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश

प्रेम रावत जी:

सभी लोगों को मेरा नमस्कार!

और एक बात है कि —

भूले मन समझ के लाद लदनिया।

थोड़ा लाद, बहुत मत लादे, टूट जाए तेरी गरदनिया।।

भूखा होय तो भोजन पा ले आगे हाट ना बनिया।

प्यासा होय तो पानी पी ले आगे देश ना पनिया।।

कहत कबीर सुनो भाई साधो काल के हाथ कमनिया।

क्या कह रहे हैं कबीरदास जी ?

कह रहे हैं कि जो करना है वो अब कर ले। आगे क्या होगा किसी को नहीं मालूम। क्या है आगे ? किसी को नहीं मालूम। यही बात जब आगे दोहराई जाती है तो लोगों को डर लगता है, क्या होगा! भाई, विश्वास करने की जरूरत है, समझने की जरूरत है कि किसने ये सारी रचना की और इसके अंदर जो कुछ भी सुंदरता है वो सब उपलब्ध कराई। जो मनुष्य को जिन चीजों की जरूरत थी या जिन चीजों की जरूरत है, वो चीजें सब मौजूद हैं। तो डर कैसे भी आ जाता है, क्योंकि जब आदमी समझता नहीं है, जब मनुष्य समझता नहीं है कि क्या हो रहा है ये वो भूल जाता है कि उस पर कितनी दया है। ये वो भूल जाता है कि जो कुछ भी हुआ इस जीवन के अंदर, वह एक मौका है। और मौका है आनंद लेने का। कल का नहीं है, परसों का नहीं है, नितरसों का नहीं है, पर जबतक यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है, तबतक वो मौका है। और उसका पूरा-पूरा लाभ उठाना ये हमारा फर्ज़ बनता है।

तो इच्छायें तो बहुत हैं मनुष्य की। बहुत चीजें चाहता है वो। और ये भी कहा है —

चाह गई चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह,

जिनको कछु न चाहिए सोई शहंशाह।

अगर शहंशाह बनना है तो क्या — जो चाह गई चिंता मिटी

पर मनुष्य चिंता जब करता है तो वो भूल जाता है कि क्या-क्या उसके पास है। जब वो चिंता करता है, जब वो देखना शुरू करता है उन चीजों को, जो वो समझता है कि उसके पास नहीं हैं। जिस आनंद की मनुष्य कोशिश करता है अपने जीवन में, वो सच्चा आनंद उसके अंदर हमेशा है। चाहे कुछ भी हो, चाहे परिस्स्थितियां बदलें। अब ये जो मौका है, ये डरने का नहीं है। ये हिम्मत से काम लेने का है। आंखें खोलकर चलने का है। लोग हैं जो डरते हैं — अभी किसी ने मेरे को एक चिट्ठी भेजी, तो उसमें लिखा हुआ है कि "मेरी माँ भी अब नहीं रही.... लोग मेरी माँ को सताते थे। और ये सब होने वाबजूद भी वो आपके ज्ञान को अच्छी तरीके से समझना चाहती थी और उसका पालन करती थी, तो उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ?"

उसके जीवन में क्या है ये किसको मालूम है ? एक तो उसको मालूम है जिसका जीवन है। और ये एक उसको मालूम है जिसने ये जीवन दिया है। देखिये, सबसे बड़ी बात है लोग चाहते हैं कि जब रोशनी आये, तो रोशनी उनको वो दिखाए जो वो देखना चाहते हैं। पर रोशनी ये नहीं करती है। रोशनी वो दिखाती है, जो है। रोशनी कुछ नहीं बनाती है अपने में। ज्ञान रोशनी है। ज्ञान दिया जो है, जलता हुआ दिया है, जो रोशनी दे। क्या दिखाई देता है उसमें ? क्योंकि मनुष्य चाहता है अँधेरा रहे ताकि वो देख न सके। और अँधेरे के बारे में भी कुछ कहा जाए। तो अँधेरा भी एक ऐसी चीज है कि जैसे अँधेरा होता है आँख देखना चाहती है। कुछ भी हो आँख देखना चाहती है। तो जो आईरिस है आँख का वो खुलने लगता है, खुलने लगता है, खुलने लगता है, खुलने लगता है, तो वो इतना खुल जाता है कि अगर थोड़ी-सी भी रोशनी उस पर पड़े तो उसको चमका देने वाली बात होती है।

कई बार इतनी देर अँधेरा रहे, इतनी देर अँधेरा रहे तो फिर जब रोशनी होती है तो आदमी के लिए वो ठीक नहीं है। वह आँखें बंद करने लगता है। क्या हमारे जीवन के अंदर वही हो रहा है कि हम देख नहीं पा रहे हैं और अँधेरे के इतने आदी बन गए हैं कि जो प्रकाश है जब वो आता है तो वही हमको देखने के लिए रोक रहा है, उसी से चौंक जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। मनुष्य के जीवन के अंदर सबसे बड़ी बात कि जबतक तुम जीवित हो तुम्हारे जीवन के अंदर एक आशा होनी चाहिए। निराशा नहीं, आशा। जबतक तुम जीवित हो तो तुम उस चीज को देखो जो सत्य है, असत्य को नहीं। अगर सत्य को देखोगे तो तुमको असत्य से डरने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

परन्तु नजर कहां होनी पड़ेगी, कहां होनी चाहिए ? सत्य पर होनी चाहिए, असत्य पर नहीं। लोग हिम्मत हारने लगते हैं। लोग समझने लगते हैं अब क्या होगा! क्या होगा! हिम्मत से काम लो; डरो मत। डरो मत। जबतक तुम जिन्दा हो तबतक कोई न कोई चीज तुम्हारे अंदर है जिससे कि तुम अपने जीवन के अंदर समझ सकते हो कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ। लोग तो — "मैं अभागा हूँ। मेरे साथ ये हो गया, मेरे साथ ये हो गया, मेरे साथ ये हो गया!" परन्तु जबतक यह स्वांस आ रहा है, तुम भाग्यशाली हो। जबतक तुम जीवित हो तबतक भाग्यशाली हो। और अगर तुम ही डरने लगे तो तुम्हारे आस-पास जितने भी हैं, जो तुमसे प्रेम करते हैं, वो तो डरेंगे ही। और अगर वो भी डरने लगे और तुम भी डरने लगे और सभी डरने लगे तो डर बढ़ेगा। हिम्मत कौन करेगा ? जब समय अच्छा नहीं होता है, तब हिम्मत की जरूरत है, प्रकाश की जरूरत है और वो प्रकाश तुम्हारे अंदर है। उसको समझो, उसको जानो, उसको देखो। और यह मौका है जबतक तुम जीवित हो मैं ये कैसे कह सकता हूँ।

क्योंकि जबतक यह स्वांस आ रहा है जा रहा है, वो कृपा है उसको स्वीकार करो। तो अपने जीवन के अंदर ध्यान से, ख्याल से रहो ताकि तुम बीमार न पड़ो। और अगर बीमार पड़ भी गए तो हिम्मत से काम लो, ये नहीं डर से। क्योंकि जब डरोगे तो तुम्हारा शरीर और कमजोर होगा। डर से नहीं, हिम्मत से काम लो।

तो सभी लोगों को मेरा नमस्कार!

हिम्मत का समय: पाँचवी कड़ी (वीडियो) 00:28:55 हिम्मत का समय: पाँचवी कड़ी (वीडियो) Video Duration : 00:28:55 श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश

प्रेम रावत जी:

सभी लोगों को हमारा नमस्कार!

और हिन्दुस्तान में तो समस्या कोरोना वायरस को लेकर बहुत ही गंभीर है। खैर, मैं बहुत कुछ कह सकता हूँ इसके बारे में, परन्तु यह समय नहीं है दोष देने का। यह समय है एकता का और एक-दूसरे की मदद करने का। क्योंकि सबसे बड़ी चीज तो यह है कि हम लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं कि इस बीमारी को फैलायें ना, मास्क पहनें, हाथ धोएं और आइसोलेशन में रहें। आज उसी को लेकर के काफी सारे प्रश्न हैं लोगों के, मैं पढ़ना चाहता हूं।

तो यह कोलकाता से प्रश्न आया है कि "इस महामारी से जहां इंसान काफी डरे हुए हैं, हर तरफ से बुरी खबर आ रही है और लोग अपनी हिम्मत खो रहे हैं और जितना भी कोशिश करते हैं अपने अंदर हिम्मत लाने की लेकिन फिर थोड़ी देर के बाद जैसे ही कोई बुरी खबर आती है तो फिर से घबराने लगते हैं कि अब क्या होगा! ऐसी परिस्थिति में हम अपने आपको कैसे संभालें और इस परेशानी से बाहर कैसे निकलें ?"

