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लॉकडाउन — अठारहवां दिन 00:21:08 लॉकडाउन — अठारहवां दिन Video Duration : 00:21:08 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

सबको नमस्कार! उम्मीद है आप सुरक्षित हैं।

तो आज मैं आपसे बस इस मौके के बारे में बात करना चाहता हूं — एक मौका होने का खुश रहना और आनंद लेने का मौका, सादा रहना यह समझना कि वो रिश्ता, उन दो दीवारों के बीच आपका खुद से ही है। आपके बारे में है — आपका अस्तित्व है यहां होने के बारे में। यह कोरोना वायरस के बारे में नहीं; यह इस दुनिया के बारे में नहीं; यह विश्व अर्थव्यवस्था के बारे में नहीं; यह इसके बारे में नहीं है। मैं यह इसलिए बोल रहा हूं वो सभी बातें जिनसे हम परेशान रहते ही हैं वह इंसानों ने ही बनाई हैं। यह अर्थव्यवस्था, ये सभी चीजें यह सब इंसानों ने बनाई हैं। किसी ने सोची हैं ये चीजें — "हमें ऐसा करना चाहिए, हमें वैसा करना चाहिए, हमें ऐसा करना होता है।"

यहां नीतियां हैं; “यहां ये है, वो है और वो हुआ और ऐसे हुआ। बैंक इसे नियंत्रित करता है कुछ लोगों को समूह बनाने में और उसे नियंत्रित करने में अच्छा लगता है।” आप कठपुतली जैसा महसूस करते होंगे ? आप कठपुतली नहीं बनना चाहते, लेकिन हम सब यही तो हैं इसलिए आपको आजादी चाहिए और जब यह शब्द लिखा है "आजादी," यह मजबूत भावना जुड़ी होती है इससे, "हां, हां मैं आजाद होना चाहता हूं।"

पर कभी आपने खुद से पूछा कि "यह क्या है जो आपको बांधता है ? आपको आजादी क्यों चाहिए आप क्यों महसूस करना चाहते हैं ? आपको बंदिश क्यों लगती है ?” और इसकी वजह शायद यह है कि वह सारी बाहरी चीजें जो आपको पकड़ के रखती हैं वह बाहर हैं अपनी असलियत समझने से। आपका यह जीवन है — यह आपका अस्तित्व है और ज्यादातर समय में हमें इसके बारे में कम ही पता होता है। हमने इसे खोजा नहीं है। हमने इसे ढंग से देखा नहीं है, “इसका क्या मतलब है; जीवित होने का क्या मतलब है; अस्तित्व में होने का क्या मतलब है; होने का क्या मतलब है ? इसके होने का क्या मतलब ?” यह मौका होना — या यह पिछले जन्मों में किए कार्यों का परिणाम है और ये और वो और ऐसे लोगों की बिल्कुल कमी नहीं जो मुश्किल बढ़ाते हैं।

जी, आप नहीं जानते कि इस दुनिया में लोगों ने ही धरती पर अस्तित्व कितना जटिल बना दिया है। "ओह आप यहां इसलिए हैं, क्योंकि आपने पिछले जीवन में कुछ किया था। आपने ये किया था, आपने वो किया था" और बस ऐसी ही बातें और वह लोग जो आपको यह सब बताते हैं उन्हें भी यह नहीं पता कि इसका क्या मतलब है। क्यों ? क्योंकि यह एक किताब में है। वो नहीं कहते इस बात को, यह मानने के बारे में है — मानना, मानना, मानना, मानना। हम सब मानकर बहुत खुश हैं। हमारी परेशानियों को हम मान लेते हैं। हम दिक्कतों को बस मान लेते हैं। हम मानते हैं कि रचने वाला कौन है वह। हम मान लेते हैं कि यहां तक हम कैसे आए हैं। हम बस मान लेते हैं कि ये सब, ये सारी बातें। मैं चुनौती देता हूं उन लोगों को! आप क्या जान सकते हैं ? जानते हैं समझने के लिए खुद की जानकारी होने के लिए और यही तो है वह सबसे जरूरी बात — जीवित होने का असली मतलब समझना — और वह भी इस समय में।

तो क्या हुआ ? अब आपने कोई खबर सुनी यह शायद दिसंबर 2019 में थी "हां, ओह! कुछ लोग चाइना में बीमार हो गए हैं।" "वाह अच्छा! उम्मीद है कि जल्द ठीक हो जाएंगे!" हूँ, तो अब वह जल्दी से अच्छे हो जाएँ या ना हों पर वो सभी जानने लग गये, लोगों को समझ में आ गया कि कुछ ठीक नहीं है। और आपने देखा जब मैंने कहा कि “यह सब लोगों का ही किया धरा है।” हम इंसान ही यह करते हैं तो अचानक से ही एयरलाइंस हैं, जो राजी खुशी लोगों को ले जा रही हैं, जहां भी वो जाना चाहें और बिना लोगों को यह बात पता चले कि वायरस भी साथ में जा रहा है और अगली बात क्या हुई ? पूरी दुनिया में यह फैल गया…. तो अब जिसने भी अप्रतिबंधित सफर करने के बारे में सोचा था उनकी मंशा बुरी नहीं थी। वह थी कि "हां यह तो बहुत ही अच्छा होगा लोग जहां भी जाना चाहेंगे वो जा पाएं।"

एक समय था जब ऐसा नहीं था। जब मैं 70 के दशक में सफर करता था, शायद 70 या 71 उस समय में ऐसा बिल्कुल नहीं था। यह आज के समय के सफर जैसा नहीं था। लोग तैयार होते थे यह एक खास मौके की तरह होता था और आपके पास बहुत सारा पैसा होना चाहिए था एक एयरप्लेन में बैठने के लिए और फिर यह कार्टर प्रशासन के समय हुआ कि सबकुछ आसान बना दिया गया। उससे पहले बड़ी एयरलाइंस ने सब बंद किया हुआ था और फिर यह प्रतिबंध हट गए और नई एयरलाइंस भी आ गई थीं और वो सभी कंपनियां आ पायीं जो इस काम को करना चाहती थीं और लोगों को यहां-वहां ले जाना चाहते थे और फिर गुणवत्ता, हां बिल्कुल, चली गई। लेकिन हां, काफी लोगों ने उड़ान भरनी शुरू की और फिर अगली बात क्या हुई ? कुछ कोरोना वायरस जैसा जी हां, सफर, सफर, सफर और इसके जैसा ही कुछ और भी था "स्पेनिश फ्लू" — वह भी लोगों के सफर करने से ही हुआ था। उसमें भी यात्राएं की गई थीं और उन यात्राओं की वजह से बीमारी ज्यादा फैली थी। तो जो भी, इस बात के अलावा जो भी हो रहा है…. यह इंसानों ने अपने आप ही बनाया है, यह मुद्दा — और यह इंसान ही हैं जिन्हें इससे निकलने का रास्ता निकालना पड़ेगा। और ऐसे भी लोग हैं, यकीन है कि "जैसे ओह! यह तो, लेकिन ये मुश्किल है और वो मुश्किल है और ये ऐसे हुआ और वो वैसे हुआ।" इसका इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है।

कभी मत भूलिए कि आपका इन दो दीवारों के बीच काम क्या है। कृपया इन बातों से भ्रमित ना हों यह चला जाएगा। आपको क्या करना है यह एक आसान-सी बात है: “दूरी बनाइए, बीमारी ना लें और ना ही दें, अपने हाथ धोएं, दूरी बनाइए” — बस इतना ही। वो काम कर रहे हैं दवाइयों पर — उन्हें बनाने पर। वो दवाई बना लेंगे, बिल्कुल सही चीजें जो भी… और फिर आप अपना काम कर सकते हैं या वह जो भी था जिस पर आप लौटना चाह रहे थे, (जो मैं तो बिल्कुल सोच नहीं सकता कि वह क्या है ऐसा) शायद आपस में लड़ाई करना ? और सभी अजीब चीजें हम यही तो कर रहे थे। पर जरा सुनिए, हम यही तो पहले कर रहे थे आप अखबार उठाकर यह देख सकते हैं जो चीजें हम कर रहे थे और अब हमारे सामने कोरोना वायरस आ गया है जिसमें आपका पूरा ध्यान लगा हुआ है और जब यह खत्म हो जाएगा मुझे यकीन है कि हम उसी पागलपन की ओर वापस लौट जाएंगे। पर हम यहां इसके लिए नहीं आए हैं ना ही कोरोना वायरस के लिए ना ही उस पागलपन के लिए, जो यहां पर हर रोज होता है। हम किसी और चीज के लिए यहां पर आए हैं। आप यहां पूर्ण होने आए हैं।

कई बार की तरह मैं उदाहरण देता हूं जैसे कि आपने एक टिकट खरीदा और आप जीत गए और वह टिकट है बस कुछ ही दिनों के लिए। आप एक कमाल के शॉपिंग सेंटर में रहने वाले हैं और उस शॉपिंग सेंटर में कई तरह की दुकानें हैं, सबसे बेहतरीन दुकानें हैं वहां पर और आप ले सकते हैं — आप किसी भी दुकान में जाकर कुछ भी ले सकते हैं। बस एक ही शर्त है और वह एक शर्त है आप अपने साथ उस जगह से कुछ नहीं ले जा सकते। तो आपकी कार्यनीति क्या होगी ? मुझे पता है मेरी कार्यनीति क्या होगी मैं उस जगह में होने का आनंद लेने वाला हूं। मैं शायद अपने साथ कुछ भी ना ले पाऊं, लेकिन एक चीज है जो मैं वहां से ले जा सकता हूं — और वह मुझे पता है — वह है मेरा 'आनंद।' तो यह है मेरी नीति; मेरी नीति है कि यहां पर मैं हर पल आनंद लूँ और अब परिस्थिति होती हैं, यह तो होंगी ही और लोग सोचते हैं स्थितियां अलग-अलग होती हैं, बातें होती हैं "यह मत करो, वह मत करो, मैं नहीं चाहता आप ये करें, मैं नहीं चाहता वो करें।" और मैं कहता हूं “क्यों ? क्या बात है? आपकी परेशानी क्या है ?” लेकिन फिर आप समझते हैं जैसे कि "देखिए अच्छा है, आने दीजिए!” यह जानना जरूरी है कि — मैं परिस्थिति नहीं संभाल सकता लेकिन अपनी प्रतिक्रिया संभाल सकता हूं अपने ही लिए, किसी और के लिए नहीं, अपने ही लिए। यह एक बहुत बड़ा हिस्सा है उस प्रशिक्षण का जो मैं आपके लिए लाने वाला हूं।

“आपके नियंत्रण में क्या है ?” आप स्थिति नहीं संभाल सकते, बिल्कुल आप परिस्थिति संभालना चाहते हैं लेकिन आप हर समय स्थिति को नियंत्रण में नहीं रख सकते। लेकिन आपके बस में एक चीज है और वह है आपकी प्रतिक्रिया, आपका रिएक्शन, आपकी प्रतिक्रिया। अगर आप उसे नियंत्रित कर पायें अपने खुद के लिए, किसी और के लिए नहीं तो वह सबकुछ आपको ही लाभ देगा। अगर आप खुद से करुणा नहीं दिखा सकते; आप दूसरों को करुणा नहीं दिखा पाएंगे। अगर आप खुद को नहीं समझ सकते, तो आप दूसरों को नहीं समझ पाएंगे। अगर आप स्वयं पूर्ण नहीं हैं तो आप दूसरों को पूर्ण नहीं कर सकते। अगर आप खुद से प्यार नहीं करते तो दूसरों से नहीं कर पाएंगे। अगर आप स्पष्ट नहीं हैं तो आप दूसरों को स्पष्टता नहीं दिखा सकते। सबसे पहले यह आपके लिए होना चाहिए। अगर यह आपके लिए हो पाया तब आप पर निर्भर है आप इससे क्या करना चाहते हैं। यह आप पर निर्भर है कि आप इसे कैसे चाहते हैं। यह आप पर है कि “आप इसका क्या करते हैं ?” क्योंकि आप अभी जागे हुए हैं और वह सुंदरता, वह सुन्दर ताकत जो आपके भीतर ही है। वह सब आप में है वह सबकुछ आपके भीतर है। क्या हम उदास नहीं होंगे कभी ? हां बिल्कुल, हम उदास होंगे।

किसी ने मुझसे एक सवाल पूछा कि मैं इसके बारे में सोच रहा हूं — “मेरे दादाजी हैं और मैं उनसे मिलने जा नहीं सकता, उन्हें अलविदा नहीं कह सकता, मैं उनका ख्याल नहीं कर सकता तो मैं क्या करूं ?" जब मैंने यह चिट्ठी पढ़ी पता है बिल्कुल, मैं भी उदास हो गया। यह अच्छा नहीं है यह उदासीन करने वाला है। अब इस वायरस के बाद क्या होने वाला है मेरा मतलब यह तो अभी शुरू ही हुआ है सोच सकते हैं उन सभी गरीब लोगों का — गरीब ही हैं जिनका हमेशा सबसे ज्यादा नुकसान होता है — सबसे ज्यादा नुकसान। मेरा मतलब यहां आमतौर पर सबका एक घर होता है, एक जगह जिसमें आप अच्छी-पक्की दीवारों के बीच सोते हैं, रहते हैं। क्या आप सोच सकते हैं कितने लोग ऐसे हैं जो छोटे-छोटे टीन के मकानों में रहते हैं ? हर वक्त बस यही, वो टीन के मकान ? सोचिए जरा और अब तो गर्मियां आ गयी हैं। मेरा मतलब, कैलिफोर्निया में बाहर अब भी ठीक है, परेशानी नहीं है। लेकिन इंडिया जैसी जगहों में जैसे कि अफ्रीका मतलब कि उत्तरी भाग में गर्मियां हैं। हे भगवान, और बात यह है कि आप अलग कैसे रहते हैं ? कहां बनाएंगे दूरियों को ?