तो देखिये, यह बहुत ही गंभीर बात है और सचमुच में घबराने वाली बात भी है। परन्तु इस सारे माहौल के बीच में एक चीज और हो रही है। ठीक है, बुरी तरीके से लोग पेश आ रहे हैं इस चीज से, परेशान हैं इस चीज से, इस कोरोना वायरस से और बहुत इस संसार को छोड़कर जा भी रहे हैं, परन्तु इन सारी चीजों के बीच में एक आप हैं और आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है। अब यह बात मैंने बहुत पहले कही हुई है, परन्तु इसका महत्व इस समय क्या है वह बहुत ही ज्यादा महत्व है, बहुत ही बड़ी बात है कि इस सारे माहौल में, इस माहौल के बीच में आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है। चाहे कैसी भी खबर बाहर से आये, पर अंदर की खबर क्या है! अंदर की खबर है कि अभी भी आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है। उस, जिसने सारे संसार की रचना की है, वह अभी भी आपके अंदर है। वह शक्ति अभी भी आपके अंदर है। यह भी एक खबर है। इन सारी खबरों के बीच में, यह हो गया, वो हो गया, वहां वो गया, वहां वो गया — इन सारी खबरों के बीच में एक और खबर है और वह खबर है कि आप अभी जीवित हैं। यह खबर सुनी ? यह मैं बताऊंगा खबर। क्योंकि यह सबसे बड़ी खबर है, इसको भूल मत जाना। चाहे कितनी भी चीजें आये बाहर से, जो घबराने वाली हों, परन्तु यह एक खबर है जिससे मनुष्य घबरायेगा नहीं और जबतक आप जीवित हैं आपके अंदर हिम्मत है। आप कुछ कर सकते हैं और जो कर सकते हैं वह कीजिये। यह है समय शांत होने का। मैं लोगों से कहता हूँ "शांति तुम्हारे अंदर है" कोई ध्यान नहीं देता है। जरूरत नहीं है, क्योंकि कभी सोशल मीडिया के बीच में जा रहे हैं, कभी ये कर रहे हैं, कभी वो कर रहे हैं।

मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय ।

एकै रंग में जो रहै, ऐसा बिरला कोय ।।

सारी दुनिया बदलती रहती है उसके पीछे सब लोग भाग रहे हैं, कोई ये कर रहा है, कोई वो कर रहा है, कोई वो कर रहा है, कोई वो कर रहा है और अब आयी कोरोना वायरस और इसने सारे-सारे विश्व को बैठा दिया। सारे विश्व को इसने बैठा दिया, बैठ जाओ। किसके साथ रहोगे तुम ? अपने साथ रहोगे तुम। तो जो अपने को जानता ही नहीं है, अपने को समझता ही नहीं है, वह अपने साथ कैसे रहेगा! होना तो ये चाहिए, होना तो ये चाहिए कि मनुष्य को अगर अपने साथ रहना पड़े तो उसको कोई संकोच नहीं होना चाहिए। मैं ढंग की बात कह रहा हूं कि नहीं ? उसको कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपने घर में जाते हुए कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपना खाना खाते हुए कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपने पलंग पर लेटने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपना पानी पीने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। यही तो हम कोशिश करते हैं! यही तो हम कोशिश करते हैं।

देखिये, मेरे को मालूम नहीं है कि आप कभी अपने बच्चों को लेने के लिए स्कूल गए। हो सकता है आपके बच्चे ही ना हों, पर फिर भी आपने देखा होगा कि बच्चों को लेने के लिए स्कूल जाते हैं माँ-बाप। कभी पिता जाता है, कभी माँ जाती है। तो उनको हजारों बच्चे आ रहे हैं, हो सकता है 500 बच्चे हों, 600 बच्चे हों, 1000 भी हों उनको उन 1000 में से कुछ लेना-देना नहीं है, एक बच्चा जो उनका है उसको वो देखना चाहते हैं। बच्चे आ रहे हैं, कोई उनका रिएक्शन नहीं है, कोई ये नहीं है कि आओ और जैसे ही वो जो उनका है, जैसे ही उसको देखते हैं उनके मुंह में मुस्कान आ जाती है। अपना जो है अगर इसको हम नहीं जानते, तो फिर किस चीज को जानते हैं ? जो अपना है अगर उसी को नहीं पहचानते हैं, तो क्या पहचानते हैं ? जो अपना नहीं है तो इसका मतलब है कि जो अपना बच्चा है उसको तो कोई ले नहीं रहा है, कोई लेने के लिए आया ही नहीं है और सारे बच्चे जो हैं उनको इकट्ठा करके अपने कार में रख रहे हैं। तो ऐसे कैसे काम चलेगा ? यह तो गलत बात है। यह तो गलत बात है।

अगर आप ट्रेन स्टेशन पर जाते हैं या हवाईअड्डे पर जाते हैं, अपनी पत्नी को लेने के लिए जाते हैं या अपने पति को लेने के लिए जाते हैं या अपने भाई को लेने के लिए जाते हैं तो कितने ही लोग वहां से गुजर रहे हैं उनसे आपका क्या लेना-देना है, कुछ लेना-देना नहीं है। परन्तु एक व्यक्ति जिसको आप लेने के लिए आये हैं, उसको पहचानना बहुत जरूरी है। उसको पहचानना बहुत जरूरी है। तो यह तो हालत हो गयी है हमारी इस दुनिया में कि हम अपने आपको नहीं जानते हैं और सबकुछ जानते हैं। और सबकुछ जानने के लिए हम अपने आपको खोने में मजबूर हो गए हैं। इसका परिणाम क्या होगा ? देख लीजिये क्या परिणाम है इसका! लोग व्याकुल हो जाते हैं। अपने साथ नहीं रह सकते, क्योंकि समझते ही नहीं हैं कि वह कौन हैं। ये जानते हैं यह मेरा है। यह कहने के लिए तो बिलकुल तैयार हैं, यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, पर मैं कौन हूं यह किसी को नहीं मालूम। तो जब मैं कौन हूं नहीं मालूम है, तो 'यह मेरा है' यह कैसे आपको मालूम कि यह किसका है ?

तो ये दुनिया में ऐसे ही सारे चक्कर रहते हैं। एक खबर है कि आप अभी जीवित हैं, इस खबर को भी सुनिये। इसको भी सुनिये और इसका क्या मायने है, इसको भी समझिये। क्योंकि यह खबर जो है, यह एकदम ताज़ा खबर है। यह अब की खबर है — कल की नहीं, परसों की नहीं, यह अब की खबर है कि आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आप जीवित हैं। इसको मत भूलिए। आगे बहुत कुछ होना है। पर आगे बहुत कुछ, जो कुछ भी होना है ध्यान जाना चाहिए कि इस समय क्या हो रहा है। तो यह बहुत जरूरी बात है।

दूसरा प्रश्न, उत्तराखंड से आया है — "मैंने आपका "हिम्मत का सन्देश" कार्यक्रम देखा। आप कहते हैं कि मनुष्य अपने साथ रहना भूल गया है। जब हम आइसोलेशन में रहते हैं, तो बहुत निराश हो जाते हैं। जमाने के साथ रहते हुए खुद के साथ समय कैसे बितायें ? ऐसा क्या किया जाए कि अपने साथ रहने में बोरियत न हो ?"

बोर, बोर हो जाते हैं लोग, अपने साथ — दूसरों के साथ नहीं, अपने साथ, क्योंकि अपने को नहीं समझते हैं। अपने को नहीं जानते हैं। क्या चाहिए ? वही वाली बात है कि मनुष्य मेले में गया। मेले में जब बच्चा जाता है कभी गुब्बारे देखता है, कभी ये देखता है, कभी वो देखता है। ये सारी चीजें लगी हुई हैं, लगी हुई हैं, लगी हुई हैं, लगी हुई हैं और एक ऊंगली जो उसने पकड़ी हुई है, वो ऊंगली कितना जरूरी है उसको पकड़ना, वो वह भूल जाता है। और धीरे-धीरे उसका ध्यान भटकते-भटकते-भटकते गुब्बारों में जा रहा है कभी, खिलौनों में जा रहा है कभी, खाने पर जा रहा है कभी, यहां जा रहा है कभी वहां जा रहा है, उस ऊंगली को छोड़ देता है। जब वह ऊंगली को छोड़ देता है, तो जिस चीज ने उसका ध्यान भटकाया वह वहां अभी भी है। धीरे-धीरे-धीरे-धीरे उसको एहसास नहीं होता है कि क्या हो गया, खो जाता है। फिर जब उसको यह एहसास होता है कि कितनी जरूरी बात है कि वो ऊंगली मैंने पकड़ी हुई है और जब अपनी माँ या पिता की तरफ देखने की कोशिश करता है तो वहां कोई है ही नहीं। तब क्या हाल होता है ? तब क्या हाल होता है ? वो सारी चीजें जो उसको, जिसके कारण उसने वो ऊंगली छोड़ दी वो तो अभी भी वहां हैं, पर अब उसमें कोई भी दिलचस्पी उस बालक की नहीं है। जिस चीज के बारे में मैं आपसे कह रहा हूं वह बोरिंग की बात नहीं है।

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहि, अलख पुरुष अविनाशी।।

अगर आपको उसकी दोस्ती, उससे मिलन हो जाए, उसके साथ रहना हो तो क्या आप बोर होंगे ? बोर होना चाहिए ?

अरे, मन के पीछे क्या भाग रहे हैं आप! इस दुनिया के पीछे क्या भाग रहे हैं आप! यह दुनिया मतलब की है और जिस दिन आप इसके पीछे नहीं भाग रहे होंगे, यह आपको छोड़ देगी। इस दुनिया के पीछे भागना वैसे ही भागना है जैसे कुत्ते कार के पीछे भागते हैं। आपने देखा होगा, कुत्ते कार के पीछे भागते हैं। तो जैसे कुत्ते कार के पीछे भागते हैं, वैसे ही मनुष्य जो इस माया में लगा हुआ है वह वही कर रहा है। तो कुत्ता क्या समझता है कि वह कार पकड़ लेगा ? अगर पकड़ भी लेगा तो करेगा क्या उसके साथ ? खा तो सकता नहीं है उसको। करेगा क्या, कुछ नहीं करेगा। इस जिंदगी के अंदर तुम हो।

देखो, तीन चीजें हैं — एक तो वो है जो था, है और रहेगा, वह तुम्हारे अंदर है। “सोई हंस तेरे घट माहि, अलख पुरुष अविनाशी” — जिसका कभी नाश नहीं होगा, जो हमेशा है। और एक तुम हो, जो नहीं थे, हो और आगे नहीं रहोगे। तुम तो हो बीच में। एक तरफ तो है वह अलख पुरुष अविनाशी, जो था, है, रहेगा। बीच में हो तुम, जो नहीं थे, हो और आगे नहीं रहोगे और तुम पीछे किसके भाग रहे हो ? पीछे भाग रहे हो उसके जो न थी, न है, न रहेगी। जिसको कहते हैं 'माया'।

लोग हमसे, जब हम यह बात कहते थे लोगों से तो लोग कहते थे कि "जी आप प्रैक्टिकल बात नहीं कर रहे हो, प्रैक्टिकल बात होनी चाहिए। अब कर लो प्रैक्टिकल। क्या करोगे ? गवर्नमेंट ने तो साफ कह दिया, आइसोलेशन में रहो। क्या करोगे ? एक मास्क पहनने में लोगों को दिक्कत हो गयी है। अरे, ठीक है यह बीमारी बहुत बड़ी बीमारी है, परन्तु इसका इलाज भी तो बड़ा सरल है। आइसोलेशन में रहो, मास्क पहनो और हाथ धोओ। कम से कम छह फीट का वास्ता रखो, डिस्टेंस रखो लोगों से। सरल बात है, परन्तु यह भी करने में लोगों को संकोच होता है।

एक और है, यह आया है रायगढ़ से प्रश्न। नहीं, यह वाला है, बोकारो से — "मेरे जान-पहचान के बहुत सारे लोगों का इस कोरोना महामारी से देहांत हो गया है और रोज न्यूज़ चैनलों पर मरने वाली न्यूज़ सुनकर मेरे अंदर एक डर पैदा होता है। कृपया आप मेरी मदद करें मैं इस डर से कैसे बाहर निकलूं ?”

डरने का समय नहीं है यह। डरने से होगा क्या ? कभी डरने से कुछ हुआ है ? कभी डरने से कुछ हुआ है ? किसी का भी कुछ हुआ है ? किसी का कुछ नहीं हुआ है। डरने का समय नहीं है, हिम्मत का समय है। जो है उस चीज को देखो। क्या है ? तुम जीवित हो, इस चीज को क्यों नहीं देख रहे हो ? यह भी तो है। ठीक है, लोग मर रहे हैं, ये है, वो है। अरे, हमारे — हमको दुःख होता है, हम तो अमेरिका में बैठे हुए हैं, परन्तु जब सुनते हैं कि कितने लोगों के साथ ये हो रहा है हमें सचमुच में बहुत दुःख होता है। फिर क्या ऐसा नहीं होना चाहिए! सबसे बड़ी बात तो इस बीमारी की यह है कि जो कुछ भी इससे हो रहा है यह बड़ी आसानी से टाला जा सकता था, परन्तु लोगों ने जहां ध्यान नहीं दिया, तो वहां टाल नहीं सके और ऐसे लोग हैं — अभी मैं देख रहा था खबर में ऐसे लोग हैं, जिनके ट्रांसप्लांट हो रखे हैं। जैसे गुर्दे ट्रांसप्लांट हो गये या उनका दिल ट्रांसप्लांट हो गया और उनलोगों के साथ, यह अभी खबर आयी है कि वो जो लोग हैं जिनका ट्रांसप्लांट हुआ है, तो उनको गोली लेनी पड़ती है कि रिएक्शन न हो, ट्रांसप्लांट का।

तो उनके साथ यह चक्कर चल रहा है कि जब कोरोना वायरस का वो वैक्सीन लेते हैं, तो कोई उससे इम्युनिटी होती ही नहीं है। वो काम ही नहीं कर रहा है। तो कम से कम उनलोगों के लिए, उनलोगों की खातिर, जो लोग वृद्ध हैं उनके खातिर कम से कम हम अपने, जो कुछ भी हम कर सकते हैं, मास्क पहनें। अरे, अपने लिए नहीं करना है तो मत करो, परन्तु दूसरे लोग भी तो हैं। दूसरे लोग भी हैं। कम से कम एक-दूसरे का — यह तो मान-सम्मान नहीं भी करना है, तो कम से कम यह तो करो कि मत इस बीमारी को फैलाओ। यह बहुत जरूरी बात है।

तो डरने से कुछ नहीं होगा। डर की बात नहीं है। तुम्हारे अंदर हिम्मत है, इसको बाहर लाओ। तुम्हारे अंदर शांति की प्यास है, इसको बाहर लाओ। तुम्हारे अंदर अपने को जानने की इच्छा है, इसको बाहर लाओ। तुम भी उस अविनाशी के साथ रहना चाहते हो, उस अविनाशी का अनुभव करना चाहते हो, उसको बाहर लाओ। और जो इच्छायें तुम्हारी हैं आयेंगी, जायेंगी; आयेंगी, जायेंगी, नहीं भी पूरी हुईं तो नहीं भी पूरी हुईं। निराशा की बात नहीं है। निराशा तो उस चीज की होनी चाहिए और अगर डर ही कर रहना है तुमको, तो क्या कहा है कि —

चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास।

और जो चितवे नाम बिनु, सोई काल की फांस।।

वही चीज, चिंता अगर किसी चीज की करनी है तो उस चीज की चिंता करो, तुम्हारे अंदर अभी भी जीवन है और इसको स्वीकार करो, सचमुच में इसको स्वीकार करो और भ्रमित मत हो। तुम्हारे अंदर हिम्मत है, इसको बाहर लाओ।

और यह है रायगढ़ का — "आपने कहा कि हम भाग्यशाली हैं, लेकिन संसार में इतना अँधेरा है कि हमको रोशनी दिखाई नहीं दे रही है। अपने भाग्य को हम कैसे पहचानें ? वर्तमान परिस्थितियों में कैसे सुख और शांति प्राप्त हो ?"

ठीक है, आपको बाहर रोशनी नहीं दिखाई दे रही है, कोई बात नहीं। कोई बात नहीं। बाहर रोशनी दिखाई दे न दे, अंदर तो रोशनी दिखनी चाहिए। अंदर तुम्हारे रोशनी है। बाहर चाहे कितना भी अँधेरा हो, अगर अंदर रोशनी है तो तुम्हारे लिए सबकुछ है। इस, हम बात करते हैं दीये की, पर एक दिन मैं सोच रहा था दीया बुझा भी हो सकता है, परन्तु जो रोशनी है, वह रोशनी है। चाहे वह दीये में हो, चाहे वह लकड़ी जलने से हो, चाहे किसी भी चीज से हो रोशनी तो रोशनी है और तुम्हारे अंदर एक रोशनी है। क्यों रोशनी है ? क्योंकि वो जो सब चीजों की रोशनी है, वह तुम्हारे अंदर विराजमान है। जबतक तुम उस रोशनी को देखना शुरू नहीं करोगे, जबतक तुम्हारे जिंदगी के अंदर वो रोशनी का उजाला नहीं होगा तबतक तुम समझ नहीं पाओगे कि यह जिंदगी क्या है। अगर सचमुच में देखा जाए तो कितना बड़ा जोक है यह। एक दिन पैदा हुए, कुछ दिनों के लिए रहते हैं और उसके बाद चले गए। कहां गए, किसी को नहीं मालूम। वापिस आने का कोई मतलब नहीं है। कहां से आये, यह नहीं मालूम। कहां जायेंगे, यह नहीं मालूम। चंद दिनों के लिए जिंदा हैं और वह भी समय इतनी जल्दी गुजर जाता है कि पूछिए मत।

यह तो मज़ाक है। कैसा मज़ाक है! कैसा मज़ाक है! तो फिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि — बड़े भाग्य मानुष तन पावा — क्यों ? इस जिंदगी का अस्तित्व क्या हुआ ?