तो इसके बारे में मैंने सोचा ये सभी चीजें — फिर भी मैंने उस इंसान से क्या कहा अंत में, “जिनके दादाजी हैं…” जैसे कि "आप प्यार कर सकते हैं। आप उन्हें प्यार कर सकते हैं।” प्यार ही वह चीज है जो दीवार को नहीं देखता। जो दरवाजे नहीं देखता, जो समय नहीं देखता। वह परिस्थिति नहीं देखता, जो अमीरी-गरीबी नहीं देखता। जो अर्थव्यवस्था नहीं देखता। जो कुछ भी नहीं देखता। प्यार बस है और यह सबसे ताकतवर चीजों में से एक है आपका प्यार ? आपका प्यार ? हे भगवान, यह सबसे ताकतवर चीज है जो है मौजूद हमारे पास। यह किसी को मुंह पर चोट पहुंचाने से भी ज्यादा ताकतवर बात है। प्यार! प्यार ऐसी ही एक चीज है कि जब एक इंसान इसे महसूस करे वह भूलेंगे नहीं। अगर आप किसी को दर्द देते हैं वह शायद ठीक होने के बाद वह सबकुछ भूल जायें, बेहतर हो जायें। लेकिन प्यार उन्हें भूलने नहीं देगा जो आप उनके लिए अच्छा करते हैं, प्यार से करते हैं। वह आपके भीतर है आपको बस इस्तेमाल नहीं करना आता, आपको खोजना नहीं आता। क्यों ? आप हमेशा उन छोटे पोस्ट कार्ड्स के बारे में सोचते रहते हैं जो यह प्रिंटर छापता रहता है हमेशा। प्यार के बारे में क्या सोचा है ? आपका दृष्टिकोण उस अच्छे इंसान के बारे में जिसे आप प्यार देना चाहते हैं। यही तो होता है हर बार यह पिक्चर्स जितना मैं इनके बारे में सोचता हूं कि यह कितनी बुरी हैं ? हर एक बार यह लोगों को बदलती हैं, मेरी काबिलियत, वह संभावना कि मैं इन दो दीवारों के बीच में क्यों हूं यहां पर ? जो समय मेरे पास है.. और वह इस प्रिंटर की वजह से सोच में पड़ जाते हैं जो और ज्यादा और ज्यादा और ज्यादा प्रिंट करता रहता है और मैं उन प्रिंट्स को देख कर कहता हूं कि "यह कितना अच्छा है।"

मेरे लिए तो यह अच्छा सफर रहा है। मेरा मतलब मैं स्पेन से बाहर आया — और लॉकडाउन शुरू नहीं हुआ था उस वक्त। वहां बस बातें ही चल रही थी और मैं निकल आया और फिर ब्राजील आ गया मैं। और उस समय में जब मैं ब्राजील आया था दक्षिण अमेरिका जाना ठीक था, अर्जेंटीना जाना भी ठीक था, मोंटेवीडियो जाना सुरक्षित था। पर मैं वहां कुछ दिनों तक रहने वाला था, शायद तीन दिन रहता और फिर उन्होंने कहा "नहीं, नहीं कोई अर्जेंटीना नहीं आएगा। मैंने फैसला लिया कि "अब हम सम्मेलन नहीं करेंगे। क्योंकि हम लोगों को एक साथ नहीं बुलाना चाहते यह समय गलत होगा।" तो मैंने कहा "नहीं मैं यह नहीं करूंगा" और फिर जब मैं निकला ब्राजील से अगले ही दिन खबर आई कि वहां लॉकडाउन होने वाला है, वो भी बंद कर रहे हैं।

मैंने देखा कि मैं कहां हूं और लोग इतने गरीब हैं, दूर रहना ही काफी नहीं है उनके लिए। वह तो बस और इसमें बस — उन्हें तो दूर रहना भी नहीं आता। पर गरीब लोग यही तो करते हैं वह साथ में मिलते हैं, चाय की दुकान पर जाते हैं, वह कॉफी की दुकान पर जाते हैं, वह कहीं और जाते हैं, वह मिलते हैं और यहीं पर वो लोग आपस में मिलकर बातें करते हैं, खबरें सुनते हैं और यही तो सबकुछ होता है। क्योंकि उनमें से कई प्रवासी मजदूर हैं और वह अलग-अलग गांव से आए हैं। उनके परिवार गांव में ही हैं और वो सब शहरों में कुछ पैसे कमाने के लिए आते हैं।

मैंने सोचा कि हे भगवान, गरीब लोग तो इससे बर्बाद हो जाएंगे और यह इतना जरूरी है कि सभी देशों की सरकारें और हम सब लोग इंसान होने के नाते जितना हो पाए हम मदद करें और मेरे पास कुछ अच्छी खबर है इसके नाते। तो मैंने टीपीआरएफ और साथ ही आरवीके इंडिया से एक रिपोर्ट मांगी कि टीपीआरएफ और आरवीके क्या कर रहे हैं! मैं आपसे ये सभी बातें साझा करना चाहूंगा। पर यह कमाल होता है देखना कि हम क्या-क्या कर सकते हैं, चाहे छोटा ही सही और उससे कितना ज्यादा प्रभाव पड़ता है।

इसलिए मैं जानता हूं चाहे कितनी भी मुश्किल परिस्थितियां क्यों न आएं, हृदय से सबके लिए सोचना शुरू करें। क्योंकि वो भी उसी नाव में हैं; हम सब उसी नाव में हैं; हम सब उसी नाव में हैं। नाव बिल्कुल अलग नहीं है। कोई एक तरफ हो सकता है; कोई दूसरी तरफ हो सकता है; कोई बीच में भी हो सकता है; कोई इधर-उधर — पर नाव एक ही है। तो कोई कह सकता है "हाँ मैं रास्ते में हूं; वहां जल्द पहुंचूंगा।" और फिर कोई और कहेगा कि "हां मैं कहीं और हूं और थोड़ी देर हो सकती है।" और फिर कोई कहे कि "मैं तो इस तरफ हूं, पहले डॉक में जाऊंगा।" और फिर कोई कहे कि.... "मैं स्टारबोर्ड और फिर डॉक जा रहा हूं।" पर यह एक ही नाव है। हमें समझना होगा और यह एक अहम पल होगा अगर हम समझें कि इंसानियत का उद्देश्य क्या है — इन समय में भी इंसानियत का मतलब क्या है। यह स्पेनिश फ्लू जैसा नहीं होने देना है दोबारा। यह दुनिया जिसमें इतनी तकनीकी है, इतनी जानकारी मौजूद है भूल गये कि असल में क्या था ?

तो उम्मीद है कि आप ठीक रहेंगे। कृपया सुरक्षित रहें; अच्छे रहें; सबसे जरूरी है, यह जीवन। धन्यवाद आप सबका!

लॉकडाउन — सत्रहवां दिन 00:18:05 लॉकडाउन — सत्रहवां दिन Video Duration : 00:18:05 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

हेलो नमस्कार सभी को! उम्मीद है आप ठीक हैं।

और जिस बारे में आज मैं बात करना चाहता हूं वह बहुत ही आसान है। क्योंकि यह शब्द है “सादगी” — कभी-कभी हम भूल जाते हैं कि सादगी होने का क्या मतलब है, इन स्थितियों में जब कोरोना वायरस में सब लोग अलग-अलग हैं, यह शब्द सही लग रहा है — क्योंकि वो लोग जो सच में इस शब्द के अर्थ को समझते हैं यानि “सादगी” वह इस स्थिति में ढल सकते हैं आसानी से। तो “सादगी” क्या है ? सादगी है यह स्वांस जो आप में आ रही है, बिना किसी मेहनत के जब आपको सोचना नहीं पड़ रहा — और यह आपको जीवन का तोहफा लाती है। कितना आसान है कि आप अपनी आंखों से देख सकते हैं यह नीला आसमान, यह बादल और आप संतुष्ट हो सकते हैं।

सादगी है अपने जीवन को देखना और समझना कि आपका अस्तित्व है, आप हैं — और यह कितना गहरा है, यह कितना सुंदर है; यह साधारण है। सादगी है, आपके हृदय में प्यार है और यह कि इस हृदय से आप प्यार कर सकते हैं और आपके पास प्यार का तोहफा है, सबके लिए — कोई भी जो प्यार को जगा सके आपके अंदर। आप प्यार दे सकते हैं उसे। अस्तित्व इतना आसान है। जीवन इतना आसान है, जीवित होना इतना आसान है और गहराई का तज़ुर्बा है इस सबके बीच में भी, यही तो है सादगी।

कल रात मैं सोने की कोशिश कर रहा था — और एक तूफान आया और हवा चल रही थी। आप बारिश को सुन सकते थे और हमें तूफान पसंद नहीं है; क्योंकि तूफान का दूसरा नाम कुछ अच्छा नहीं है। लेकिन तूफान क्या है ? हवा चलती है — अब हमें हवा पसंद है; पर बहुत ज्यादा नहीं। जब हवा हमारे बाल खराब करती है और हमें, और चीजों को, और इधर-उधर फेंक देती है। हम ड्राइव नहीं कर पाते हैं; हम उड़ान नहीं भर पाते हैं प्लेन में। चीजें कुछ खराब हो जाती हैं। बारिश आती है, हमें बारिश नहीं पसंद। हमें गीला होना पसंद नहीं। हमें गीला होना क्यों नहीं पसंद ? अब जब आप देखेंगे कि भाप बनती है — जब हम गीले होते हैं तो भाप बनती है और हमें ठंड लगती है। हमें ठंडा होना पसंद नहीं। हमारा तापमान बहुत जल्दी बदलता है। फिर हवा तेज हो सकती है, ठंड हो सकती है, बारिश आ सकती है, बर्फ पड़ सकती है। तूफान आ सकता है और फिर भी आप क्या कर सकते हैं जब एक तूफान आता है ?

इसलिए मैं यह सोच रहा था। तो मैं यहां हूं जैसे कि “अब मैं क्या करूं; कोई क्या करे जब तूफान आए ?” और एक तरह से तूफान आपके नियंत्रण में नहीं है, यह आपके नियंत्रण में नहीं हो सकता। लेकिन आप इस तूफान में क्या करेंगे ? आप कैसे प्रतिक्रिया देते हैं ? यह आपके नियंत्रण में है। आप इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। यह छोटी-सी बात, यह छोटा-सा रास्ता जो आपके पास है विश्व में काफी फर्क़ ला सकता है। यह छोटा-सा सुनाई दे सकता है। यह कम जरूरी लग सकता है — पर यह सबसे जरूरी है। "मेरा तूफान पर नियंत्रण नहीं, लेकिन मैं कैसे…?"

और आप जानते हैं, मैं बिस्तर में पड़ा हुआ था — और बहुत आराम से था और हालांकि बाहर कुछ तूफान तो है, पर मैं ठीक से था, क्योंकि मैं तो वहीं था। बिल्कुल इसी तरह जब हमारे कानों के बीच में तूफान आता है एक जगह ढूंढने के लिए, हृदय में शांति प्राप्त करने के लिए और आराम से बैठें, शांति से और फिर अचानक से ही… हालांकि तूफान तो है आपने एक गहरी जगह ढूंढ ली है जो आपके भीतर इतनी सुंदर है। और उस जगह में, हृदय की उस जगह में आपको आराम मिल सकता है। आनंद ले सकते हैं आप और तूफान को सुन और देख सकते हैं। और जब तूफान चला जाएगा, सूरज फिर से आएगा। यह बात समझनी इतनी जरूरी है कि "जी हां, जीवन में तूफान आते हैं, स्थितियां बदलती हैं, पर उस स्थिति के सामने झुकना नहीं है।" हमें तब भी याद रखना होगा कि यह जानना कितना जरूरी है कि हम इस मौके को समझें कि यह मौका क्या है ? मेरा मतलब यह मौका क्या है ? सच में, क्या आप जानते हैं ? मैं सोच रहा था जैसे कि “क्या इसमें कुछ भी अच्छा है ?”

क्योंकि मेरे बहुत सारे प्लांस थे। मैंने इतनी जगहों पर जाना था, कई लोगों से मिलना था और मुझे इवेंट्स की याद आ रही थी, जहां पर सब दिखते हैं। मुझे लोगों की आंखों में देखना पसंद है और उनके सामने सीधे-सीधे बात करना पसंद है। मेरा मतलब, यह ठीक है — मतलब कि मेरे सामने दो काली चीजें हैं मैं इसे देख रहा हूं और इनमें कोई भी भाव बिल्कुल भी नहीं हैं। यह मेरी कही हुई कोई भी बात नहीं मानते। मेरी किसी बात को ना ही मना करते हैं, ना ही मेरी कोई बात मानते हैं। यह बस यहां पर हैं — यह दो काले गड्ढे जो कि कैमरा के लेंसेज हैं। मेरा मतलब, मैं कल्पना ही कर सकता हूं कि सब देख रहे हैं, सुन रहे हैं, कोई उनके लिविंग रूम में है, कोई कहीं और देख रहा है, कुछ, कुछ, कुछ ऐसा ही। लेकिन यह मौका क्या है — और मेरा मतलब यह बुरी स्थिति है दुनिया के नेता झूठ बोल रहे हैं। सभी नेता कोशिश में हैं और अचानक से ही कि उनकी कुर्सी किसी तरह बच जाए और अगर यह कहानी बुरी होती है, दुर्घटना होती है तो वह कह देंगे कि यह आने ही वाला तो था। वह पूरी दुनिया की तैयारी में मदद नहीं कर रहे हैं। और पूरी दुनिया के पास तैयारियों का वक्त तो था, काफी वक्त था तैयारियों का, लेकिन गलतियां हुई हैं। सच मानिए हम इसके बीच में हैं, लेकिन बाद में मुझे उम्मीद है कि लोग इससे कम से कम कुछ सीख ही पाएंगे।

क्योंकि मैं हाल ही में एक दिन एक डॉक्यूमेंट्री सुन रहा था। वह स्पेनिश फ्लू के बारे में थी — और वह काफी समय पहले हुआ था। उस स्पेनिश फ्लू और आज की बीमारी में इतनी सारी बातें मिलती-जुलती हैं क्या बताऊं आपको। और लोगों ने इज्जत नहीं की — दुनिया भर के नेताओं ने जो भी कहा उसकी बेइज़्ज़ती की गयी। जैसे कि कुछ नहीं सीखा हो और जो भी आप देखते हैं कि आज जो हो रहा है उसकी तुलना में स्पेनिश फ्लू के समय हुआ था, ऐसे ही मानिए कि एक भी बात नहीं सीखी गई है, कुछ नहीं सीखा हमने। और इतनी सारी सूचना तकनीकी के साथ भी और जो भी उपलब्ध है मेरा मतलब, यह इतनी बुरी स्थिति बना दी गई है, क्योंकि मेरे लिए एक मृत्यु, एक मृत्यु ही इस सबको होने से बचा सकती थी — बस एक ही काफी थी। तो इस बहुत ही बुरी, भयावह समय और स्थिति में क्या कुछ अच्छा है ? क्या कुछ ठीक है ?

मैं देखता हूं एक चीज अच्छी है कि आप खुद के करीब जा सकते हैं। अपने अस्तित्व को समझना। समझना कि आप असल में क्या हैं, आपके भीतर क्या है — इस जीवन की अहमियत को समझना और समझना और सराहना करना कि कानों के बीच का शोर कितना ताकतवर है। और जब मैं उस शोर की बात करता हूं, कई लोग कहते हैं कि "ओके, हां, हां, मुझे भी लगता है!” लेकिन अब ऐसा है कि शायद यह कई गुना बढ़ गया है, बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा। यह शोर कितना ज्यादा हो गया है, यह आता है इतनी तेज और चुभता है दिन और रात, दिन और रात, दिन और रात और यह यही है! कितना ताकतवर है यह है ना ? पता है ना आपको ?

वो लोग हैं जो “अध्यात्म” में चले जाते हैं, वो अध्यात्म को समझने लगते हैं। कहते हैं जैसे कि "सब के लिए इस तरफ का सफर करना अच्छा है, हमें यह करना है, हमें वो करना है…" और लोग सबकुछ देख रहे हैं। लेकिन अब इस जगह आपके पास एक शोर है जो आपको परेशान कर रहा है और बस सोचिये इसके बारे में हर समय यह सुनाई देती जा रही है। और कभी-कभी आप नहीं सुनते क्योंकि आप भ्रमित हैं। लेकिन वह तब भी है और आप बस बैठकर यह शोर सुनते नहीं रहते, क्योंकि आप इससे भ्रमित हैं। आप इसकी वजह से भ्रमित हैं। कभी-कभी मुझे लगता है कि लोगों को भ्रमित होना पसंद है और उन्हें यह शोर सुनना ना पड़े, इससे वो बचने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन यह शोर चलता जाता है। पर अब इसकी वॉल्यूम, इसकी ध्वनि बहुत ज्यादा है, पर आपको अब असंभव करके दिखाना है जो कि है "आपको खुद के साथ जीना है।" मुझे पता है ऐसे कई लोग हैं जो ऐसा नहीं कर सकते, वो इसे झेल नहीं सकते — वो खुद को झेल नहीं सकते। क्या यह दुखद बात है ? हूँ, मुझे तो लगता है हां यह काफी दुखद है। अगर आप खुद के साथ नहीं रह सकते, अपने खुद के साथ, अगर आप खुद के साथ खुश नहीं हैं तो फिर किसके साथ आप खुश रह पाएंगे कभी भी ?