अगर यही होना है कि एक दिन पैदा हुए, एक दिन जाना है, चंद दिन रहना है और अपने साथ कुछ ले जा नहीं सकते। ऊपर से अपने साथ कुछ ले जा नहीं सकते और कोशिश कर रहे हैं, कर रहे हैं, कर रहे हैं, कर रहे हैं, कर रहे हैं हर दिन, हर रात। किसी को अपने बेटे की लगी है, किसी को अपनी बीवी की लगी है , किसी को अपनी पत्नी की लगी है, किसी को अपने बाप की लगी है, किसी को अपने चाचा की लगी है, किसी को अपनी गाय की लगी है, किसी को अपनी भैंस की लगी है। किसी को कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ लगा हुआ है और न अपनी भैंस साथ ले जा सकते हो, न अपनी बीवी साथ ले जा सकते हो, न अपना बेटा साथ ले जा सकते हो, न अपनी चाची साथ ले जा सकते हो, न अपना चाचा साथ जायेगा, कोई भी नहीं जाएगा।

किसी को अपने घर की पड़ी है, घर भी साथ नहीं जाएगा। किसी को अपनी घड़ी की पड़ी है, वह भी साथ नहीं जाएगी। किसी को अपने सूट की पड़ी है, वह भी साथ नहीं जायेगा। लो भला बताओ, इतनी मेहनत करके तो सबकुछ इकट्ठा किया और ये भी सब साथ नहीं जाएगा। तो ये कैसे हो गया ? ये कैसे हो गया ? तो यह तो मज़ाक है, परन्तु यह जिंदगी मज़ाक नहीं है। क्यों नहीं है ? क्योंकि इस, इस शरीर में, इस शरीर में, इस समय, इस समय —

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं — ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिसका ध्यान करते हैं —

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहि, अलख पुरुष अविनाशी।।

क्योंकि वह है, क्योंकि वह शक्ति है, वह रोशनी है, अँधेरा नहीं है, तो उसको बाहर लाना है। उसको, अपने अंदर उसका अनुभव करना है। तो यह बहुत जरूरी चीज है।

यह दिल्ली से आया है — "मैंने अंजन टीवी पर आपका कार्यक्रम देखा। आपने हिम्मत की बात की। आपके कार्यक्रम का शीर्षक भी है "हिम्मत का समय".... आपको इस टाइटल का विचार कहां से आया ?

भाई, हिम्मत का समय है। यह तो जब भी, जब भी बुरा समय मनुष्य का आता है, हिम्मत की जरूरत है। जब सबकुछ उसके अनुकूल हो रहा है, तब उसको हिम्मत की जरूरत नहीं है, परन्तु एक बात का ख्याल रखो। जब सबकुछ बढ़िया चल रहा है, तो सबसे सावधान तब ही होना चाहिए। अब यह मैंने कैसे कह दिया कि जब सबकुछ बढ़िया चल रहा हो, तब सबसे ज्यादा सावधान होना चाहिए। तो मैं आपको छोटी-सी बात सुनाता हूं। अगर प्याला एकदम भरा हुआ है, ऊपर तक भरा हुआ है और उसको आप एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे हैं, तो आपको कितना ध्यान देना पड़ेगा ? धीरे, बड़ा सावधान होकर के चलना पड़ेगा या नहीं ? जब सबकुछ बढ़िया हो रहा है, जब सबकुछ बढ़िया है तब मनुष्य को सबसे सावधान होना चाहिए। जो प्याला भरा हुआ नहीं है उसको ले जाने में क्या सावधानी! तो जब बुरा समय आता है, हिम्मत की जरूरत है और जब अच्छा समय भी चल रहा है तब भी हिम्मत की जरूरत है कि ध्यान बंटे ना और ध्यान उस चीज पर रहे जो चीज हमारे अंदर है।

तो आगे और प्रश्न हैं काफी सारे आये हुए हैं, उनका और भी जवाब देंगे।

कृपया हिम्मत से काम लें और आपके अंदर जो चीज विराजमान है उसको मत भूलो। कोई भी खबर बाहर से आये, कितनी भी बुरी खबर आये यह मत भूलो कि आपके अंदर अभी यह स्वांस चल रहा है।

सभी लोगों को मेरा नमस्कार!

हिम्मत का समय: पाँचवी कड़ी (ऑडियो) 00:28:55 हिम्मत का समय: पाँचवी कड़ी (ऑडियो) Audio Duration : 00:28:55 श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश

प्रेम रावत जी:

सभी लोगों को हमारा नमस्कार!

और हिन्दुस्तान में तो समस्या कोरोना वायरस को लेकर बहुत ही गंभीर है। खैर, मैं बहुत कुछ कह सकता हूँ इसके बारे में, परन्तु यह समय नहीं है दोष देने का। यह समय है एकता का और एक-दूसरे की मदद करने का। क्योंकि सबसे बड़ी चीज तो यह है कि हम लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं कि इस बीमारी को फैलायें ना, मास्क पहनें, हाथ धोएं और आइसोलेशन में रहें। आज उसी को लेकर के काफी सारे प्रश्न हैं लोगों के, मैं पढ़ना चाहता हूं।

तो यह कोलकाता से प्रश्न आया है कि "इस महामारी से जहां इंसान काफी डरे हुए हैं, हर तरफ से बुरी खबर आ रही है और लोग अपनी हिम्मत खो रहे हैं और जितना भी कोशिश करते हैं अपने अंदर हिम्मत लाने की लेकिन फिर थोड़ी देर के बाद जैसे ही कोई बुरी खबर आती है तो फिर से घबराने लगते हैं कि अब क्या होगा! ऐसी परिस्थिति में हम अपने आपको कैसे संभालें और इस परेशानी से बाहर कैसे निकलें ?"

तो देखिये, यह बहुत ही गंभीर बात है और सचमुच में घबराने वाली बात भी है। परन्तु इस सारे माहौल के बीच में एक चीज और हो रही है। ठीक है, बुरी तरीके से लोग पेश आ रहे हैं इस चीज से, परेशान हैं इस चीज से, इस कोरोना वायरस से और बहुत इस संसार को छोड़कर जा भी रहे हैं, परन्तु इन सारी चीजों के बीच में एक आप हैं और आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है। अब यह बात मैंने बहुत पहले कही हुई है, परन्तु इसका महत्व इस समय क्या है वह बहुत ही ज्यादा महत्व है, बहुत ही बड़ी बात है कि इस सारे माहौल में, इस माहौल के बीच में आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है। चाहे कैसी भी खबर बाहर से आये, पर अंदर की खबर क्या है! अंदर की खबर है कि अभी भी आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है। उस, जिसने सारे संसार की रचना की है, वह अभी भी आपके अंदर है। वह शक्ति अभी भी आपके अंदर है। यह भी एक खबर है। इन सारी खबरों के बीच में, यह हो गया, वो हो गया, वहां वो गया, वहां वो गया — इन सारी खबरों के बीच में एक और खबर है और वह खबर है कि आप अभी जीवित हैं। यह खबर सुनी ? यह मैं बताऊंगा खबर। क्योंकि यह सबसे बड़ी खबर है, इसको भूल मत जाना। चाहे कितनी भी चीजें आये बाहर से, जो घबराने वाली हों, परन्तु यह एक खबर है जिससे मनुष्य घबरायेगा नहीं और जबतक आप जीवित हैं आपके अंदर हिम्मत है। आप कुछ कर सकते हैं और जो कर सकते हैं वह कीजिये। यह है समय शांत होने का। मैं लोगों से कहता हूँ "शांति तुम्हारे अंदर है" कोई ध्यान नहीं देता है। जरूरत नहीं है, क्योंकि कभी सोशल मीडिया के बीच में जा रहे हैं, कभी ये कर रहे हैं, कभी वो कर रहे हैं।

मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय ।

एकै रंग में जो रहै, ऐसा बिरला कोय ।।

सारी दुनिया बदलती रहती है उसके पीछे सब लोग भाग रहे हैं, कोई ये कर रहा है, कोई वो कर रहा है, कोई वो कर रहा है, कोई वो कर रहा है और अब आयी कोरोना वायरस और इसने सारे-सारे विश्व को बैठा दिया। सारे विश्व को इसने बैठा दिया, बैठ जाओ। किसके साथ रहोगे तुम ? अपने साथ रहोगे तुम। तो जो अपने को जानता ही नहीं है, अपने को समझता ही नहीं है, वह अपने साथ कैसे रहेगा! होना तो ये चाहिए, होना तो ये चाहिए कि मनुष्य को अगर अपने साथ रहना पड़े तो उसको कोई संकोच नहीं होना चाहिए। मैं ढंग की बात कह रहा हूं कि नहीं ? उसको कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपने घर में जाते हुए कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपना खाना खाते हुए कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपने पलंग पर लेटने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसको अपना पानी पीने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। यही तो हम कोशिश करते हैं! यही तो हम कोशिश करते हैं।