काफी समय पहले मुझे यकीन है यह काफी अलग रहा होगा कि आप हर रोज जाते हैं और पूरा-पूरा दिन आप बैरीज़ इकट्ठी करते हैं और आप इन्हें खोजते हैं या आपको जो भी मिल जाए वो। आप हंटर गैदरर हैं, हम यही लोग तो थे उस वक्त पुराने जमाने में और आप इकट्ठा करके खाते हैं। फिर शाम को आप सो जाते हैं, आप नींद लेते हैं और उम्मीद होती है कि रात को कोई जानवर आकर आपको खा ना जाए। पर आप नींद लेते हैं फिर सुबह उठते हैं और फिर वही सब करते हैं और मुझे यकीन है कि लोग इससे तंग आ चुके होंगे कि "काश हमारे पास कोई एक जगह होती जहां जाकर खाना मिल जाता।" उस समय से हमने एक प्रणाली विकसित की है और जो प्रणाली हमने विकसित किया है यह बात कि आपको ऐसा करने में पूरा दिन लगाना पड़ता है यह बदला नहीं है। क्योंकि अब आप बैरीज़ या खाना इकट्ठा करने नहीं जाते। अब आप काम करते हैं ताकि आप खाना खरीद सकें, यही तो है बदलाव जो हम लेकर आए हैं। पहले हम लोग तो बस किसी को पैसे नहीं देते थे, हम पैसे कमाने की कोशिश में नहीं थे। हमें पैसे की जरूरत नहीं थी, क्योंकि गुफाएं मुफ्त थीं और हमें बस क्या करना था कि हमें बाहर जाना था, पूरा-पूरा दिन और जो भी मिले फल मिले, बैरी मिले वापस लाना था और उसे खाना था — और बस इतना ही था।

एक बड़ी समस्या जो मैंने सोची उन दिनों में रही होगी कि "आपको रोज खाना मिलेगा या नहीं ?" तो कुछ दिन ऐसे भी थे जब खाना नहीं मिलता था और आप भूखे ही रहते थे। एक तरह से अब हमने एक समाज बनाया है जहां हम व्रत रखकर खुश होते हैं। तो यह वही बात है — लेकिन तब यह अपने आप होता था क्योंकि आपको कुछ खाना नहीं मिलता था और आपको चलते रहना था और अब आप जान-बूझकर यह करते हैं। आप कहते हैं ताकि, जानते हैं, जिस भी वजह से। और आप यह रहे, आप पूरा दिन काम करते हैं पुराने दिनों की तरह आप सुबह से उठकर बाहर जाते हैं, काम करते हैं, पैसा कमाते हैं ताकि आप खाना खरीद सकें — आप खाना खरीद सकें इसलिए। इस प्रणाली में सुनिश्चित करते हैं कि खाना हमेशा हमें मिलता ही रहे। हमने कुछ ज्यादा ही खाना बना लिया है मतलब कि, कितनी ज्यादा मात्रा में खाना उगाते हैं हम कि वह बर्बाद जाता है अब। हम खा नहीं पाते उसे और जब आप देखें इतने जानवर जिन्हें मारने के लिए ही पाला जाता है यह बात तो समझ से बिल्कुल बाहर है।

जब आप इस सब को देखते हैं हमने एक प्रणाली बनाई है, लेकिन अब समस्या यह है कि हम इससे जूझ नहीं पा रहे हैं। यह अब भी समस्या हमारे सामने ही मौजूद है। हमारे पास ज्यादा खाना है, हमें खाना ढूंढना नहीं है। लेकिन अब भी बाकी काम तो हैं ही, जिसका काम है “पैसा कमाना।” आपको पैसा बनाना है, पैसा बनाइए और उसमें पूरा दिन लगता है और फिर उस पैसे से हम खाना खरीदते हैं। देखिए, मैं वह नहीं जो फैसला दे कि यह सब अच्छा है या नहीं है ? आप इसका फैसला ले सकते हैं। पर मुझे यह किसी तरह आसान-सा नहीं लगता है। मैं बात कर रहा हूं सादगी की, मैं बात कर रहा हूं आपके भीतर के सीधे-साधे अस्तित्व के नियम की, जो बेहद आसान-सा है, बहुत आसान। वो जरूरतें जो आपकी हैं — चाहतें नहीं जरूरतें, जो आपकी हैं। हवा, जल — एक बड़ी-सी प्रणाली, जिसे खारे पानी को लेकर मीठा पानी बनाया जाता है, साफ पानी। उस पानी को उपलब्ध करवाना, सभी नदियों की प्रणाली, सभी झरने, दुनिया की सभी प्रणालियां। हवा… यहां है; वहां है, सब जगह है।

सादा, सच्चा, प्यारा, यह है जीवन। आसान-सी बातें, आसान, आसान, आसान चीजें स्पष्टता के लिए, समझ के लिए, आगे बढ़ने के लिए, खुश रहने के लिए, हर रोज का आनंद लेने के लिए। और एक दिन तो सब खत्म होना है, सर्कस उठ जाएगा, सब खत्म होगा। लेकिन उस दिन तक हर रोज आनंद, आनंद, आनंद, यहां से नहीं — लेकिन इधर से सबसे अच्छा, सबसे सुन्दर तरीका।

तो आप ठीक रहें; सुरक्षित रहें और आपसे फिर बात होगी। धन्यवाद!

लॉकडाउन — सोलहवां दिन 00:16:17 लॉकडाउन — सोलहवां दिन Video Duration : 00:16:17 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

आप सबको नमस्कार,

उम्मीद है आपकी सेहत बिल्कुल ठीक है। वीकेंड आ गया है और इसलिए हम कुछ सवालों के जवाब देंगे। “मैं किस तरह से सुंदरता और शांति ढूंढ सकता हूं जब दुनिया में इतना अंधकार फैला हुआ है और मुझमें भी ? मुझे अपने भीतर के जीवन से जुड़ने का तरीका नहीं मिल रहा है। मुझे पता है वह है जैसे आपके साथ शांति मिली है, मैं प्यार के माध्यम से बुरे विचारों और दर्द को मिटाना चाहता हूं ?”

यह बहुत ही आसान है कि यहां पर यह अजीब है कि मैंने अभी-अभी ऐसे ही सवाल का जवाब दिया ही था, बस मिलता हुआ। तो बात यह है कि आप समझें कि यह अंधकार यहां पर है लेकिन यहां पर रोशनी भी है और यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चुनते हैं। पसंद आपकी होगी — आप अंधकार चुन सकते हैं और अंधकार आपको मिल जाएगा। और आप रोशनी चुन सकते हैं और रोशनी आपको मिलेगी, यह इतना ही आसान है बस। यह आसान है ना ?

अब आप सोचिए! जी हां, जब हम एक बुरी परिस्थिति में होते हैं कई बार तो हमें पता भी नहीं चलता कि हम उस स्थिति में जा रहे हैं, लेकिन हम धीरे-धीरे और यकीनन उस अंधकार की ओर जा रहे होते हैं। सचेत जीवन खो जाता है। हम सचेत होकर जीना नहीं चाहते हैं उसमें परेशानी होती है, वह मुश्किल भरा है तो हम क्या करना शुरू करते हैं ? सचेत जीयें! हम ध्यान नहीं देते — “यहां क्या होता है; वहां क्या होता है; यह क्या है; वह गलत; यह सही” और बस हम शुरू हो जाते हैं। हम यह कदम बनाते हैं, हम यह कदम चलते हैं और अंधकार की ओर जाते रहते हैं। हम अंधकार की ओर जा रहे हैं, हम यह बात ध्यान नहीं देते, सोचते नहीं कि हम खो रहे हैं और खोना एकदम से नहीं होता — यह एकदम से, अचानक से नहीं होता है। आपको लगता है कि आप सही जगह पर जा रहे हैं, लेकिन अचानक से ही ऐसा होता है कि “नहीं यह तो वह जगह नहीं, जहां पर मैं होना चाहता था।” और फिर अचानक आपको समझ में आता है और यह समझ में आना बहुत ज्यादा परेशान करने वाली चीज है कि “भाई क्या हुआ ? मैं कहां था ?” यह गलत सवाल है “मैं कैसे खो गया ?” पर सवाल होना चाहिए “मैं वापस कैसे जाऊं ?” यह नहीं कि “मैं कैसे खो गया!”

तो हम अंधकार की ओर जाते हैं। जीवन अचेतना में जीते हैं और यह आप इसे कह भी सकते हैं कि यह तो होने ही वाला है। लेकिन तब जीवन सचेत होकर जीने का भी विकल्प है आपके पास। मेरी भी एक पसंद है उन बातों को समझना, जो रोशनी के स्रोत हैं — वह मुझमें ही हैं। समझ के स्रोत मुझमें ही हैं। स्पष्टता के स्रोत — मेरे ही भीतर हैं और मुझे बाहर नहीं भटकना है, उसे देखते हुए और सोचना कि यह सब कहां पर है और बहुत सारे लोग वो कहते हैं कि “अरे! वह कितना अच्छा समय था लेकिन वह कहां चला गया ?”

देखिए! वह कहीं नहीं गया वह आप में ही है, हमेशा वह आप में ही है, हमेशा आप में ही था और हमेशा आप में ही रहेगा, आखिरी स्वांस तक। जी हां! क्या होता है हमारी स्थिति जो है — चाहे स्थिति जो भी हो ज्यादा भावुक कर देती है, पकड़ लेती है हमें, हरा देती है हमको, हमारी पसंद पर वह काबू पा लेती है। हमारी पसंद, हमारी समझ; हमारी स्पष्टता और उसे करने ही देते हैं हम लोग। क्योंकि तब ही इन चीजों पर काबू मिलता है उसे। और आपको इससे बिल्कुल विपरीत करना है, इससे उल्टा। आपको अपनी स्पष्टता को पकड़े रहना है। आपको उम्मीद को नहीं छोड़ना, आपको खुशी को नहीं छोड़ना, आपको समझ को नहीं छोड़ना, आपको अपनी शांति को नहीं छोड़ना और फिर एक तूफान की तरह तूफान चला जाएगा। सूरज फिर से उगेगा और सबकुछ ठीक हो जाएगा। तो यही बात आपको समझनी है कि ये ऐसे ही काम करता है और आप में वह सुंदरता है और वह सुंदरता हमेशा आप में ही रहेगी।

यह है एक और सवाल! “कई लोगों के सामने आर्थिक और नौकरी की परेशानी है। क्या आप हिम्मत की कुछ बातें उनसे कह सकते हैं जो लोग ऐसी स्थिति का सामना कर रहे हैं ?”

दोबारा, वही बात जो भी बाहर हो आपको आगे बढ़ने की ताकत रखनी ही होगी। वह हिम्मत ताकि आप आगे बढ़ें। अब दोबारा मैं आपको यह उदाहरण बताऊंगा जो मैं कई बार बताता हूं — जब आप अपनी मां के गर्भ से बाहर आए, जब आप पैदा हुए आपको जो करना था वह असंभव था। उस वक्त, जीवन के उस पल में आप सबसे कमजोर थे। हे भगवान! आप चल नहीं सकते थे, बात नहीं कर सकते थे, आप कुछ कह नहीं सकते थे, कुछ उठा नहीं सकते थे, आप बेहद कमजोर थे और सबकुछ, सबकुछ सच में आपके खिलाफ ही था। आपको तो उस समय में दुनिया बदलनी पड़ी थी असल में। मेरा मतलब, जी हां, वह सब जिसमें आप उस समय तक थे आपके लिए सबकुछ मां से ही मिल रहा था और अब वह सब चला गया था, बिल्कुल अलग। आपको स्वतंत्र बनना था जितनी ताकत आपको अपनी मां के गर्भ से बाहर निकलने में लगानी पड़ी होगी उतने में एक बड़ा रॉकेट धरती के वातावरण से बाहर निकल जाता, यह थी स्थिति। सोचिए! यह थी स्थिति।

आप अपनी मां के गर्भ में थे, पानी में डूबे हुए थे और अब आप बाहर आने वाले थे इस दुनिया में, जहां आपको हवा से सांस लेनी थी और मैं तो शारीरिक स्थिति की बात कर रहा हूं। यह बिल्कुल ही अलग होने वाली थी, बिल्कुल, बिल्कुल, बिल्कुल अलग। तो फिर आपने क्या किया ? आपने स्थिति की गंभीरता को देखा और फिर कहा कि “जी नहीं!” तो आप तो पैदा ही नहीं होते — ऐसे तो आप पैदा ही नहीं होते। तो आपने उस चुनौती का सामना किया। वह इच्छा आप में थी। जी हां, और हां बिल्कुल आपने उसे चुनौती की तरह नहीं देखा आपको बस वह सामने से मिल गई थी और बस यही था। तो क्या आपको लगता है ये जितनी भी चुनौतियां हैं जिनके बारे में आप आज सोच रहे हैं यह उस चुनौती से बड़े थे, जो आप पार करके आए हैं। मैं सोच भी नहीं सकता ऐसा कि ये उस बात से बड़े हो सकते हैं, किसी भी तरह।

मैं बात करता हूं बदलने की — अनचेंज। लोगों को बदलाव शब्द पसंद नहीं “मैं नहीं बदलना चाहता।” लोग खुद से कहते हैं “मुझे नहीं बदलना!” तो मैंने सोचा किसी तरह, किसी और तरह से बताया जाए। तो इसका मतलब जीवन में एक समय पर आप बहुत मजबूत थे। आप बहुत ज्यादा ताकतवर थे; आप स्पष्ट थे कि आपके उद्देश्य क्या हैं! आप उन्हें अच्छे से जानते थे और आप में कोई झिझक नहीं थी उन्हें पूरा करने में। तो यह बदलना, अनचेंज — बदलाव तो हुआ है और अब चीजें काफी बदल रही हैं तो शायद एक अलग बदलाव चाहिए हमें ताकि वह ताकत वापस मिल पाए। वह स्पष्टता वापस चाहिए; वह समझ वापस चाहिए — कमजोरी नहीं, उदासी नहीं, निराशा नहीं, ये बहस की बातें नहीं कि “ओह अब मेरे साथ क्या होगा ?” जो चुनौती आए उसे झूझिये और मेरी मानिए यह होगा! कई लोगों के लिए बस एक लंबा, लंबा सफर जो अभी शुरू ही हुआ है — अलग रहना और बाकी सब इसका एक भाग ही हैं। इसके बाद हमें देखना है कि क्या होता है, क्योंकि मैं बता सकता हूं सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है।

कुछ नेता जो आज हमारे पास हैं दुनिया में वह अच्छे नहीं हैं, मैं किसी का नाम नहीं लूंगा। जी हां, पर वह अच्छे नेता नहीं हैं। वह बिल्कुल, आप उन्हें देख सकते हैं कुछ भी बोलते हुए। वह कुछ भी कहते हैं, जैसे काम के बीच में लंच करने गए हों और वापस आए ही ना हों। तो आप समझ सकते हैं कि वह कैसे हैं! उनको कुछ नहीं पता कि क्या चल रहा है! उनको लगता है कि मृत्यु और ये सब बातें सिर्फ एक संख्या है, यह ग्राफ है। पर मेरे लिए एक मृत्यु भी — मतलब एक नुकसान भी यह प्राकृतिक नहीं था, यह काफी था। यह बुरा था और हम इसके बारे में कुछ कर सकते थे। देखिए हमें मदद कहना नहीं आता। हम मदद कहना भूल गए है; हम मदद भूल गए हैं। हम यह कहना भूल गए हैं कि “मैं आपकी मदद कर दूं!” हम भूल गए हैं इंसानियत — इंसानियत अब खत्म हो रही है और जबतक इंसानियत कम होती रहेगी हम इंसानों के पास क्या बचेगा ? कुछ नहीं! हम किस पर निर्भर करेंगे ? कुछ नहीं! हम किसी की ओर देख भी पाएंगे उम्मीद से ? जी नहीं! तो यह एक बहुत-बहुत ही लंबा सफर होने वाला है।

तो यह है एक और जरूरी सवाल मेरे हिसाब से। “डियर प्रेम रावत! मुझे आपको सुबह-सुबह सुनना अच्छा लगता है। मेरी 95 वर्ष की दादी वृद्ध आश्रम में हैं और वहां जाना मना है। मुझे डर है उन्हें कुछ हो ना जाए अकेले में ही और मौका ना मिले मुझे उनको अलविदा कहने का।” (अच्छा है, अच्छा ये दादा की बात कर रहे हैं माफ कीजिएगा।) “अलविदा कहने का कोई मौका नहीं है। अंतिम-संस्कार करने का भी मौका नहीं है। मुझे पता है उनका जीवन अच्छा था, लेकिन इस तरह से जीवन अंत हो यह कौन चाहता है। मैं उनको क्या लिखूं ताकि उनकी मदद हो पाए इस समय ?”

सिर्फ एक बात लिखिये कि आप प्यार करते हैं उनसे। आप यही कह सकते हैं “मैं आपसे प्यार करता हूं। आप अच्छी रहिए; सुरक्षित रहिए। और मैं आपसे प्यार करता हूं और मैं आपको हमेशा प्यार करता रहूंगा। आप मेरी यादों में हैं और आप मेरी यादों में हमेशा ही रहेंगी; मेरे हृदय में और मैं आपसे प्यार करता हूं।” और आप क्या कह सकते हैं ? सच मानिए! क्या कह सकते हैं! आपको स्थिति स्वीकारनी होगी। कई बार जो रास्ता होता है वह वैसा नहीं होता, जैसा हमने सोचा होता है। सच मानिए, मेरी बात! आप इस बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। अफसोस की बात है। यह बुरा है। वह बीमारी को बढ़ने आप नहीं देना चाहते हैं इसलिए अलग किया हुआ है सबको। आप वहां नहीं जा सकते हैं। मुझे पता है आप कुछ सोच के ही बैठे हुए थे, लेकिन आपको वह मन की तस्वीर अब अलग रखनी होगी और एक सच्चाई को आपको देखना होगा। और सच्चाई भी सुंदर ही है कि आप प्यार करते हैं और वह भी आपसे प्यार करते हैं — यह सच बात है!

कोरोना वायरस हो या ना हो आप प्यार करते हैं उनसे और वह आपसे। कोई दीवार, कोई दूरी नहीं है। वो दो दीवारें भी प्यार को अलग नहीं कर सकती हैं, यही तो है प्यार! प्यार दीवार पार कर सकता है; प्यार लंबी दूरी तय कर सकता है; प्यार समुद्र की गहराई में पहुंच सकता है; प्यार ऊपर आकाश में स्वर्ग तक पहुंच सकता है। प्यार है और यही प्यार को खास बनाता है। इसकी कोई सीमा नहीं है। यह कभी नहीं खत्म होगा। जबतक आप जीवित हैं आप उन्हें रोज प्यार करते रहेंगे और वह आपको प्यार करते रहेंगे, यह कितनी कमाल की बात है, कितना अच्छा है ये। जो स्थिति है उसे अपनाइए और सबसे जरूरी बात उस प्यार को मानिए जो आप में है अपने प्रियजनों के लिए। ऐसा ही होना चाहिए। अपने मन में कोई ख्याली तस्वीर मत रहने दीजिए, बस उन्हें सच्चाई बनाइए। सच्चाई को देखिए जो है और शायद आपको उससे मदद मिलेगी।

तो आप सबका धन्यवाद! आज के लिए इतना ही समय है हमारे पास। हम कल कुछ और सवालों के साथ लौटेंगे। सुरक्षित रहें और रहिए खुश!

लॉकडाउन 58 00:25:27 लॉकडाउन 58 Video Duration : 00:25:27 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (5 जून, 2020)

प्रेम रावत जी:

हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज फिर मौका मिला है आपलोगों के साथ बात करने का। मेरे को जो खबर मिली है उसके अनुसार बहुत ही शीघ्र हिंदुस्तान में जो लॉकडाउन है वह इज अप होगा, थोड़ी-सी उसमें स्वतंत्रता मिलेगी। और धीरे-धीरे फिर इसको और बढ़ाया जाएगा। तो यह तो एक किस्म से खुशखबरी भी है, परंतु यह एक गंभीर बात भी है और गंभीर इसलिए है, क्योंकि अब कन्टैमनैशन के जो चांसेज हैं, जो संभावना है कन्टैमनैशन होने की, वह और भी बढ़ गई है। और जैसे-जैसे लोग आपस में मिलेंगे, रेस्टोरेंट्स में जाएंगे, मंदिरों में जाएंगे, जहां भी जाएंगे तो यह कन्टैमनैशन जो है, यह जो महामारी की बीमारी है यह और फैलेगी। क्योंकि लोग जो नहीं जानते हैं कि वह इसको अपने साथ ले जा रहे हैं इन जगहों में, तो उनके साथ यह मतलब — कोई यह जानबूझकर नहीं करेगा, परंतु गलती से यह सबकुछ संभव है।

तो हम इसके बारे में क्या करें ? एक तो वही बात आती है कि — एक तो जितना संभव हो सके उतना मास्क पहनिये और वही दो बातें — "एक किसी को दो मत और एक किसी से लो मत!" तो वही अगर थोड़ा-सा आप ध्यान रखें उसमें तो ठीक है, सबकुछ ठीक रहेगा। परन्तु सबसे बड़ी बात है कि जो यह है, जो मन है इसको कैसे समझायें ? क्योंकि इसमें तो सारी वहीं फीलिंग्स आती हैं। उसमें डर भी है, उसमें ये सारी चीजें हैं कि "अब मेरा क्या होगा, यह नहीं होना चाहिए, यह नहीं होना चाहिए।" और कहीं किसी ने छींक भी दिया तो गड़बड़ हो जायेगी। क्योंकि फिर वही विचार आने लगेंगे।

अभी मैं पढ़ रहा था कुछ लोगों के प्रश्न, तो उसमें कई लोग हैं कि "भाई! हम जब बैठते हैं तो हमारे विचार इधर-उधर भागते हैं।" कभी इस तरफ भागता है, कभी उस तरफ भागता है। अब सबसे बड़ी बात यह है कि यह जो मन की प्रकृति है इधर-उधर भागने की, यह तो तब भी है जब सबकुछ यह महामारी नहीं थी। कबीर दास जी इसके बारे में कहते हैं। उसके बारे में मैंने काफी कहा भी है, तो ये सारे झंझट तो हमेशा मन के चलते ही रहते हैं। बात यह है कि यह जो रेलगाड़ी है, यह जो गाड़ी है इसकी एक संभावना यह है कि यह ऐसे रास्ते से गुजरेगी जिसमें गड्ढे बहुत हैं, ऊपर-नीचे होगा और जो भी उस गाड़ी में बैठा हुआ है उसको अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि सारी चीजें हिलेंगी। बात यह है कि यह जो मन की गाड़ी है क्या आपको इसमें बैठना ही है, क्या यह जरूरी है या आपको इसमें नहीं बैठना है ? खड़े हैं — बगल में खड़े हैं गाड़ी आ रही है, जा रही है, ठीक है कोई बात नहीं।

यह प्रश्न — आपको इसका उत्तर देना है कि आप अपने जीवन में क्या चाहते हैं ? क्योंकि दुनिया है और दुनिया लगी हुई है "कोई कुछ कह रहा है; कोई कुछ कह रहा है; कोई कुछ कह रहा है; कोई कुछ कह रहा है" और लोगों को दिक्कत हो रही है। कुछ लोगों की बात सुन रहे हैं लोग — "यह उसने कैसे कह दिया, यह उसने कैसे कह दिया, यह उसने कैसे कह दिया।" भाई! कह दिया उसका मुंह है। अब जैसे आप बोलते हैं, वैसे उसने बोल दिया। इसका यह मतलब थोड़े ही है कि उसने वह सोचा या विचारा कि "मेरे को क्या कहना चाहिए!" कई लोग हैं जो मुँह खोलते हैं और कुछ भी बक देते हैं। परन्तु क्या यही मनुष्य की सबसे अच्छी चीजें हैं मनुष्य के अंदर ? जो कुछ भी बढ़ियापन है मनुष्य का वह क्या है ? खो जाना चीजों में या अपने जीवन के अंदर उस चीज के बारे में चिंता करना जैसे कहा है कि —

“चिंता तो सतनाम की और न चितवे दास” — उसके बारे में मैं बहुत सोचता हूँ, क्योंकि हर एक चीज की चिंता होती है — "कभी यह करना है, कभी यह करना है, कभी यह करना है, कभी यह करना है।" परंतु चिंता किस चीज की होनी चाहिए ? चिंता होनी चाहिए कि यह मेरा जो शरीर है जबतक मैं यहां जीवित हूं मेरा समय बेकार न जाए। जो कुछ भी मेरे को करना है — पहले तो यह मालूम करना चाहिए अपनी जिंदगी के अंदर कि करना क्या है! कौन-सी ऐसी चीज है जो करनी चाहिए! दुनिया के लोग बताते हैं कि "यह करना चाहिए; वह करना चाहिए; ऐसा होना चाहिए; ऐसा होना चाहिए" उसके पीछे हम लग जाते हैं। परन्तु इसके लिए आपको मनुष्य शरीर नहीं मिला है। मनुष्य शरीर किसी और चीज के लिए मिला है। क्या ? "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा" — यह साधना का धाम है, मोक्ष का दरवाजा है — इसके लिए आपको यह शरीर मिला है। इसके लिए नहीं कि हम यह कर लेंगे, हम ये चला लेंगे!" हवाई जहाज मैं भी चलाता हूं पर मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि हवाई जहाज चलाने के लिए मेरे को यह मनुष्य शरीर नहीं मिला है।

अभी कुछ ही दिन पहले 40 साल हो गए मेरे को हवाई जहाज उड़ाते हुए। मेरे को तो याद भी नहीं कि कब मैंने चालू किया। किसी ने कहा कि "आपको बहुत-बहुत मुबारक हो 40 साल हो गए!" मैंने कहा, "बड़ी अच्छी बात है।" परन्तु जो सारी चीजें मैं करता हूँ, "कभी ये हो रहा है, कभी ये हो रहा है, कभी ये हो रहा है" — यह मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि इसलिए मेरे को यह मनुष्य शरीर नहीं मिला है। करता हूं मैं ये सारी चीजें जो करनी हैं, जो मेरी जिम्मेवारियां हैं उनको मैं पूरी करता हूं, परंतु मेरे को अच्छी तरीके से यह ज्ञान है कि मेरे को मनुष्य शरीर इसलिए मिला है कि मैं वह साधना करूं और अपने समय को, अपने शरीर को यह जो मेरे को मौका मिला है इसको मैं सफल करूं। कई लोग हैं जो यह कहते हैं इसका क्या मतलब हुआ जी ? इसका मतलब हमको ये नहीं करना चाहिए, हमको वो नहीं करना चाहिए।

नहीं! बात यह नहीं है कि आपको ये नहीं करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप अपनी सारी जिम्मेवारियों को छोड़ दीजिए। अगर आपके बच्चे हैं आपकी वो जिम्मेवारियां हैं। परन्तु इन जिम्मेवारियों के होते हुए भी उस जिम्मेवारी को भी समझिये जो जिम्मेवारी है। जिसके लिए आपको यह मनुष्य शरीर मिला है। यह ज्यादा दिन के लिए नहीं है। ये सारी चीजें जो हो रही हैं इससे आप विचलित नहीं होइए, क्योंकि यह सचमुच में मनुष्य को बेचैन बनाने वाली चीजें हैं। जिससे मनुष्य बेचैन होता है, चैन नहीं है। और आपको चाहिए चैन और वह चैन कहां है ? वह आपके अंदर है। जो शक्तियां आपके पास हैं आप उनको भूल जाते हैं। भ्रमित होने का सबसे बड़ा कारण मनुष्य का यही है कि जो वह जानता है उसी चीज को वह भूल जाता है। उसी चीज को वह भूल जाता है। जब भूल जाता है तो उसको यह समझ में नहीं आता अब मैं क्या करूं ? किस तरफ जाऊं ? मेरे साथ क्या होगा ? तो सचमुच में एक-एक कदम — अगर हम अपनी जिंदगी के अंदर एक-एक कदम देखकर चलें। यह नहीं है कि पीछे से हमको लोग धक्का मार रहे हैं भेड़ की तरह हम भी चल रहे हैं। परंतु सचेत होकर के यह जानकर के कि "यह मेरी जिंदगी है, यह मुझे मिली है, एक-एक कदम अगर हम सोचकर, समझकर के आगे रखेंगे तो हमको इस जीवन के अंदर जीने में जिम्मेवारियों के होते हुए भी, समस्याओं के होते हुए भी हमको आनंद मिलेगा।

कैसा आनंद ? वैसा आनंद जब मनुष्य समझता है कि यह जो आवाज आ रही है जिससे कि मैं विचलित हो रहा हूं। ये जो समस्याएं आ रही हैं जिससे मैं विचलित हो रहा हूं, मेरे को विचलित होने की जरूरत नहीं है अर्थात ये समस्याएं भी चली जाएंगी। फिर नई वाली आएंगी, पुरानी वाली जाएंगी, फिर नई वाली आएंगी। आप अपने जीवन को देख सकते हैं, जो समस्याएं आपके पास तब थीं जब आप 5 साल के, 6 साल के, 7 साल के थे, अब वह समस्याएं नहीं हैं। अब दूसरी तरह की समस्याएं हैं और ये भी चली जायेंगी। फिर नयी समस्याएं आएंगी, वो भी चली जायेंगी। फिर दूसरी किस्म की समस्याएं आएगीं, वो भी चली जाएंगी। अर्थात आप यह जानकर के चलिए कि इन समस्याओं का आना-जाना लगा रहेगा। आपको विचलित होने की जरूरत नहीं है; आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। और एक चीज का और आना-जाना रहेगा। क्या है वो चीज ? और जबतक उस चीज का आना-जाना है — देखिये समस्याएं आयीं और चली गयीं; आयीं और चली गयीं। कुछ समस्याओं पर आपने ध्यान दिया, कुछ समस्याओं के कारण आप बहुत परेशान हुए, समय आया वह भी चली गयीं।

परन्तु एक है चीज, जो आपके अंदर आ रही है और जा रही है। जबतक वह आ रही है और जा रही है और आ रही है और जा रही है और आ रही है और जा रही है तबतक सबकुछ ठीक है — सबकुछ ठीक है अर्थात सबकुछ ठीक है। परन्तु जिस दिन वह नहीं आएगी उस दिन सबसे बड़ी समस्या आपके पास होगी, परंतु उस समस्या का कोई भी हल आपके पास नहीं होगा। और वह ऐसी समस्या होगी कि आपको खुद ही वह अपने साथ ले जाएगी, जो कहते हैं कि मनुष्य चला जायेगा। बात जाने की नहीं है, बात उस समस्याओं की नहीं है, बात है उस स्वांस को स्वीकार करने की, उस चीज को समझने की जो आपके अंदर है। आप जानें उस चीज को, आप पहचानें उस चीज को कि वह चीज क्या है ? और जबतक आपका ध्यान उसमें है, तबतक आपके जीवन में आनंद है। जब ध्यान उस चीज से हट जाएगा तो फिर वह मन जो है सब जगह भ्रमण करने लगता है — कभी कहीं जाता है, कभी कहीं जाता है, कभी कहीं जाता है, कभी कहीं जाता है।

समझने की बात है कि जिन दुखों से आप भाग रहे हैं, ये दुःख भी जा रहे हैं — आ रहे हैं, जा रहे हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं। जैसे नदी का पानी आता है, जाता है, बहता है। समुद्र की लहरें आती हैं, जाती हैं, आती हैं, जाती हैं। हवा के झोंके में पेड़ झूलते हैं कभी इधर जाते हैं, कभी उधर जाते हैं, कभी इधर जाते हैं, कभी उधर जाते हैं। ये सबकुछ होता रहता है। परंतु आपकी लहर, सबसे बड़ी लहर इस स्वांस की है, जो आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है। मनुष्य जब इस संसार को देखता है तो बहुत भ्रमित होता है। कितने ही प्रश्न मेरे पास हैं — "अरे यह गलत हो रहा है, यह ठीक नहीं हो रहा है, ये ठीक नहीं हो रहा है मेरे साथ, ये ठीक नहीं हो रहा है, मेरे साथ यह जुर्म हो रहा है, और लोग कर रहे हैं।" बात जुर्म की नहीं है, बात और क्या कर रहे हैं इससे आपका क्या मतलब है ? सबसे बड़ी बात है आप क्या कर रहे हैं!