देखिये, मेरे को मालूम नहीं है कि आप कभी अपने बच्चों को लेने के लिए स्कूल गए। हो सकता है आपके बच्चे ही ना हों, पर फिर भी आपने देखा होगा कि बच्चों को लेने के लिए स्कूल जाते हैं माँ-बाप। कभी पिता जाता है, कभी माँ जाती है। तो उनको हजारों बच्चे आ रहे हैं, हो सकता है 500 बच्चे हों, 600 बच्चे हों, 1000 भी हों उनको उन 1000 में से कुछ लेना-देना नहीं है, एक बच्चा जो उनका है उसको वो देखना चाहते हैं। बच्चे आ रहे हैं, कोई उनका रिएक्शन नहीं है, कोई ये नहीं है कि आओ और जैसे ही वो जो उनका है, जैसे ही उसको देखते हैं उनके मुंह में मुस्कान आ जाती है। अपना जो है अगर इसको हम नहीं जानते, तो फिर किस चीज को जानते हैं ? जो अपना है अगर उसी को नहीं पहचानते हैं, तो क्या पहचानते हैं ? जो अपना नहीं है तो इसका मतलब है कि जो अपना बच्चा है उसको तो कोई ले नहीं रहा है, कोई लेने के लिए आया ही नहीं है और सारे बच्चे जो हैं उनको इकट्ठा करके अपने कार में रख रहे हैं। तो ऐसे कैसे काम चलेगा ? यह तो गलत बात है। यह तो गलत बात है।

अगर आप ट्रेन स्टेशन पर जाते हैं या हवाईअड्डे पर जाते हैं, अपनी पत्नी को लेने के लिए जाते हैं या अपने पति को लेने के लिए जाते हैं या अपने भाई को लेने के लिए जाते हैं तो कितने ही लोग वहां से गुजर रहे हैं उनसे आपका क्या लेना-देना है, कुछ लेना-देना नहीं है। परन्तु एक व्यक्ति जिसको आप लेने के लिए आये हैं, उसको पहचानना बहुत जरूरी है। उसको पहचानना बहुत जरूरी है। तो यह तो हालत हो गयी है हमारी इस दुनिया में कि हम अपने आपको नहीं जानते हैं और सबकुछ जानते हैं। और सबकुछ जानने के लिए हम अपने आपको खोने में मजबूर हो गए हैं। इसका परिणाम क्या होगा ? देख लीजिये क्या परिणाम है इसका! लोग व्याकुल हो जाते हैं। अपने साथ नहीं रह सकते, क्योंकि समझते ही नहीं हैं कि वह कौन हैं। ये जानते हैं यह मेरा है। यह कहने के लिए तो बिलकुल तैयार हैं, यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, पर मैं कौन हूं यह किसी को नहीं मालूम। तो जब मैं कौन हूं नहीं मालूम है, तो 'यह मेरा है' यह कैसे आपको मालूम कि यह किसका है ?

तो ये दुनिया में ऐसे ही सारे चक्कर रहते हैं। एक खबर है कि आप अभी जीवित हैं, इस खबर को भी सुनिये। इसको भी सुनिये और इसका क्या मायने है, इसको भी समझिये। क्योंकि यह खबर जो है, यह एकदम ताज़ा खबर है। यह अब की खबर है — कल की नहीं, परसों की नहीं, यह अब की खबर है कि आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आप जीवित हैं। इसको मत भूलिए। आगे बहुत कुछ होना है। पर आगे बहुत कुछ, जो कुछ भी होना है ध्यान जाना चाहिए कि इस समय क्या हो रहा है। तो यह बहुत जरूरी बात है।

दूसरा प्रश्न, उत्तराखंड से आया है — "मैंने आपका "हिम्मत का सन्देश" कार्यक्रम देखा। आप कहते हैं कि मनुष्य अपने साथ रहना भूल गया है। जब हम आइसोलेशन में रहते हैं, तो बहुत निराश हो जाते हैं। जमाने के साथ रहते हुए खुद के साथ समय कैसे बितायें ? ऐसा क्या किया जाए कि अपने साथ रहने में बोरियत न हो ?"

बोर, बोर हो जाते हैं लोग, अपने साथ — दूसरों के साथ नहीं, अपने साथ, क्योंकि अपने को नहीं समझते हैं। अपने को नहीं जानते हैं। क्या चाहिए ? वही वाली बात है कि मनुष्य मेले में गया। मेले में जब बच्चा जाता है कभी गुब्बारे देखता है, कभी ये देखता है, कभी वो देखता है। ये सारी चीजें लगी हुई हैं, लगी हुई हैं, लगी हुई हैं, लगी हुई हैं और एक ऊंगली जो उसने पकड़ी हुई है, वो ऊंगली कितना जरूरी है उसको पकड़ना, वो वह भूल जाता है। और धीरे-धीरे उसका ध्यान भटकते-भटकते-भटकते गुब्बारों में जा रहा है कभी, खिलौनों में जा रहा है कभी, खाने पर जा रहा है कभी, यहां जा रहा है कभी वहां जा रहा है, उस ऊंगली को छोड़ देता है। जब वह ऊंगली को छोड़ देता है, तो जिस चीज ने उसका ध्यान भटकाया वह वहां अभी भी है। धीरे-धीरे-धीरे-धीरे उसको एहसास नहीं होता है कि क्या हो गया, खो जाता है। फिर जब उसको यह एहसास होता है कि कितनी जरूरी बात है कि वो ऊंगली मैंने पकड़ी हुई है और जब अपनी माँ या पिता की तरफ देखने की कोशिश करता है तो वहां कोई है ही नहीं। तब क्या हाल होता है ? तब क्या हाल होता है ? वो सारी चीजें जो उसको, जिसके कारण उसने वो ऊंगली छोड़ दी वो तो अभी भी वहां हैं, पर अब उसमें कोई भी दिलचस्पी उस बालक की नहीं है। जिस चीज के बारे में मैं आपसे कह रहा हूं वह बोरिंग की बात नहीं है।

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहि, अलख पुरुष अविनाशी।।

अगर आपको उसकी दोस्ती, उससे मिलन हो जाए, उसके साथ रहना हो तो क्या आप बोर होंगे ? बोर होना चाहिए ?

अरे, मन के पीछे क्या भाग रहे हैं आप! इस दुनिया के पीछे क्या भाग रहे हैं आप! यह दुनिया मतलब की है और जिस दिन आप इसके पीछे नहीं भाग रहे होंगे, यह आपको छोड़ देगी। इस दुनिया के पीछे भागना वैसे ही भागना है जैसे कुत्ते कार के पीछे भागते हैं। आपने देखा होगा, कुत्ते कार के पीछे भागते हैं। तो जैसे कुत्ते कार के पीछे भागते हैं, वैसे ही मनुष्य जो इस माया में लगा हुआ है वह वही कर रहा है। तो कुत्ता क्या समझता है कि वह कार पकड़ लेगा ? अगर पकड़ भी लेगा तो करेगा क्या उसके साथ ? खा तो सकता नहीं है उसको। करेगा क्या, कुछ नहीं करेगा। इस जिंदगी के अंदर तुम हो।

देखो, तीन चीजें हैं — एक तो वो है जो था, है और रहेगा, वह तुम्हारे अंदर है। “सोई हंस तेरे घट माहि, अलख पुरुष अविनाशी” — जिसका कभी नाश नहीं होगा, जो हमेशा है। और एक तुम हो, जो नहीं थे, हो और आगे नहीं रहोगे। तुम तो हो बीच में। एक तरफ तो है वह अलख पुरुष अविनाशी, जो था, है, रहेगा। बीच में हो तुम, जो नहीं थे, हो और आगे नहीं रहोगे और तुम पीछे किसके भाग रहे हो ? पीछे भाग रहे हो उसके जो न थी, न है, न रहेगी। जिसको कहते हैं 'माया'।

लोग हमसे, जब हम यह बात कहते थे लोगों से तो लोग कहते थे कि "जी आप प्रैक्टिकल बात नहीं कर रहे हो, प्रैक्टिकल बात होनी चाहिए। अब कर लो प्रैक्टिकल। क्या करोगे ? गवर्नमेंट ने तो साफ कह दिया, आइसोलेशन में रहो। क्या करोगे ? एक मास्क पहनने में लोगों को दिक्कत हो गयी है। अरे, ठीक है यह बीमारी बहुत बड़ी बीमारी है, परन्तु इसका इलाज भी तो बड़ा सरल है। आइसोलेशन में रहो, मास्क पहनो और हाथ धोओ। कम से कम छह फीट का वास्ता रखो, डिस्टेंस रखो लोगों से। सरल बात है, परन्तु यह भी करने में लोगों को संकोच होता है।

एक और है, यह आया है रायगढ़ से प्रश्न। नहीं, यह वाला है, बोकारो से — "मेरे जान-पहचान के बहुत सारे लोगों का इस कोरोना महामारी से देहांत हो गया है और रोज न्यूज़ चैनलों पर मरने वाली न्यूज़ सुनकर मेरे अंदर एक डर पैदा होता है। कृपया आप मेरी मदद करें मैं इस डर से कैसे बाहर निकलूं ?”