मैं एक उदाहरण देता हूं आपको। कई लोग हैं जो कहते हैं, "जी उसने ये कर दिया, उसने वो कर दिया, उसने वो कर दिया, उसने वो कर दिया।" ठीक है! मैं उदाहरण देता हूं कि आपके घर के पास एक गली है। हैं जी? और उस गली में दो मंजिल के मकान हैं। ऊपर एक कोई रहता है और 9 बजे, ठीक 9 बजे, ठीक 9 बजे, एक बरामदा है ऊपर वाले मकान में, बरामदे के पास वह आता है — बरामदे पर वह आता है और जो सब्जियों के छिलके हैं, जो कुछ भी कूड़ा-करकट घर में है वह टोकरी में रहता है उसके और ठीक 9 बजे वह आकर के अपनी बालकनी से, अपनी छज्जे से और उस कटोरी को, उस टोकरी को खाली करता है और जो गली है नीचे वहां फेंक देता है। अब कोई नीचे आ रहा है, जा रहा है तो सारा कूड़ा-करकट उसके ऊपर पड़ता है और वह मैला हो जाता है। आपको भी उसी गली से गुजरना है, पर आपको मालूम है कि 9 बजे, ठीक 9 बजे वह यह गड़बड़ काम करता है, तो आप क्या करेंगे ?

मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कई लोग वहाँ बैठे हुए होंगें अपने लिविंग रूम में और कह रहे होंगे "जी अब उसको जाकर के घूसा मारेंगे!" उससे कहेंगे कि "ऐसा मत कर!" पुलिस के बारे में — पुलिस के पास जाएंगे एफ आई आर लिखवाएंगें। अखबार में हम इख़्तियार देंगें कि "यह ऐसा-ऐसा करता है।" फेसबुक में डालेंगे, टि्वटर में डालेंगे, व्हाट्सएप में डालेंगे, यह करेंगे, वह करेंगे, ऐसा कर देंगे, उसकी यह शिकायत कर देंगे, उसके साथ यह कर देंगे। परन्तु अगर आपको मालूम है कि वह ठीक 9 बजे यह करता है — 1 मिनट आगे नहीं, 1 मिनट पीछे नहीं, 9 बजे, ठीक 9 बजे वह करता है तो आप वहां से 8:55 मिनट पर भी तो चल सकते हैं! 5 मिनट ज्यादा, ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट पर। यह सबकुछ करने की जरूरत है ? एफ आई आर में लिख देंगे, ये कर देंगें, फेसबुक में लिख देंगें, उसके साथ ये कर देंगें, उसकी हड़ताल कर देंगें, ये कर देंगें, वो कर देंगें, धरना देंगे उसके घर के आगे या अपना थोड़ा-सा टाइम 1 मिनट भी थोड़ा-सा आगे कर लीजिये — 1 मिनट, 1 मिनट। अगर वह ठीक 9 बजे आता है तो 1 मिनट ऐसा टाइमिंग कर लीजिये कि उसके घर के आगे से आप 1 मिनट पहले, 9 बजने से 1 मिनट पहले गुजर जाएं — 1 मिनट, 1 मिनट। अगर वह इतना ही पक्का है अपने टाइम का तो 30 सेकंड भी बहुत हैं।

पर ये नहीं सोच रहे लोग। क्या सोचते हैं ? वही जो मैंने कहा — "ये कर देंगें, वो कर देंगें, ऐसा कर देंगें, वैसा कर देंगें।" तो यह है इस मन की चंचलता, इस मन के काम करने के तौर और तरीके और वह तौर-तरीके नहीं हैं कि "भाई मेरे को भी तो कुछ करना है!" जो मैं यहां आया हूं ये सब लड़ाइयों के लिए थोड़ी आया हूं। मुझको यह जो मनुष्य शरीर मिला है — अगर संत-महात्माओं की बात के तौर पर देखा जाए तो उनका तो कहना है कि इसलिए नहीं मिला है। तो जब इसलिए नहीं मिला है तो मैं क्या वह कर रहा हूं, वह काम मैं कर रहा हूं जिसके लिए मुझको मिला है या नहीं ? वह मैं काम कर रहा हूं या नहीं ?

अब एक गिलास है — हिंदुस्तान में पीतल के भी गिलास मिल जाते हैं, टीन के भी गिलास मिल जाते हैं, स्टील के भी गिलास मिल जाते हैं। पर गिलास है काहे के लिए ? पानी पीने के लिए ताकि होंठ पर अच्छी तरीके से आ जाये, पानी भी उसमें आ जाए, पानी इधर-उधर नहीं जाए, पानी को रखें और उससे पानी पी सकें। अब अगर उस गिलास से आप अपना घर बनाना चाहते हैं और उसको उस काम में लगाएं तो लगा तो सकते हैं, क्यों नहीं लगा सकते हैं, परन्तु कब तक चलेगा, कब तक चलेगा वह ? उसके लिए वह बना नहीं है। हर एक चीज के लिए औजार होता है और उस औजार को इस्तेमाल करने से अच्छा रहता है। क्यों ? अच्छा रहता है। यह छोटी-मोटी बात नहीं है, यह बहुत बड़ी बात है "अच्छा रहता है।" अगर आप अपने से हमेशा यह बोल सकें "कैसा चल रहा है ? अच्छा चल रहा है!" क्योंकि यह शरीर, यह समय जो कुछ भी आपको मिला है — जो कुछ भी आपको मिला है उसको आप सही तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं तो अच्छा चल रहा है। जिस चीज के लिए वह बना नहीं है, उसको इस्तेमाल करेंगे; उस तरीके से इस्तेमाल करेंगे; उसके लिए इस्तेमाल करेंगे जिसके लिए वह बना नहीं है, तो गड़बड़ तो होगी।

कैसी गड़बड़ होगी ? देख लीजिये इस संसार के अंदर क्या-क्या हो रहा है, जो कि इसके लिए नहीं बना है। यह जो स्वांस आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है, यह इसके लिए नहीं बना है। यह आपके लिए है, यह जीवन ताकि आप उस आनंद को समझ सकें, उस चीज को समझ सकें जो आपके अंदर है। क्या होगा, क्या होगा ? यह होगा कि जिस मिट्टी से आप आए, उसी मिट्टी से जाकर के आप मिल जायेंगें — यह होगा! और कब तक उस मिट्टी से मिले रहेंगें ? करोड़ों साल ? हां! और क्या है यह मिट्टी ? यह धरती इससे नहीं बनी हुई है — सब चीजें जो आप देखते हैं तारे, सितारे, जो कुछ भी आप देखते हैं आकाशमंडल में वह सब इसी मिट्टी का बना है। इसी मिट्टी के आप बने हैं। इसी से आये हो, इसी में जाकर मिलना है — यह होना है! चाहे कोई भी आप डिग्री हासिल कर लीजिये, कुछ भी आप कर लीजिये, कहीं के भी मशहूर बन जाइए, पर यही होना है। क्योंकि यही होता आ रहा है और आगे भी होगा; अब भी हो रहा है, पीछे भी हो रहा था और यही होना है। अब यह आपके ऊपर निर्भर है — बाहर की कोई भी परिस्थिति हो, अंदर की परिस्थिति क्या है ? क्या आप वह कर रहे हैं जिसके लिए आपको यह शरीर मिला ?

नर तन भव बारिध कहुं बेरो, सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।

इस भवसागर को पार करने का यह साधन है। इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है — भगवान राम कहते हैं!

जो आपके सामने चैलेंजेज हैं, बात उन चैलेंजेज की नहीं है। बात है उस चैलेंजेज को आप किस रूप में पूरा कर रहे हैं ? सबसे बड़ी बात यह है।

परिस्थितियां बदलेंगी, धीरे-धीरे यह लॉकडाउन भी बदलेगा और हम यही आशा करते हैं कि जैसे ही मौका मिलेगा हम हिन्दुस्तान आएंगे। जो कुछ भी हम कर पाएंगे — हम नहीं चाहते हैं कि हम इस महामारी को — हम कुछ ऐसा करें जिससे यह महामारी और फैले। पर, जो कुछ भी हम कर पाएंगे जिससे कि यह बीमारी नहीं फैले उस हद तक हम करने के लिए तैयार हैं। तो अब देखते हैं क्या होता है! कुछ ही दिनों में और खुलने वाला है हिन्दुस्तान, परंतु आप अपना ख्याल रखिए — "ना किसी को यह बीमारी दीजिए, ना किसी से यह बीमारी लीजिए" — और आनंद में रहिये!

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

लॉकडाउन — चौदहवां दिन 00:27:05 लॉकडाउन — चौदहवां दिन Video Duration : 00:27:05 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

सबको नमस्कार! उम्मीद है आप सब ठीक हैं, सुरक्षित हैं और अच्छे से हैं!

आज सोचा उन लोगों की बातें और सवाल आपको बताऊं जो पीस एजुकेशन प्रोग्राम अटेंड कर चुके हैं और हां, एक और बात हम पीईपी (PEP) की ओर काम कर रहे हैं आपको बस थोड़ा-सा सब्र रखना होगा। क्योंकि आमतौर पर जब पीईपी (PEP) खत्म होता है, जब पेप (PEP) आमतौर पर खत्म होता है लोग मिलते हैं और बातें करते हैं, बयान देते हैं विचार, सुझाव और हां, यह कोई अलग-सी चीज नहीं होती है। तो हम कुछ तरह से कोशिश कर रहे हैं कि — इसमें मैं रहूंगा लीड फैसिलिटेटर, जी हाँ और बाकी लोग अपने कॉमेंट्स और बाकी बातें लिखकर भेज पाएंगे यहां पर हमारे पास और फिर उनमें से कुछ मैं आपको सुना पाऊंगा। तो इसमें काफी सारी तैयारियां करनी पड़ती हैं, लेकिन हां हम इस पर काम कर रहे हैं और सबकुछ ठीक चल रहा है और मुझे लगता है कि यह अच्छा रहेगा।

तो यह रहा एक सवाल — और यह ज्यादातर जेल से आए हुए हैं कहते हैं कि “जीवन की सराहना करने का क्या मतलब है हर पल का आनंद लेना, हर रोज खुश होने का मौका देखना ?” यहां प्यार और करुणा है; यहां गुस्सा और नफ़रत है, लेकिन जीवन एक तोहफा है और मैं इसे जितना हो सके साफ समझना चाहता हूं ताकि हर रोज खुल के जी पाऊं।

“मेरे जीवन के बगीचे में वही उगता है जैसे मैं जीवन को जीता हूं हर किसी में बदलने की क्षमता है और यह मेरा समय है।”

इसका यही तो मतलब है, असल में आपने अपने सवाल का जवाब स्वयं ही दे दिया है। क्योंकि जीवन की सराहना करने में हर रोज खुश रहने में आपको एक अलग दृष्टिकोण से देखना ही होगा और यह है — और यह हिस्सा होगा इस प्रशिक्षण का जो मैं आपके लिए लेकर आऊंगा और एक बात जो मैंने आपके लिए सोची है उसे कहते हैं बदलना विपरीत ढंग से, “अनचेंज” क्या है ? “अनचेंज” का मतलब है कि एक समय था जब आप अपने हृदय की अच्छाई से परिचित थे। सबकुछ ठीक था! आपके पास वह दृष्टिकोण था; वह नज़रिया था; आपका दृष्टिकोण आपके पास अच्छाई देखने की क्षमता थी। आप चीजों को किसी भेद से नहीं देखते थे। आप सबकुछ सच्चाई की नजरों से देखते थे। क्योंकि हम सच्चाई को सच्चाई की आंखों से नहीं देखते; हम उन्हें अपनी आंखों से देखते हैं। और जबतक हम उस सच्चाई को देखना शुरु करते हैं तबतक हमारी आंखें हद से ज्यादा दूषित हो चुकी होती हैं। लेकिन जब हम सच्चाई को सच्चाई की नजर से देखते हैं, सबकुछ बदल जाता है — सबकुछ। पूरा दृष्टिकोण बदल जाता है।

तो एक चीज जो आपको करनी है वह है अनचेंज, इसका मतलब है कि इसमें कई सारे विचार पहले से ही लाए जा चुके हैं। और यह सभी आइडियाज यह विचार इनमें से कुछ तो ठीक हैं, पर कुछ ठीक नहीं हैं और आपको इन्हें छानना पड़ेगा, आपको इन्हें परखना होगा कि आप कैसे चाहते हैं कि आप बनें यह आपको देखना होगा। तो एक बात जो प्रशिक्षण में की जाएगी — वह होगी और शायद मैं यहां कुछ ज्यादा ही बातें बता रहा हूं पर फिर भी कि — “आपको नियंत्रण में रहना है” और आपको एक साफ नज़रिया रखना है, एक दृष्टिकोण कि “आपको क्या चाहिए अपने जीवन में ?” आपको क्या चाहिए, आपको क्या होना चाहिए, आपको कैसे अस्तित्व रखना है ? वह नहीं कि जो बाकी लोगों से आपकी उम्मीदें हैं या बाकी लोग आपसे क्या पसंद करते हैं। क्योंकि अब देखिए, यह एक बहुत ही अजीब-सी स्थिति है, क्योंकि हम कई अपेक्षाएं रखते हैं “हमें ऐसा होना चाहिए; हमें वैसा होना चाहिए; हमें यह बनना चाहिए,” हम सभी ये बातें जो हैं हमें बताई गई हैं समाज के द्वारा ताकि हम समाज में ढल पायें। समाज हमें बदलना चाहता है। लेकिन आमतौर पर उल्टा ही पड़ता है, क्योंकि हमारे बदलने के दौरान, हम खुद को खोने लग जाते हैं और जितना हम खुद को खोने लगते हैं, हम उतने ही अजीब बन जाते हैं और जितना अजीब महसूस करते हैं, हम समाज के विरुद्ध जाते हैं।

असल में, अगर आप खुद को जानते हैं, अगर आप उस खुशी को जानते हैं जो आपके भीतर है, अगर आप उस सुंदरता को जानते हैं, अगर आप समाज के सही हिस्से की तरह काम करना चाहते हैं, तो ये सब चीजें जरूरी हैं और समाज की तरह नहीं जो वह आपको बनाना चाहते हैं। तो मैं यहां समाज के लिए नहीं आया हूं; मैं आपके लिए आया हूं। मैं चाहता हूं कि आप मजबूत बनें। मैं चाहता हूं कि आप समझें कि “इसका क्या मतलब है कि सराहना करें जीवन की, हर पल को जीना।” और यह करने के लिए आपको बनना पड़ेगा या कहूं तो आपको फिर से बनाना पड़ेगा। क्योंकि यही तो है हिस्सा बदलने का। क्योंकि मैं कहता हूं कि आप अपने ही जीवन में, आप जानते हैं कि आप में सारी शक्तियां हैं। आप इन्हें जागृत करना बस भूल गए हैं। और इन्हें जगाना आप भूल गए हैं और हम साथ मिलकर इन्हें वापस जागृत कर सकते हैं और आधार होगा इस सबका करुणा! मैं प्रशिक्षण की और बातें नहीं करना चाहता, पर मैं बताए बिना रह भी नहीं पा रहा हूं।

और हां, बिल्कुल हम इस बारे में बात करेंगे जब प्रशिक्षण शुरू होगा, लेकिन खुद में सब्र रखना कितना जरूरी है, खुद की समझ के साथ, क्योंकि एक लंबा समय लगता है इसमें उस गड्ढे से बाहर आने में जिसमें हम फंसे हुए हैं। यह विकसित होने में समय लगता है फिर विकसित होना उस दृष्टिकोण का और सच्चाई की आंखों से सच्चाई को देखना। तो यह लगता है इसमें। “हर दिन का खुशी के मौके की तरह स्वागत करना,” आपको मौकापरस्त बनना पड़ेगा। आपको सच में समझना है कि यह सब क्या हो रहा है आपको वो बात समझनी है कि आप उस शॉपिंग सेंटर में हैं — जहां पर आपको बहुत सारा समय मिलता है, लेकिन आप वहां से कुछ ले जा नहीं सकते। आप असल में वहां से कुछ बाहर नहीं ले जा सकते। लेकिन आपको यह फैसला लेना ही है आप असल में कोई चीज बाहर नहीं ले जा सकते तो आप समझिए इस बात को कि इस शॉपिंग सेंटर में सबकुछ है जो आप सोच सकते हैं, लेकिन आप बाहर नहीं ले जा सकते और आप क्या ले जा सकते हैं ?

यही तो है वह असल बात और वह ट्रिक है कि आप अपने आप में मजे कर सकते हैं उस शॉपिंग सेंटर में और उस जगह पर। क्योंकि ऐसा है कि जैसे एक लॉटरी लग जाये; आपने लॉटरी जीती है — और इनाम में आपने जीता है कि आप शॉपिंग सेंटर में कुछ दिन बिता सकते हैं और शॉपिंग सेंटर में कमाल की दुकानें हैं पर आप कुछ ले जा नहीं सकते। आपको अनुमति नहीं है और — जब समय अंत होगा, तब आप अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते। तो आप क्या करने वाले हैं ? अब तरीका यह होना चाहिए कि आप रोज ज्यादा से ज्यादा आनंद लें, जितना ज्यादा आप कर सकते हैं। ताकि बाद में जब आप अपने साथ कुछ ले जाएं तो वह हो कृतज्ञता, वह हो वो धन्यवाद देना, वह हैं वो मजे जो आपने किए हैं “वाह यह कमाल का था यहां होना कितना अच्छा था” यह होगा तरीका और इसमें समय लगता है। समय लगता है इसे समझने में क्योंकि अपनी सही क्षमता से भटकने में हमें बहुत समय लगा है।

अब एक और सवाल — और यह है महिलाओं की जेल से वह कहते हैं कि “प्रेम आपने अपनी शांति कैसे खोजी ?”

बिलकुल वैसे ही जैसे आप खोजेंगे अपने भीतर। मेरा मतलब, मुझे शुरू करना था और दोबारा भीतर ध्यान देने में बहुत लंबा समय लगता है और मेरे पिताजी काफी दयालु थे कि उन्होंने मुझे रास्ता दिखाया एक शीशा। जब मेरे पास वह शीशा था तो मैं उसमें अपनी सच्चाई को देख सकता था, मेरी अपनी सच्चाई। तो फिर हां बिल्कुल, कॉमेंट यह है कि “यह मेरी पसंदीदा क्लास है कोशिश करता हूं कि मैं इसे मिस ना करूं। खुशी वह नहीं जो हमारे पास है वह है जिसका एहसास है।” आप समझ गए हैं, यही है बस! “खुशी वह नहीं जो आप में है लेकिन जिसका आपको एहसास है,” क्योंकि खुशी महसूस की जाती है। शांति वह नहीं जो आपके पास है, शांति वह है जो महसूस करते हैं। खुशी वह नहीं जो आपके पास है, खुशी वह है जो आप महसूस करते हैं। प्यार वह नहीं जो आपके पास है, लेकिन वह जिसका आपको एहसास है। स्पष्टता वह नहीं जो आपके पास है, लेकिन वह जो आप महसूस करें। कमाल है! यही तो है; आप समझ गए हैं।

“हम बाहर देखते हैं पूर्ण होने के लिए जबकि हमें भीतर देखना चाहिए।” बिल्कुल सही। यह एक महाविद्यालय से आया है, वयस्क शिक्षा “मैं दुनिया की चिंताओं को खुद से अलग कैसे करूं ?”

क्या आप ही हैं अपनी चिंता ? ये चिंता हैं — यही इसका मुद्दा है — चिंता तो हमेशा ही रहने वाली है। ऐसा नहीं कि, अगर आप अपनी चिंता से दो मिनट के लिए दूर हो जाएं तो वह गायब हो जाएंगी और आपको उन्हें ढूंढना जाना पड़ेगा। जी नहीं, वह आपको ढूंढ ही लेंगी। चिंता खोने की चिंता मत कीजिए। वह तो हमेशा ही रहने वाली है। आपको क्या करना है कि आपको अलग करना सीखना होगा। यह ऐसा है कि जब आपको नींद आती है और तब आप वही हैं। आप चाहे एक बस में बैठे हों और यह बस भरी हुई है; अनजान लोगों से। और हां बिल्कुल, अगर आपने कभी बस देखी है, तो आप जानते हैं इसमें ज्यादा आसानी से सफर नहीं किया जा सकता। यह ज्यादा शांत भी नहीं होती है और हां, गड्ढे आते हैं फिर यह ऊपर जाएगी; फिर नीचे जाएगी और कई बार बस में सीट भी आरामदेह नहीं होती… और अब आई नींद! तो शोर तो है ही यहां पर — सबकुछ आपके विरुद्ध चल रहा है; वहां शोर है; आप अनजान लोगों के बीच में है (यह काफी अच्छा वातावरण नहीं है, मतलब सोने लायक वातावरण बिल्कुल नहीं है।) आप एक छोटी-सी अजीब-सी कुर्सी में बैठे हैं जो आरामदेह नहीं है। सोने लायक नहीं है जी हां, क्योंकि उसके लिए लेटना होता है पर नींद आ जाती है। फिर क्या होता है ?

वो सभी चीजें जो आमतौर पर नींद के लिए अच्छी नहीं होतीं उनके मायने नहीं रखते। और धीरे-धीरे और धीरे-धीरे-धीरे आपकी आंखें भारी होने लग जाती हैं और भारी और भारी और आप सो जाते हैं। यही तो होना है। यही तो है वो, वह जरूरत, जरूरत को समझना (चाहत को नहीं, जरूरत को), अच्छा हो जाता है वह; वह प्यास (और मैं इस “प्यास” की बात करता हूं) प्यास इतनी बढ़ जाती है कि बाकी सभी चीजों को पीछे छोड़ देती है सभी चिंताएं वो सभी, सभी चीजें जो शांति के लिए अच्छी नहीं हैं। यह उनसे आगे बढ़ती हैं। यही तो है इसका अर्थ।

और अब सवाल यह है कि “यह जानना जरूरी है कि दुनिया में क्या हो रहा है पर इतना जरूरी नहीं कि भीतर क्या चल रहा है मैं कैसे इस बात पर ध्यान लगाऊं ?”

दोबारा, यह एक आदत है। क्योंकि एक समय पर आपको फर्क नहीं पड़ता था कि दुनिया में क्या हो रहा है, क्योंकि आप छोटे थे। आपको दुनिया की फिक्र नहीं थी; आपको नहीं पता था कि दुनिया क्या है। आपको सिर्फ अपनी फिक्र थी। अब आपने यह व्यवहार सीख लिया है और मैं ऐसा नहीं कहूँगा कि आपको दुनिया की फिक्र नहीं करनी चाहिए। नहीं, आपको पता होना चाहिए कि दुनिया में क्या चल रहा है। पर साथ ही पता होना चाहिए कि अंदर क्या चल रहा है आपके। यह है, दोबारा। यह वही वापस बदलना है जो हमें करना है अनचेंजिंग।

और अब सवाल है “सुनने में इतना आसान लगता है इस दुनिया में शांति नहीं है हम वापस कैसे जाएं ? क्या यह संभव है ?” जी हां! बिल्कुल, यह संभव है। अगर यह संभव नहीं है तो मैं अपना समय बर्बाद ही कर रहा हूं यहां पर।

और हां, ये थे कुछ सवाल और यह रहे कुछ कॉमेंट्स: “मुझे लगा इस क्लास में दर्शनशास्त्र की बात होगी कि दुनिया में शांति कैसे लानी है लेकिन प्रेम शांति की बात करते हैं जो हमारे भीतर है।” जी हां, “जितना मैं खुद में शांति ढूंढता हूं उतनी ही बाकियों में भी फैल जाती है।” हां, मैं यही तो कहता हूं। यह पहली बात है जिसकी मैंने बात की थी कि “जब समाज आपको एक ढांचे में ढालने का प्रयास करती है… वह जरूरी नहीं क्योंकि जब आप पूर्ण हो जाते हैं तो ज्यादा अच्छा होता है….।

देखिए बात यह है कि जब आप एक लैंप की तरह जलते हैं, मोमबत्ती की तरह जलते हैं। एक जली हुई मोमबत्ती बाकियों को जला सकती है। अगर आप एक बुझी हुई मोमबत्ती को मसल के उस आग के पास ले आएंगे जो बुझी हुई मोमबत्ती है वह किसी को बुझाएगी नहीं — पर इसके विपरीत जली हुई जो है वह बुझी हुई को जला सकती है और यह सबसे ताकतवर नियम है वह है यह बात कि — शांति लाने के लिए जिस पर मैं निर्भर हूं वह है यह दुनिया।

“प्रेम ने कहा कि ‘आपको चाहिए कि बस शांति मिल जाए’ जो कि बहुत गंभीर था आप देखते हैं, देखते हैं लेकिन यह तो आपके भीतर है।” हां आपके भीतर है! “एक गाने के बोल हैं कि ‘वो लोग जिन्हें लोगों की जरूरत है वह खुशकिस्मत हैं।’ प्रेम कहेंगे कि ‘लोग जो खुद को जानते हैं वह सबसे खुशकिस्मत हैं।” जी हां, आपने सही बात समझी।

“पीस एजुकेशन प्रोग्राम ने मुझे हैरान कर दिया है क्योंकि यह वह नहीं जो मैंने इसके बारे में सोचा था। मैं उन दर्शकों को देखता हूं जो पीछे बीते और मैं अचेत था जो प्रेम कहते हैं वह आसान है कि सबकुछ यहीं पर है। यह है भीतर देखने के बारे में और संतुष्टि खोजना सही है।” बिल्कुल सही है, सही है; सही है। आपको मिल गया है। देखिए, कितना आसान है। यह कितना आसान है।

“हमने यह सवाल कभी नहीं पूछे जो प्रेम पूछ रहे हैं। हम शायद अपने बारे में रुचि रखते थे पर फिर जीवन सामने आया। प्रेम मुझे आजाद होना बताते हैं सोचते हुए उनकी बातें मुझे हृदय के पास ले जाती हैं।” उम्मीद है। मुझे सच में उम्मीद है।

यह है दोबारा — यह एक चर्च से है, एक मिशनरी बैपटिस्ट चर्च। “मैं शांति की दुआ करता हूं लिंग भेद के साथ, रंगभेद और बाकी समाज की त्रुटियां मेरे देश में शांति हो!” हम सब चाहते हैं कि एक शांतिपूर्ण जीने का ढंग मिले सच मानिए, हम सब यही चाहते हैं, लेकिन यह अलग नहीं है। यह आपकी मांग जो है यह चाहत नहीं है, यह जरूरत है — और यह बात बहुत जरूरी है।

“क्या आपको लगता है हमारी परवरिश की वजह से बाकियों से हमारा विवाद होता है ?”

ऐसा नहीं है कि परवरिश क्या हुई है पर हमें क्या समझाया जिससे हम विवाद में पड़ जाते हैं और यही उस नियम को समझना पड़ता है हमें और हमें इस समझ को पलटना होगा और इसलिए मैं कहता हूं कि बदलना नहीं लेकिन विपरीत होना यह बहुत शक्तिशाली चीज है विपरीत बदलना “अनचेंज।” और हम अगर प्रशिक्षण लें तो शायद हम यह कर पाएंगे।

एक और सवाल जो था कि “मैं टीनएजर्स की मदद कैसे करूं ?”

उन्हें टीनएजर्स न मानकर उन्हें इंसान मानिए पहले और उनकी मदद कर पाएंगे आप मेरी मानिये। टीनेजर बच्चों जैसा बर्ताव नहीं चाहते हैं वह बस इतनी सी ही बात है याद है जब आप टीनेजर थे ? आप टीनेजर नहीं रहना चाहते थे आप बड़े बनना चाहते थे वयस्क। एक बच्चा जो बड़ा बनने की कोशिश कर रहा है एक टीनेजर जो टीनेजर की तरह नहीं रहना चाहता आप उसके दोस्त बन जाइए और टीनेजर को बच्चा मत मानिए और आप उसके दुश्मन नहीं बनेंगे यह इतना ही आसान है बस, मतलब उसके जैसा ही!

अब यह है मेट्रो रेंट्री फसिलिटी से फर्क पड़ता है कि “मैं क्या मानता हूं और क्या नहीं मानता मेरी स्पष्टता बहुत जरूरी है।” (यह एक भाव है) “मैं बाकियों के साथ अच्छा बर्ताव करके करुणा को बढ़ावा दे सकता हूँ।” बिल्कुल जी हां!

“मेरा 4 साल का बेटा अपने नए दोस्त के बारे में कुछ बता रहा था कि उसे ट्रांसफॉर्मर्स पसंद हैं और हरा रंग अच्छा लगता है। और भी कुछ मैंने पूछा ? उसने कहा कि ‘उसकी खाल हमसे काली है।’ मेरे लिए वह सबसे पहली बात होती पर मेरे बेटे के लिए यह आखरी बात थी।” बिल्कुल! यह अलग रंग होना, अलग ऐसे, अलग वैसे, यह वो अलग भाषा…

जब वह — सच मानिए पर उससे पहले कि आपको बोलना आता था कौन-सी भाषा होती थी ? और आप सबसे बात कैसे करते थे। आप अपनी मां से बात करते थे; आप उन्हें बताते थे कि “आप भूखे हैं।” आप बताते थे कि “कुछ ठीक नहीं है।” तो हां बिल्कुल, यह बहुत-बहुत ताकतवर बातें है, बहुत सुंदर बात है।

“मेरी आंखें खुल गईं” — और यह एक महिलाओं के ट्रैन्ज़िशनल सेंटर से सवाल आया है — “मेरी आंखें खुल गईं जब प्रेम ने कहा कि आपकी क्षमता एक पड़ा हुआ बीज है और मुझे पता था कि हम इसे शांति से बढ़ा सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि वह मेरे भीतर है शांति।” और एक और है “मैं खुश हूं सिर्फ अस्तित्व नहीं है। फिर मेरा जीवन बेहतर है।” सच में!