डरने का समय नहीं है यह। डरने से होगा क्या ? कभी डरने से कुछ हुआ है ? कभी डरने से कुछ हुआ है ? किसी का भी कुछ हुआ है ? किसी का कुछ नहीं हुआ है। डरने का समय नहीं है, हिम्मत का समय है। जो है उस चीज को देखो। क्या है ? तुम जीवित हो, इस चीज को क्यों नहीं देख रहे हो ? यह भी तो है। ठीक है, लोग मर रहे हैं, ये है, वो है। अरे, हमारे — हमको दुःख होता है, हम तो अमेरिका में बैठे हुए हैं, परन्तु जब सुनते हैं कि कितने लोगों के साथ ये हो रहा है हमें सचमुच में बहुत दुःख होता है। फिर क्या ऐसा नहीं होना चाहिए! सबसे बड़ी बात तो इस बीमारी की यह है कि जो कुछ भी इससे हो रहा है यह बड़ी आसानी से टाला जा सकता था, परन्तु लोगों ने जहां ध्यान नहीं दिया, तो वहां टाल नहीं सके और ऐसे लोग हैं — अभी मैं देख रहा था खबर में ऐसे लोग हैं, जिनके ट्रांसप्लांट हो रखे हैं। जैसे गुर्दे ट्रांसप्लांट हो गये या उनका दिल ट्रांसप्लांट हो गया और उनलोगों के साथ, यह अभी खबर आयी है कि वो जो लोग हैं जिनका ट्रांसप्लांट हुआ है, तो उनको गोली लेनी पड़ती है कि रिएक्शन न हो, ट्रांसप्लांट का।

तो उनके साथ यह चक्कर चल रहा है कि जब कोरोना वायरस का वो वैक्सीन लेते हैं, तो कोई उससे इम्युनिटी होती ही नहीं है। वो काम ही नहीं कर रहा है। तो कम से कम उनलोगों के लिए, उनलोगों की खातिर, जो लोग वृद्ध हैं उनके खातिर कम से कम हम अपने, जो कुछ भी हम कर सकते हैं, मास्क पहनें। अरे, अपने लिए नहीं करना है तो मत करो, परन्तु दूसरे लोग भी तो हैं। दूसरे लोग भी हैं। कम से कम एक-दूसरे का — यह तो मान-सम्मान नहीं भी करना है, तो कम से कम यह तो करो कि मत इस बीमारी को फैलाओ। यह बहुत जरूरी बात है।

तो डरने से कुछ नहीं होगा। डर की बात नहीं है। तुम्हारे अंदर हिम्मत है, इसको बाहर लाओ। तुम्हारे अंदर शांति की प्यास है, इसको बाहर लाओ। तुम्हारे अंदर अपने को जानने की इच्छा है, इसको बाहर लाओ। तुम भी उस अविनाशी के साथ रहना चाहते हो, उस अविनाशी का अनुभव करना चाहते हो, उसको बाहर लाओ। और जो इच्छायें तुम्हारी हैं आयेंगी, जायेंगी; आयेंगी, जायेंगी, नहीं भी पूरी हुईं तो नहीं भी पूरी हुईं। निराशा की बात नहीं है। निराशा तो उस चीज की होनी चाहिए और अगर डर ही कर रहना है तुमको, तो क्या कहा है कि —

चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास।

और जो चितवे नाम बिनु, सोई काल की फांस।।

वही चीज, चिंता अगर किसी चीज की करनी है तो उस चीज की चिंता करो, तुम्हारे अंदर अभी भी जीवन है और इसको स्वीकार करो, सचमुच में इसको स्वीकार करो और भ्रमित मत हो। तुम्हारे अंदर हिम्मत है, इसको बाहर लाओ।

और यह है रायगढ़ का — "आपने कहा कि हम भाग्यशाली हैं, लेकिन संसार में इतना अँधेरा है कि हमको रोशनी दिखाई नहीं दे रही है। अपने भाग्य को हम कैसे पहचानें ? वर्तमान परिस्थितियों में कैसे सुख और शांति प्राप्त हो ?"

ठीक है, आपको बाहर रोशनी नहीं दिखाई दे रही है, कोई बात नहीं। कोई बात नहीं। बाहर रोशनी दिखाई दे न दे, अंदर तो रोशनी दिखनी चाहिए। अंदर तुम्हारे रोशनी है। बाहर चाहे कितना भी अँधेरा हो, अगर अंदर रोशनी है तो तुम्हारे लिए सबकुछ है। इस, हम बात करते हैं दीये की, पर एक दिन मैं सोच रहा था दीया बुझा भी हो सकता है, परन्तु जो रोशनी है, वह रोशनी है। चाहे वह दीये में हो, चाहे वह लकड़ी जलने से हो, चाहे किसी भी चीज से हो रोशनी तो रोशनी है और तुम्हारे अंदर एक रोशनी है। क्यों रोशनी है ? क्योंकि वो जो सब चीजों की रोशनी है, वह तुम्हारे अंदर विराजमान है। जबतक तुम उस रोशनी को देखना शुरू नहीं करोगे, जबतक तुम्हारे जिंदगी के अंदर वो रोशनी का उजाला नहीं होगा तबतक तुम समझ नहीं पाओगे कि यह जिंदगी क्या है। अगर सचमुच में देखा जाए तो कितना बड़ा जोक है यह। एक दिन पैदा हुए, कुछ दिनों के लिए रहते हैं और उसके बाद चले गए। कहां गए, किसी को नहीं मालूम। वापिस आने का कोई मतलब नहीं है। कहां से आये, यह नहीं मालूम। कहां जायेंगे, यह नहीं मालूम। चंद दिनों के लिए जिंदा हैं और वह भी समय इतनी जल्दी गुजर जाता है कि पूछिए मत।

यह तो मज़ाक है। कैसा मज़ाक है! कैसा मज़ाक है! तो फिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि — बड़े भाग्य मानुष तन पावा — क्यों ? इस जिंदगी का अस्तित्व क्या हुआ ?

अगर यही होना है कि एक दिन पैदा हुए, एक दिन जाना है, चंद दिन रहना है और अपने साथ कुछ ले जा नहीं सकते। ऊपर से अपने साथ कुछ ले जा नहीं सकते और कोशिश कर रहे हैं, कर रहे हैं, कर रहे हैं, कर रहे हैं, कर रहे हैं हर दिन, हर रात। किसी को अपने बेटे की लगी है, किसी को अपनी बीवी की लगी है , किसी को अपनी पत्नी की लगी है, किसी को अपने बाप की लगी है, किसी को अपने चाचा की लगी है, किसी को अपनी गाय की लगी है, किसी को अपनी भैंस की लगी है। किसी को कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ, कुछ न कुछ लगा हुआ है और न अपनी भैंस साथ ले जा सकते हो, न अपनी बीवी साथ ले जा सकते हो, न अपना बेटा साथ ले जा सकते हो, न अपनी चाची साथ ले जा सकते हो, न अपना चाचा साथ जायेगा, कोई भी नहीं जाएगा।

किसी को अपने घर की पड़ी है, घर भी साथ नहीं जाएगा। किसी को अपनी घड़ी की पड़ी है, वह भी साथ नहीं जाएगी। किसी को अपने सूट की पड़ी है, वह भी साथ नहीं जायेगा। लो भला बताओ, इतनी मेहनत करके तो सबकुछ इकट्ठा किया और ये भी सब साथ नहीं जाएगा। तो ये कैसे हो गया ? ये कैसे हो गया ? तो यह तो मज़ाक है, परन्तु यह जिंदगी मज़ाक नहीं है। क्यों नहीं है ? क्योंकि इस, इस शरीर में, इस शरीर में, इस समय, इस समय —

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं — ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिसका ध्यान करते हैं —

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहि, अलख पुरुष अविनाशी।।

क्योंकि वह है, क्योंकि वह शक्ति है, वह रोशनी है, अँधेरा नहीं है, तो उसको बाहर लाना है। उसको, अपने अंदर उसका अनुभव करना है। तो यह बहुत जरूरी चीज है।

यह दिल्ली से आया है — "मैंने अंजन टीवी पर आपका कार्यक्रम देखा। आपने हिम्मत की बात की। आपके कार्यक्रम का शीर्षक भी है "हिम्मत का समय".... आपको इस टाइटल का विचार कहां से आया ?

भाई, हिम्मत का समय है। यह तो जब भी, जब भी बुरा समय मनुष्य का आता है, हिम्मत की जरूरत है। जब सबकुछ उसके अनुकूल हो रहा है, तब उसको हिम्मत की जरूरत नहीं है, परन्तु एक बात का ख्याल रखो। जब सबकुछ बढ़िया चल रहा है, तो सबसे सावधान तब ही होना चाहिए। अब यह मैंने कैसे कह दिया कि जब सबकुछ बढ़िया चल रहा हो, तब सबसे ज्यादा सावधान होना चाहिए। तो मैं आपको छोटी-सी बात सुनाता हूं। अगर प्याला एकदम भरा हुआ है, ऊपर तक भरा हुआ है और उसको आप एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे हैं, तो आपको कितना ध्यान देना पड़ेगा ? धीरे, बड़ा सावधान होकर के चलना पड़ेगा या नहीं ? जब सबकुछ बढ़िया हो रहा है, जब सबकुछ बढ़िया है तब मनुष्य को सबसे सावधान होना चाहिए। जो प्याला भरा हुआ नहीं है उसको ले जाने में क्या सावधानी! तो जब बुरा समय आता है, हिम्मत की जरूरत है और जब अच्छा समय भी चल रहा है तब भी हिम्मत की जरूरत है कि ध्यान बंटे ना और ध्यान उस चीज पर रहे जो चीज हमारे अंदर है।

तो आगे और प्रश्न हैं काफी सारे आये हुए हैं, उनका और भी जवाब देंगे।

कृपया हिम्मत से काम लें और आपके अंदर जो चीज विराजमान है उसको मत भूलो। कोई भी खबर बाहर से आये, कितनी भी बुरी खबर आये यह मत भूलो कि आपके अंदर अभी यह स्वांस चल रहा है।

सभी लोगों को मेरा नमस्कार!

हिम्मत का समय: चौथी कड़ी (ऑडियो) 00:21:14 हिम्मत का समय: चौथी कड़ी (ऑडियो) Audio Duration : 00:21:14 श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश

प्रेम रावत जी:

सभी लोगों को हमारा नमस्कार!

आज के दिन मैं आप लोगों से एक छोटी-सी बात कहना चाहता हूँ। क्योंकि जो माहौल है इसमें इतना सबकुछ हो रहा है और लोग डरे हुए हैं। और ये जो सीरीज़ मैं बना रहा हूँ ये है "हिम्मत का समय।" तो एक बात आपने सुनी हुई है, एक दोहा है, चौपाई है बल्कि कि —

धीरज धर्म मित्र अरु नारी।

आपद काल में परिखिअहिं चारी।।

ये जो चार चीजें हैं — धीरज, धर्म, मित्र और नारी — अब जरा इसके बारे में मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं। क्योंकि जब नारी कहा है तो नारी का मतलब सिर्फ नारी ही नहीं है। नारी का मतलब है कोई भी जिसके साथ आप रहते हैं दोस्त हो, आज के समाज में वही बात नहीं रह गयी है जो पहले होती थी तो जैसा भी है, जैसा भी माहौल में है, पर जो आपके साथ है। और मित्र, मित्र का मतलब सिर्फ दोस्त ही नहीं हुआ बल्कि मित्र वो भी है जो किसी भी तरीके से आपका सहयोग करता है। और धर्म, धर्म के बारे में तो बात स्पष्ट है। और मैं ज्यादा कहूंगा भी नहीं धर्म के बारे में। क्योंकि फिर लोग हैं तो उनको लगता है कि आपने मेरे धर्म के बारे में ये कह दिया, आपने मेरे धर्म के बारे में ये कह दिया, तो फिर लोगों को अच्छा नहीं लगता है। और फिर आती है बात धीरज की। वह आपके ऊपर है। किसी और का धीरज नहीं, आपका धीरज। धीरज में क्या-क्या है ? धीरज रखने के लिए किस-किसकी जरूरत है ? एक तो इस चीज की जरूरत है कि शांति हो अंदर। बिना शांति के धीरज कहां से लाएगा मनुष्य! और वो परखने की चीज हो कि कोई भी स्थिति जिसमें से गुजर रहे हैं यह मालूम होना चाहिए मनुष्य को कि यह भी गुजरेगी। कोई भी परिस्थिति हो।

अच्छा समय भी हो वह भी गुजरेगा। बुरा समय भी हो वह भी गुजरेगा। स्थानीय कोई भी चीज नहीं है इस संसार के अंदर। हरेक चीज बदलती है। हरेक चीज बदलती है। भगवान राम के साथ भी यही हुआ। जब वह पहले छोटे थे फिर बड़े हुए। फिर वह गए, जंगल में गए। उन्होंने दानवों को मारा। फिर वह आये, सीता के साथ और फिर उनको वनवास हुआ। सारी स्थिति, परिस्थिति बदलती गयी, बदलती गयी, बदलती गयी, बदलती गयी,बदलती गयी। स्थानीय कोई चीज नहीं थी। अच्छा समय भी आया और बुरा समय भी आया। मनुष्य को बुरे समय में इस बात का एहसास होना चाहिए कि यह भी टलेगा। और बुद्धिमान वो है कि जो अच्छे समय में भी इस बात को जानता है कि यह भी हमेशा नहीं रहेगी। अब अच्छा समय क्या है और बुरा समय क्या है ?

जब इच्छा अनुकूल सबकुछ होता है तो मनुष्य समझता है कि वह अच्छा समय है। और जब इच्छा के अनुकूल सबकुछ नहीं होता है तो उसको मनुष्य बुरा समय मानता है। पर जबतक यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, जा रहा है तुम्हारा समय अच्छा है। यह बात है ज्ञानी की, अज्ञानी की नहीं। अज्ञानी को ये नहीं मालूम। अज्ञानी को तो ये भी नहीं मालूम कि यह स्वांस क्या है! अज्ञानी को तो ये भी नहीं मालूम कि इस स्वांस की कीमत क्या है। अज्ञानी को तो ये भी नहीं मालूम कि जो मेरे को मनुष्य शरीर मिला है यह कितना दुर्लभ है। लगा हुआ है मनुष्य कहीं इधर भाग रहा है, कहीं वहां भाग रहा है, कुछ ये कर रहा है, कुछ ये कर रहा है, जो कुछ भी। क्योंकि एक रेडियो बाहर होता है और एक रेडियो कान के बीच में चल रहा है। और दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात वो रेडियो चलता है। किसी ने ये कह दिया, किसी ने ये कह दिया मेरे को ये करना चाहिए, मेरे को वो करना चाहिए, इसी के बीच में चलता रहता है। मेरे लिए ये अच्छा नहीं है, मेरे लिए वो अच्छा नहीं है; मेरे को ये चाहिए, मेरे को वो चाहिए। तेरे को ये कर, तू ये कर, तू ये कर, अपना नाम रौशन कर। कहां नाम... क्या नाम रौशन करेगा ? जब एक दिन पृथ्वी ही नहीं रहनी है। जब एक दिन चन्द्रमा ही नहीं रहना है। जब एक दिन सूरज ही नहीं रहना है। जब एक दिन सबकुछ, जो कुछ भी है ये सब खत्म होना ही है, तो क्या नाम रौशन करने में लगे हुए हो! और किसका नाम हो गया रौशन ?

ऐसे भी लोग थे, बड़े-बड़े लोग हिन्दुस्तान में ही देख लो जब अंग्रेज आये तो उन्होंने बड़ी-बड़ी मूर्ति बनायी, क्वीन विक्टोरिया की। अब कहां हैं वो ? अब वो थोड़ी-बहुत जो बची हुई हैं कहीं हैं रखी हुईं उन पर कबूतर दिन-रात अपना काम कर रहे हैं। एक तो वो होता है जो सारी चीज को देखता है। क्या हुआ और क्या हो रहा है और आगे क्या होगा! एक चीज तो वो हैं न जो थी, जो है, जो रहेगी। और मनुष्य अपने को देखे कि मैं एक समय में नहीं था। अब मैं हूँ और एक ऐसा समय भी आएगा कि मैं नहीं हूँगा। अब ये कब आएगा, यह किसी को नहीं मालूम। हां, इतनी बात जरूर है कि आएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। निःसंदेह यह सत्य है कि वह समय आएगा।

अब लोग हैं "अब हम क्या करें जी ? हमारे साथ ये है, हमारे साथ ये है, हमको ये चाहिए, हमको वो चाहिए।" और कितने ही लोग हैं, और कितने ही लोग हैं जो हमको चिट्ठी लिख रहे हैं कि "जी हमारा एक बच्चा है, वह सबकुछ ठीक ढंग से नहीं कर पाता है।"

देखो, सबसे पहली बात अब मैं ये बात इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं डॉक्टर हूँ, पर मेरा यह अनुभव है, क्योंकि मैंने इस बात का अनुभव किया हुआ है। किसी भी मनुष्य को, किसी भी मनुष्य को — दो चीजें हैं एक तो है प्रेम। मनुष्य दूसरे मनुष्य को अगर कुछ नहीं दे सके और प्रेम दे सके, प्रेम और इस समय मनुष्य को गुस्सा, एक-दूसरे को गुस्सा देने की, एक-दूसरे को तकलीफ देने की जरूरत नहीं है। इस समय एक-दूसरे को प्रेम देने की जरूरत है। ये मनुष्य एक-दूसरे को दे सकता है।