“प्रेम ने बात की जीवन के नृत्य की। कभी-कभी छोटी बातों से भी हम घबरा जाते हैं। मैं अपनी शक्ति से ताकतवर रहना चाहती हूं पर मैं कहूंगी ‘मैंने कर दिखाया।‘”

जी हां, यह भीतर की शक्ति ही तो है जो आप में — आप में वह सब पहले से ही है। आपको उसे बस जागृत करना है। आपको उनको पहचानना है, सीखना है और खुद को जानना यही तो होता है इसका मतलब।

“अगर मैं जानता हूं कि अंदर से मैं क्या हूं फिर खुशी और माफ करना मुझसे दूर नहीं है सबकुछ बदलता है पर मैं तो वही रहता हूं जो मैं हूं।” जी हां! बिल्कुल और खासकर इन परिस्थितियों में यह तो सच है। “अगर मुझे पता है कि मैं अंदर से क्या हूं फिर माफ कर पाना और खुशी मेरे साथ रहेगी सबकुछ बदलेगा ही पर मैं वही रहूंगा जो मैं हूं।” यह सही है!

बाकी चीजें बदलेंगी, लेकिन आप नहीं। और इसलिए ना बदलना अनचेंज इसलिए ना बदलना।

“मैं प्यार के लिए कुछ भी करूंगा मैंने सब जगह देखा बस भीतर नहीं देखा जबतक हमने अपने अंदर देखना शुरु किया हमें नहीं पता कि हम कौन हैं।” जी हां! बिल्कुल! आपने बिल्कुल सही कहा।

“मैं बड़ा हुआ” यह एक और है — “मैं बड़ा हुआ और मेरे साथ बहुत बुरी चीजें हुई मैं भूल नहीं सकता। पर मेरी मर्ज़ी है कि मैं माफ कर दूं।” उन्हें और देखूं कि मैं कौन हूं असल में। मैं हर रोज बढ़ रहा हूं।” चाहे जो भी हो, चाहे जो भी हो जाए! “माफ करना!” “माफ करना” क्या होता है ? सोचिए। “माफ करना यह नहीं कि दूसरे को सही मान लिया जाए या उनको माफ कर दें।” माफ करना होता है उस बंदिश से खुद को मुक्त कर देना ताकि आप आजाद हो जायें ताकि आप आगे बढ़ पायें यह है माफ करना।

“माफ करना बहुत जरूरी है मैं किसी और के लिए नहीं कह रहा; ये मैं आपके अपने लिए कहता हूं।” जी हां; यही तो है माफ करना आप अपने लिए करेंगे ये किसी और के लिए नहीं। तो यह ऐसा नहीं कि “अच्छा मैं दूसरों को अच्छा ही दिखूंगा।” यह बंदिश हटाने के बारे में है ताकि आप आजाद हो पायें अपने मन में।

यह अब ग्रीस से आया है (सोचिए जरा), महिलाओं की जेल है वहां पर। “मैं पीस एजुकेशन प्रोग्राम के बारे में उत्सुक थी और सोच के देखूं। सबसे पहले, मुझे समझ नहीं आया। पर समय के साथ, प्रोग्राम जरूरी-सा लगने लगा और मैं खुद को प्यार करना शुरू करने लगी। और मैंने समझा कि मैं इसकी वजह से दूसरों से अच्छे से बोलती हूं, मैं इज्जत करती हूं सबकी।”

देखिए! मैं यही तो बोल रहा था समझिए कि — सब लोग आपसे क्या चाहते हैं वह आपको बताते हैं कि आपको क्या करना है। लेकिन यह ऐसे काम नहीं करता। क्योंकि अगर आप खुद को नहीं जानते तो यह काम नहीं करेगा। पर जैसे ही आप खुद को जानने लगेंगे, आप संपूर्ण हो जाते हैं, आप पूरे हो जाते हैं, भर जाते हैं। “इसकी वजह से मैं अच्छे से बात करती हूं और लोगों से तमीज से पेश आती हूं मुझे इस कार्यक्रम का सकारात्मक प्रभाव नजर आ रहा है और जो मैंने सीखा वह मेरे लिए हर रोज के जीवन का भाग बन गया है।”

और एक और इंसान कहते हैं “जेल में घुसते हुए अपने सबसे प्रिय परिवारजन को खो देने के बाद मैंने खुद से कहा कि ‘सबकुछ खत्म हो गया है।’ मैंने सोचा, वह क्यों मैं क्यों नहीं ? मेरी खुशी पर एक काला पर्दा पड़ गया था और मैं अपनी आत्मा को उदास देखती थी। मेरे अंदर से आवाज आई कि ‘कुछ करो मेरी बच्ची’ तब मैंने पीस एजुकेशन प्रोग्राम में शामिल होने का फैसला लिया।”

“मैंने एक दिन प्रेम को कहते हुए सुना कि ‘इंसान औसतन 25550 दिन जीते हैं।’ यह है धरती पर हमारा समय। फिर मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास समय है। उन्होंने कहा कि चिंताओं से परेशान न हों, जबतक इस स्वांस का तोहफा मुझमें आ रहा है, मुझे आगे बढ़ना ही होगा। तो मैं आगे बढ़ी यह सोचकर कि शांति मेरे भीतर ही है। मैं एक अच्छे कल का सोचती हूं याद रखती हूं कि मेरी सच्चाई यह वर्तमान है।”

अगर आप जान सकते हैं कि — आज आपकी सच्चाई है, कल शानदार होगा आपका, मेरी मानिये। क्योंकि कल जब वह कल आएगा वह आज की तरह आएगा और आप क्या करते हुए व्यस्त होंगे कल को ? जो आज की तरह देखते हुए उस सच्चाई में जो आप में है। यही तरीका है काम करने का।

“मैंने पीस एजुकेशन प्रोग्राम अटेंड किया और इसने मुझे जीवन में कई अच्छी बातें करने को प्रोत्साहित किया। मुझे अपने भीतर ही शांति मिल गई यह छोटा-सा बीज ही सही पर महत्वपूर्ण है। मैंने इसे आलिंगन या प्यार के रूप में अपना लिया है क्योंकि यह मुझे ऐसा ही महसूस करवाता है। इस प्रोग्राम में जो भी सिखाया गया उसने मुझे पूर्ण महसूस करवाया और आशा करती हूं सबको ऐसा ही शांति का भाव मिल पाएगा।”

“प्रेम को सुनकर, अपने भीतर शांति मिली। जब मैंने शांति का बीज का सोचा। इससे मेरे रोज के जीवन पर प्रभाव पड़ा। अब मैं हर रोज उठती हूं और शांति की तलाश है। अब मुझे पता है कि मैं कहां देखना चाहती हूं। देखिए! अब मैं क्या कहूँ ? यही तो तरीका है जीने का। यही तरीका है जीने का।

अब यह नॉर्थ कैरोलीना से सवाल है महिलाओं की जेल से दोबारा। “पीस क्लास से मेरी आंखें खुल गईं हैं। मैंने भीतर के खजाने को और संतुष्टि को समझा है। चाहे जो भी परिस्थिति हो। धन्यवाद।”

एक और है सवाल “बस प्रेम को सुनकर ही मुझे शांति का एहसास होता है। धन्यवाद।” और मैंने पीस एजुकेशन प्रोग्राम से सीखा मेरे भीतर शांति है और अपनी किस्मत बनाने की ताकत भी।” जी हां।

“पीस क्लास में आना मेरे दिन का सबसे अच्छा समय होता है; यह कमाल है। इस वक्त जब हमारी फसिलिटी बाहर की दुनिया से लॉकडाउन में है इस बात का पता चल रहा है कि आपकी सेवाएं महिलाओं के लिए इस जेल में कितनी अहम है। ये प्रोग्राम क्लासेज़ जो आप देते हैं मैं उन्हें मिस कर रही हूँ मुझे याद आ रहा है।” इस करेक्शनल प्रोग्राम सुपरवाइजर की ओर से यह बात थी।

तो मैंने सोचा क्यों ना उस वर्तमान की बात आपसे की जाए, क्योंकि यह भाव आते हैं और हमें इन्हें साझा करने का मौका नहीं मिलता तो मैंने सोचा “आज कुछ पल निकालकर आपके साथ साझा करूं ये बातें।” तो ये लोग वह हैं, एक तरह से, जो लॉकडाउन में ही रहे हैं, लॉकडाउन में ये हैं। और शायद, बहुत जल्द यह कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा और हम बाहर जा पाएंगे और हम घूम पाएंगे — पर ये लोग लॉकडाउन में ही रहेंगे जेल में और इनके लिए शांति महसूस करना कितना जरूरी है।

तो उम्मीद है आप शांति महसूस करेंगे। उम्मीद है आप ठीक रहेंगे। तो अच्छे रहें; सुरक्षित रहें आप सभी लोग! धन्यवाद!

लॉकडाउन — तेरहवां दिन 00:23:52 लॉकडाउन — तेरहवां दिन Video Duration : 00:23:52 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

सबको नमस्कार!

उम्मीद है आप सब बिल्कुल ठीक हैं। इन सब बातों के अलावा जो कोरोनावायरस और बाकी सब आजकल चल रहा है कि आप ठीक रहें। इस सबके बीच और — यही बात जरूरी है सच मानिये। तो आज मैं क्या बात करना चाहता हूं और मैं कल रात इसके बारे में सोच रहा था और मैंने सोचा ऐसा जो बहुत ही कमाल का होगा। कम से कम बात और सोचने के बारे में और कुछ नहीं तो मैं इस कहानी से बात शुरू करता हूं।

एक आदमी ने कॉलेज पूरा किया और वह अपने घर जा रहा था। बहुत ही खुश था कि कॉलेज पूरा कर लिया है और जानता था कि अब उसे नौकरी ढूंढनी है और सभी वो बातें जो कॉलेज पूरा करने के बाद आप करना चाहते हैं। तो वह अपने घर जा रहा था और रास्ते में वह देखता है एक बूढे व्यक्ति को और उस बूढे व्यक्ति ने कन्धों पर बहुत, बहुत, बहुत बड़ा लकडी का टुकड़ा रखा हुआ है और वह झुका हुआ है और वह धीरे-धीरे चल रहा है। यह देखकर इस आदमी को विचार आता है, वह कहता है कि "अब मैं भी जीवन की शुरूआत ही कर रहा हूं और यह बूढा व्यक्ति इन्होंने तो जीवन की राह पर काफी कुछ देखा ही होगा काफी लम्बे समय से। तो इससे ही क्यों ना मैं पूछूं कि दुनिया में कैसे जीना चाहिये, सभी बेहतरीन चीजों का लाभ कैसे ले सकता हूं मैं ? क्योंकि यह बहुत अच्छा होगा, क्योंकि मुझे इससे फायदा होगा।"

तो जैसे ही वह उनके पास पहुंचा उन्होंने उनसे पूछा कि "सुनिये बाबा! मैं अपने जीवन में अच्छा कैसे करूं क्योंकि मैं तो शुरुआत ही कर रहा हूं और बिल्कुल आप तो काफी वक्त बिता चुके हैं। आपके पास मुझे बताने योग्य कुछ तो होगा।"

उस बूढे व्यक्ति ने रूककर अपने कन्धों से वो बड़ा लकड़ी का टुकड़ा उठाया नीचे रखकर सीधा खड़ा हुआ। उसके बाद उस भार को उसने अपने कन्धों पर फिर से रखा और चलने लग गया। वह आगे चला गया और बस चलता गया। और बस यही कहानी का अन्त है। क्या उस बूढे व्यक्ति ने इस आदमी को कुछ संदेश दिया कि "जीवन कैसे जीना है ?" और वह संदेश यह है कि "जीवन में हम चलते हैं और हम झुकते हैं अपने ऊपर भार लेकर, एक बहुत भारी सामान लेकर और उन चीजों का भार वो ऐसा है और इस व्यक्ति ने मुझे ये कहा; उसने मुझसे ये कहा और उसने मुझसे ऐसा व्यवहार किया; उसने मेरी ये समस्या नहीं समझी और हां वह व्यक्ति मुझे इसलिये पसन्द नहीं करता क्योंकि ये है और ऐसा करता है" और ये सभी बातें जो हम इकट्ठा कर लेते हैं अपने ऊपर।

ओह जानते हैं "मैं फेलियर हूं, मैं सफल इंसान नहीं हूं।" "मैं फेलियर इसलिये हूं क्योंकि मैंने ऐसा किया; मैं इसमें अच्छा नहीं हूं और मैं ये नहीं कर सकता; मैं वो नहीं कर सकता…मैं सोच रहा था कि हे भगवान, जानते हैं हम अपने ऊपर कितना बोझ लिये हुए चलते रहते हैं।"

और अब जब हम लॉकडाउन की इस स्थिति में हैं, कोई जगह नहीं हमारे पास जाने के लिये। हम क्या वो कैसा होगा और कुछ नहीं कि — हम पीछे लौट चलें बस। बटन को रिसेट कर दें कैसा रहेगा ? बस जाने देना और मान लेना ? उस सुन्दर साधारण अस्तित्व को, उसकी सच्चाई को, वो एक बच्चे की तरह जो हर रोज उठता है.... और मुझे याद है कि जब मैं एक बच्चा था — और मैं दिन के लिये तैयार होता था; मैं दिन को स्वीकारने के लिये तैयार था। मैं उस दिन की चुनौतियों के लिये तैयार होता था। कुछ भी एक जैसा नहीं होता कुछ भी ऐसा नहीं था कि "मुझे ये करना है, फिर वो करना है, फिर ये।" फर्क नहीं पड़ता था। चाहे दिन जैसा भी होने वाला था, मैं उसके लिये तैयार था; उसे स्वीकार करने के लिये और मैं खुश था। मैं उत्सुक था, जीवित होने के लिये उत्सुक था, उस सुबह के मौके के लिये उत्सुक था, उस सुन्दर मौके के लिये — और उन मौकों को अपनाना ताकि मैं एक खुले हृदय के साथ और मन के साथ उसे स्वीकारना। वो पहले से मैला नहीं कि "हे भगवान, आज क्या होगा; आज बुरा होगा; आज ये होगा; वैसा ही होगा नहीं।"

एक दिन एक राजा था। वह अपनी बालकनी में आया और वह नीचे देख रहा था और उसने एक आदमी को देखा और वह आदमी वहां से जा रहा था और उसने राजा को देखा और उसने झुककर सलाम किया और उस दिन राजा का दिन बहुत ही बुरा गया, बहुत ही बुरा दिन। तो राजा ने उस आदमी को बुलवाया और शाम को ही राजा ने उस आदमी से कहा कि "इसे मौत की सजा दो" और उस आदमी ने कहा "लेकिन आप मुझे मरवाना क्यों चाहते हैं ? आप मुझे सजा क्यों दे रहे हैं ?" राजा ने कहा "क्योंकि मैंने आज सुबह उठकर तुम्हारा चेहरा देखा और मेरा दिन बहुत ही खराब गया और इसलिये मैं तुम्हें मरवा रहा हूं।" उस आदमी ने राजा को देखा और कहा कि "राजा आपका दिन बहुत ही बुरा गया पर मैं तो मरने वाला हूं और मैंने आपका चेहरा देखा था और सुबह सबसे पहले आपको ही देखा था तो मुझसे भी कहीं ज्यादा बदकिस्मत आप हैं" — देखने के लिये, क्यों।

ऐसे ही जानते हैं न जैसे कि जब हम उठते हैं और वही टेप-रिकॉर्डर बजना शुरू हो जाता है "आपको ये करना है; आपको वो करना है; आप लेट हो गये हैं; आप ऐसे हैं; आप वैसे हैं। वह इंसान आपको पसन्द नहीं करता; आपको इस इंसान को ये बताना है; आपको ये करना है और आपको वो भी करना है। और यह आपके परिवार और दोस्तों और साथ काम करने वालों के साथ ऐसा ही चलता है, "हमें इसका जबाब देना है; उसका जबाब देना है; हमें ये करना है; हमें वो करना है। कितनी ही चीजें — मैं जानता हूं ऐसे लोग हैं वो सन्देश लिखते हैं और उससे वो एक्स्पेक्ट करते हैं, उम्मीद रखते हैं कि जवाब उसी वक्त मिले। अगर ना मिले तो वो कहते हैं कि "अरे कुछ तो गड़बड़ है।" वो घबरा जाते हैं और आप दुनिया में देखते हैं सबकुछ कि "हमें ये करना है; हमें वो करना है; इसका जबाब देना है। हे भगवान, हमें ये साझा करना है।" और यह टेप-रिकॉर्डर बस चल पड़ता है अचानक से।

एक तरह से क्या मैं किसी पर आरोप लगाऊं, क्या मैं सोचूं कि यह गलत है ? एक तरह से मैं समझ सकता हूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यह बिल्कुल सही है सबकुछ, लेकिन इस सब में सिर्फ एक ही बात जो मुझे गलत लगती है वो यह कि सबकुछ ये सब मुझे खुद से दूर ले जाता है। अब मुझे एक फैसला लेना है और शायद मैं इसे हर रोज ना सुनूं और हां, जब मैं दुनिया की सारी परेशानियों से घिरा हुआ हूं शायद मैं इस पर ध्यान ना दूं लेकिन एक फैसला तो है — एक फैसला जो मेरे भीतर से आयेगा 24*7, साल के 365 दिन। और वह फैसला कह रहा है कि "आप पूर्ण रहें, आप सच्चे रहें, ईमानदार रहें। समझिये। आप स्पष्टता लायें। आप सभी चीजों को जीवन का हिस्सा बनाइये।" और यह करने का फैसला होगा हृदय का। और हमारा फैसला है कि "हम जबाब दें; मेल मिला है क्या; जाइये मेसज़ को देखिये; न्यूज़ को देखिये और ये कीजिये और वो कीजिये और इसका जबाब दीजिये और उसका जबाब दीजिये।" और यही सब — कितनी ही सारी जिम्मेदारियां।

तो सवाल यह है कि क्या हम एक बटन दबाकर रीसेट कर सकते हैं ? और शायद ऐसा कोई रीसेट करना ना हो पाये। पर शायद यहां पर हम इस बात की सराहना कर सकते हैं। सराहना करना शुरू कर सकते हैं कि जीवन हमें कुछ बता रहा है कि मैं खुद को कुछ बताऊं कि हां, यह ब्रह्माण्ड भी मुझे कुछ बता रहा है। और जब मैं देखता हूं — सबकुछ देखता हूं मैं। जब मैं गंदगी को देखता हूं — और मैं यही तो हूं। मैं ही वो गंदगी हूं। इन चीजों से ही, यही चीजें जिन्हें देखकर मैं "गंदगी" कहता हूं इन्हीं सबसे मैं बना हूं। यह है — ये खाल, ये हड्डियां, ये खून, ये मांसपेशियां, ये अंग हम इन्हीं से तो बने हैं। और जिस दिन मैं दूसरी दीवार से टकराऊंगा; मैं खत्म हो जाऊंगा, मैं बस यही तो बन जाऊंगा — धूल। धूल से ही हम आये हैं और धूल में ही हम मिल जायेंगे। और फिर भी जीवन क्या है ?

अब कई लोग कहते हैं कि "जीवन क्या है ?" और सवाल ये आता है कि "जीवन का क्या ?" क्योंकि कोई भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। कोई नहीं कह रहा कि "यह है जरूरी।" वो सारी बातें नहीं जो आप कर रहे हैं। जरूरी क्या है ? जरूरी है इस स्वांस का आना और जाना। कितनी मधुर और ताकतवर है यह स्वांस! कितनी कमाल की है यह स्वांस — जो आप में आती है और आपको क्या देती है ये ? कोई साधारण तोहफा नहीं — एक अनोखा उपहार और यह है स्वयं जीवन का उपहार। प्यार से, आराम से यह आप में आती है, आपको भरती है, ताकि आप जीवित रह पायें। आप ही सोचिये और इसकी कोई सीमा नहीं है जो आप सोच सकते हैं; आप जो चाहें उसके बारे में सोच सकते हैं। आपको पूछना चाहिये, जी हां आपको सोचना चाहिये कि आपकी मूलभूत जरूरतें आखिर क्या हैं ? मैंने इन्हें "जरूरत" कहा है, चाहत नहीं जरूरत। आपकी एक जरूरत है कि आप पूर्ण हो जायें। आपकी जरूरत है कि आप सन्तुष्ट हो जायें। आपकी जरूरत है कि आप खुश रहें। ये हैं आपकी जरूरतें। और इनके बिना नतीजे बहुत ही बुरे होंगे। इनके बिना उदासी छा जायेगी; निराशा होगी; भ्रांति छा जायेगी।

यह ऐसी ही बात है; जैसे कि हम संदेह की बात करते हैं और संदेह — अच्छा। क्या आपको कभी संदेह नहीं होना चाहिये ? जी नहीं! हर एक बावर्ची को हर कोई आप एक चीज करता देखेंगे वह अपना खाना बनाने के बाद, वह चखते हैं उसे और वह चखते क्यों है ? वह चखते हैं क्योंकि उन्हें संदेह है। वह जानना चाहते हैं कि जो पका है वह कैसा है कि नमक ठीक है, स्वाद ठीक है। संदेह करते हैं, शक करते हैं, पर सन्देह से निकलने के लिये कुछ करते हैं वो लोग ? और वो उन्हें बस चखना होता है। उसे चखकर अब कोई सन्देह नहीं कि अच्छा है या नहीं है या स्वाद ठीक है कि जैसा स्वाद चाहिये था वैसा मिला या नहीं मिला कि नमक ठीक डाला है, मिर्च सही डाला है जो भी — मसाला सही है "सबकुछ ठीक है।"

तो सन्देह कोई मुद्दा नहीं है। बात है सन्देह को खत्म करने की और जब आप दूसरी तरफ फंसे हैं और दिमाग में है बस शक, शक, शक, शक, सन्देह, सन्देह, सन्देह ही….। मेरा मतलब कि फिलहाल क्या आप शक कर रहे हैं ? नहीं करना चाहिये, इससे बाहर निकलिये, क्योंकि यही एक मौका है। आप जानते हैं कोई है जो बैठकर कह रहा है कि "यह मेरे साथ क्यों होता है ?" अब आप बैठकर खुद को सवाल कर सकते हैं जबतक गाय वापस नहीं लौट आती। सोचते रहें, सोचते रहें और यह बात कि "मेरे साथ ये सब क्यों हुआ" या फिर आप कह सकते हैं कि "मैं इसके बारे में क्या करूं जिससे मुझे इस वक्त का सबसे ज्यादा फायदा मिल पाए, मैं बेहतर कैसे बन सकता हूं ?" मुझे यकीन है ऐसे भी लोग हैं जिन्हें लगता हैं कि बेहतर बनने की गुंज़ाइश नहीं है, पर मेरी बात मानिये हर इंसान बेहतर बन सकता है। क्या आप अपने हृदय में बेहतर बनना चाहते हैं ? क्या आप मान सकते हैं अपने दिमाग में कि आपके पास एक विकल्प है कि आप चुन सकते हैं, आप चुन सकते हैं कि आपकी जरूरतें क्या हैं आप उन पर ध्यान नहीं देते हैं।

और क्या कमाल का तरीका है वापस जाने का, सुनकर, सिर्फ सुनकर — और फिर कुछ करने से अपनी जरूरतों के बारे में सोचना, खुशी की जरूरत…। वो बाहर जाना, यह कोई जरूरी नहीं, यह चाहत है। जरूरत है कि आपको सुरक्षित रहना है। लेकिन बाकी जरूरतें भी होती हैं; जरूरत है पूर्ण होने की और इसका बाहर जाने से कोई लेना-देना नहीं इसके लिये आपको भीतर जाना है। उस स्पष्टता के लिये आपको भीतर झांकना है। उस सुन्दर समझ के लिये आपको अन्दर देखना है। क्योंकि भीतर ही आपको ये मिलेगी। आप में — आपके अन्दर वो सब बातें मौजूद हैं जो आप खुद से दूर समझते थे। यही है व्यंग।

इसे कबीर कितना अच्छे से बताते हैं कि "वह जो हिरण है, वह हिरण अपनी नाभि की महक ढूंढ रहा है — और वह जंगल ढूंढता है पर वो महक उसकी अपनी नाभि में होती है।" वहीं तो है वो महक हिरण में। और यह है दुर्घटना। और कैसे ? कबीर कहते हैं "जैसे कि आग लगती है चमकते पत्थर में...." जैसे तेल है तिल में। छोटे बीज, तिल के बीज, आपको लगता है कि उसमें कोई तेल नहीं है लेकिन उनमें से कुछ को निचोड़ें तो काफी सारा तेल निकल जाता है, तिल के बीज का तेल और "चमकते पत्थर की तरह जहां आग है वैसे ही दैविक है आपके भीतर। और अगर आप उसके साथ जग पायें, अगर अपनी आंखें उस पर खोल पायें।" तो देखेंगे और वह कहां है दैविक, वह है स्पष्टता; वह है शांति; वह है समझ — वह सब जो आप में अच्छा है वह हमेशा से रहा है, हमेशा रहेगा भी। आप उसे बाहर देखेंगे क्योंकि यह आपकी आदत है। अब कोई भी जेब में आइसक्रीम नहीं रखता जब आपको आइसक्रीम चाहिये आप उसे बाहर ढूंढते हैं। लेकिन जो दैविक है वह आपके भीतर है। वह स्पष्टता, आपके भीतर है। वह समझ, आपके भीतर है। वह खुशी, आप खुद में लेकर चलते हैं। पूर्ण होना आप भीतर लेकर चलते हैं — वह सच्ची पूर्णता और वहीं तो आपको देखना है। वहीं तो आपको खोजना है। यही बात तो आपको समझनी है।

यह सवाल नहीं है कि "ओह हां, मुझे पता है!" यह सवाल नहीं है कि "ओह हां, मैं जानता हूं।" सवाल यह है कि इसका क्या कर रहे हैं आप — अगर आप जानते हैं कि दैविक आपके भीतर है आप उसका क्या कर रहे हैं ? क्या आप उत्सुक हैं ? आपको कितना उत्सुक होना चाहिये ? दैविक आपके भीतर है इस बात कि खुश होने की कोई सीमा नहीं होनी चाहिये। आपको इतना खुश होना चाहिये कि जो आप ढूंढ रहे हैं वह आपको चाहिये, वह आपके भीतर ही है कि वो सब — वह दूसरी सच्चाई है। हम इस दुनिया की सच्चाई को मानते हैं — लेकिन एक और सच्चाई भी मौजूद है। और यह उतनी ही सच है जैसे वो। पर कभी-कभी सच्ची नहीं रहती।

मेरा मतलब, मेरे सबसे अच्छे प्लान्स थे। अगर किसी ने कहा होता कि "2020 में एक लम्बा होगा समय ऐसा जब आप कोई इवेंट नहीं कर पायेंगे।" तो मैं कहता कि "यह सच नहीं है। मैं इवेंट करना चाहता हूं।" लेकिन परिस्थिति बदल गयी है। मैं लोगों को इस तरह से बुलाकर उनको बीमारी नहीं देने वाला हूं मैं। तो मैं यहां पर हूं अच्छा करने की कोशिश में, जानते हैं आप तक पहुंचना इन विडियोज़ के जरिये आपसे बात करना। ऐसा नहीं कि कमरे में कई लोग हैं; मेरे अलावा यहां पर कोई भी नहीं है। बस मैं हूं; मैं आता हूं; लाइट जलाता हूं; कैमरा चलाता हूं; शूट करता हूं। और फिर कार्ड को लेकर अपलोड कर देता हूं और यह, बस चला जाता है। मुझे वीडियो में बात करने की आदत तो है लेकिन हमेशा काफी लोग होते हैं यहां पर — कोई कैमरा संभालता है; कोई लाइट्स को देखता है; कोई ये करता है; कोई ऑडियो को सुनता है। लेकिन ये सारा सेटअप बना होता है — मैं बस अपना काम करता हूं। तो कौन-सा वाला सच है; क्या है सच्चाई ?

अप्रैल 2019 में कोई ऐसी बात नहीं थी (कम से कम हमारे पास) कोरोनावायरस की कोई खबर नहीं थी। सब ठीक था। और फिर अचानक से ये सब हो गया। दिसम्बर के आसपास हमने सुना कि ये शुरू हो रहा है "कोरोनावायरस, कोरोनावायरस, कोरोनावायरस" और सबकुछ बदलने लगा। फिर अगली बात जो पता चली कि लॉकडाउन हो रहे हैं। लॉकडाउन यहां पर, लॉकडाउन वहां, सब जगह। लेकिन इस स्वांस की सच्चाई नहीं बदली है। और क्योंकि मैं आज ही किसी से फोन पर बात कर रहा था तो उन्होंने कहा कि "इसकी वजह से सब कुछ बदल गया है।" मैंने कहा "नहीं, यह बस एक रूकावट के जैसा है शायद हमारे प्लान में। लेकिन सच्चाई यह है वह असलियत अभी नहीं बदली है।" स्वांस अब भी आप में आती है और इसी से आप पहले भी जीवित थे और इसी से आप अब भी जीवित हैं — और उम्मीद है, अगर सावधानी बरतेंगे तो यह आपको कहीं लम्बे समय तक जीवित रख पायेगी, जैसे आप रहना चाहते हैं। यह अच्छी बात होगी। है ना!।

तो आपका जीवन, आपका अस्तित्व — अच्छा समय है रीसेट करने के बारे में। जाने दें; छोड़ दें वो सब बातें जो आपके कंधों पर हैं वो भार। और एक बार के लिये सीधे खड़े हो जाइये और जीवन में चलिये आगे। इस वक्त से कुछ सीखिये और मजे कीजिये। जीवित रहना इस स्थिति में, इस अजीब स्थिति में रहना। परेशान न हों; कोई जरूरत नहीं परेशान होने की आपको। यह है जो है। आपको क्या करना है कि बस सावधानी बरतिये। और अगर आप सावधानी रखेंगे तो आप ठीक रहेंगे। अच्छे रहेंगे आप।

तो अपना ख्याल रखें आप। सुरक्षित रहें! ठीक रहें! और हां, आप रहिये खुश।

मैं आपसे कल मिलूंगा। धन्यवाद!

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