मैं जो, जो मेरा अनुभव है — जब हम छोटे थे तो एक लड़का था, वह आया। तो उसके माँ-बाप बहुत अमीर थे, परन्तु उसका दिमाग ठीक नहीं था। तो वह आया। तो अब जब मैं कह रहा हूं कि दिमाग ठीक नहीं था, तो सचमुच में ठीक नहीं था। एक तो वह अपने आपको काटता था। कुछ भी गलत हो तो अपने आपको काटता था। उससे तो बात भी नहीं की जा सकती थी। और जहां जाता था पेन इकट्ठा करता था और उसके जेब में इतने पेन रखे रहते थे कि पूछो मत। और बोतल, बोतल इकट्ठा करने का उसको बड़ा शौक था। तो जहां जाता था बोतल इकट्ठा करता था। तो जब वह आया तो हमने कहा कि "भाई यह तो हमारा घर है। हम यहां रहते हैं। आप इसको क्यों ले आये ?" तो खैर जैसा भी था वो वहां रहने लगा। तो धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे करके सबको उस पर तरस आने लगा। धीरे-धीरे करके सबने उसको प्रेम देना शुरू किया।अगर किसी के पास पेन था तो बजाय उससे मांगने के वह जब कोई भी उससे मांगता था पेन, उसका पेन तो वह बहुत ही गुस्से में आ जाता था और अपने को काटता था और खून निकलता था और उसके यहां चारों तरफ बहुत ही बुरा हाल था उसका। परन्तु धीरे-धीरे करके जब उसको वो प्रेम मिलने लगा, तब उसने वो पेन इकट्ठा करने की आदत छोड़ दी। धीरे-धीरे करके जब उसको आदर और प्रेम मिलने लगा तो उसने बोतल भी इकट्ठा करना बंद कर दिया बल्कि उसको अगर कहीं बोतल मिल भी जाए तो वह किसी को भी देने के लिए तैयार हो जाता था। एक समय था कि वह किसी को देता नहीं था। अगर किसी ने बोतल इधर से उधर भी रख दी तो वह एकदम चिल्लाने लगता था। परन्तु धीरे-धीरे-धीरे करके प्रेम उसको जैसे-जैसे मिला उसको फिर इन चीजों की जरूरत नहीं रही।

परिवार में एक-दूसरे को प्रेम क्यों नहीं देते हैं ? एक-दूसरे को ताना क्यों मारते हैं ? एक-दूसरे को गुस्सा करने की कोशिश क्यों करते हैं ? एक-दूसरे के गुण क्यों नहीं छीनते हैं बल्कि उनकी बुराइयों को देखते हैं। प्रेम की जरूरत है। धीरज की जरूरत है। और अगर धीरज नहीं है तो इस संसार में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होगी। और वो धीरज उसका समय आ गया है, हिम्मत का समय आ गया है, मनुष्य की असली हिम्मत का समय आ गया है। क्योंकि और चीजें कोई काम नहीं करेंगी। और चीजें कुछ काम नहीं करेंगी।

अब मौका जो हमको मिला पहले ही तो हमने वैक्सीन कर ली — दो, दो वैक्सीन। तो अब लोग हैं, "अजी हमको करनी चाहिए या नहीं चाहिए ?" भाई, क्यों नहीं करनी चाहिए ? और लोग हैं कोई, कोई अफवाह उड़ा रहा है, कोई-कोई अफवाह उड़ा रहा है। अभी किसी ने मेरे को चिट्ठी भेजी कि "जी, हमने सुना है कि आप बीमार हो गए!" हमको पहले ही वैक्सीन लगी हुई है, तो उस वैक्सीन से क्या होगा ?

हम तो गए, हिन्दुस्तान में गए। साउथ अफ्रीका में गए, ब्राज़ील में गए। ऐसी-ऐसी जगह गए जहां बहुत ही सबकुछ हो रहा था। हमको नहीं हुआ। क्योंकि मास्क हमने पहना। सबसे छह फुट, छह फुट से भी दूर का जो डिस्टेंस था वह हमने बनाकर रखा। हाथ हमने धोये। तो जो कहा गया था उसका हमने पालन किया। और हमको अच्छी तरीके से मालूम था कि ये इसलिए थोड़े ही कह रहे हैं कि ये हमको जानते हैं और हमको परेशान करना चाहते हैं। नहीं, हमारी भलाई के लिए। जो बात किसी की भलाई के लिए की जाती है अगर वो अपनी भलाई की बात को नहीं समझ सकता है, तो वो तो गया। ऐसे कैसे काम होगा! हिम्मत रखने का मतलब ही ये चीज है कि जो मनुष्य है वो सुने अफवाहों को नहीं, अफवाहों को नहीं, अफवाहों को अलग करे। वो सुने, उस बात को सुने जिससे कि उसका भला हो। सबसे बड़ी बात ये है। सबसे बड़ी बात ये है। ये बात लोग भूल जाते हैं। कोई फिर और बात सुनने लगता है, कोई और बात सुनने लगता है, कोई और बात सुनने लगता है। उससे फिर भ्रमित होता है मनुष्य। भ्रमित करने वाले भी तो थोड़े कम हैं। ना, उनकी तो इतनी आबादी हो गयी कि पूछो मत। कोई धर्म के नाम पर, कोई भगवान के नाम पर किसी को बेवकूफ बना रहा है। कोई गवर्नमेंट के नाम पर किसी को बेवकूफ बना रहा है। कोई पुलिस के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। कोई मिलिट्री के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। जहां देखो बेवकूफ बनानेवालों की कमी है ही नहीं। परन्तु अगर बेवकूफ बनानेवाले हैं तो कम से कम अगर किसी चीज की कमी होनी चाहिए, तो वो उनकी होनी चाहिए जो बेवकूफ बनते हैं।

अरे, बेवकूफ बनानेवाला भी अगर हो तो यह जरूरी थोड़े ही है कि बेवकूफ बनना है तुमको। क्यों! हिम्मत रखो। ठीक है, परिस्थितियां जैसी हैं वैसी हैं, परन्तु इनसे आगे चलने का हल तो हिम्मत की ही जरूरत है न। इस मनुष्य को, आज के मनुष्य को हमदर्दी भी चाहिए और हिम्मत भी चाहिए, क्योंकि आगे चलना है, पीछे नहीं, आगे चलना है हमेशा। अच्छे समय में आगे चलना है। बुरे समय में आगे चलना है। और आगे चलने की शक्ति तुमको कहां से मिलेगी ? हिम्मत की शक्ति तुमको कहां से मिलेगी ? यह किसी पहाड़ के ऊपर नहीं है। यह किसी पेड़ के ऊपर नहीं है। यह भी तुम्हारे अंदर है। और अगर अपने अंदर तुम इसको महसूस नहीं कर सकते हो तो फिर — धीरज धर्म मित्र अरु नारी। ये कैसे परख पाओगे कि कौन तुम्हारा हितैषी है!

अगर तुम यही नहीं जानते कि सबसे बड़ा हितैषी तुम्हारा तुम्हारे अंदर बैठा हुआ है। जो सबसे ज्यादा हित तुम्हारा जानता है, वह तुम्हारे अंदर है। और तुम उस चीज को स्वीकार करो अपने में जो सचमुच में ज्ञान है, अज्ञान नहीं, ज्ञान है। इस समय प्रकाश की जरूरत है, अंधेरे की नहीं। अंधेरे की एक बात है और इसका, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो मनुष्य अंधेरे में बैठा है, बैठा है, बैठा है, बैठा है, बैठा है, बैठा है, वो अंधेरे का आदी हो जायेगा। अंधेरे का आदी होना क्या हुआ ? क्या मतलब हुआ इसका ? इसका मतलब ये हुआ कि जब प्रकाश होगा, जब प्रकाश होगा तो वो इतना आदी है अंधेरे का कि जब रोशनी उसकी तरफ आएगी तो वह अपनी आंखें बंद कर लेगा। क्योंकि वह देख नहीं पायेगा उस प्रकाश को वह कहेगा, "अहह! बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा है।" यह है अंधेरे का आदी बनने का नतीजा।

तुमको प्रकाश की जरूरत है जीवन में। प्रकाश तुमको दिखायेगा कि उस चीज से, जिस चीज से बचना है वह कहां है। अपने जीवन में, अपने जीवन को सफल बनाओ। हिम्मत रखो, आगे चलो क्योंकि यह तुम्हारा नियम है। तुम आये और एक दिन तुमको जाना है। कब जाना है यह तुमको नहीं मालूम। जबतक तुम जीवित हो, जीवित रहो।अंदर से जीयो, बाहर से ही नहीं, अंदर से जीयो। और इन चीजों की जरूरत है। हिम्मत की जरूरत है।

मेरे को मालूम है काफी सारे लोग हैं, जिन्होंने अपने प्यारों को खो दिया है। सचमुच में यह शोक की बात है, परन्तु फिर भी आगे चलना है। फिर भी आगे चलने की जरूरत है, चिंता करने की नहीं।

चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास,

और जो चितवे नाम बिनु, सोई काल की फांस।

इस समय में भी, यह तो बात बहुत साल पहले कही मैंने पर आज इसकी जरूरत और है। इसलिए सभी लोग हिम्मत रखें, आगे चलें और जो तुम्हारे अंदर शांति है उसको आने दो। जैसे होली के समय पानी जब पड़ता है तो आदमी भीगता है, उसी तरीके से "बरसन लाग्यो रंग शबद झड़ लाग्यो री।" उस ज्ञान को, उस शांति को अपने ऊपर आने दो और उसमें भीगो और जो अंदर का आनंद है उसको मत भूलो। चाहे कुछ भी हो जाए जो अंदर की शांति है उसको मत भूलो।

तो सभी लोगों को हमारा नमस्कार!

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