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लॉकडाउन — छठा दिन 00:15:21 लॉकडाउन — छठा दिन Video Duration : 00:15:21 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

नमस्कार! आप सभी को नमस्कार !

मुझे उम्मीद है आप ठीक हैं। मुझे पता है यह मुश्किल समय है हालांकि मैंने कुछ मुद्दों पर बात की है। जैसे-जैसे सवाल आने शुरू हुए हैं, वह इकट्ठे हो रहे हैं, लेकिन जो भी हो रहा है लोग उससे काफी डरे हुए हैं और मैं इस वक्त आपसे बस इतना कहना चाहता हूं कि देखिए, जानते हैं नियम आसान है "वायरस ना ही दीजिये, वायरस मत लीजिये" — इतना आसान है, पर आपको यह करना पड़ेगा। दूर रहना अच्छा है। पर सवाल आता है कि आप अकेलेपन में क्या करेंगे ?

यह अफसोस की बात है सबसे पहले यह कि हमें यह सब देखना पड़ रहा है, क्योंकि खुद के साथ रहना प्राकृतिक होना चाहिये। खुद के साथ रहना अच्छा लगना चाहिए, कमाल होना चाहिए यह बुरा नहीं होता है लेकिन, अफसोस ऐसा है बिल्कुल नहीं। यह है — "हे भगवान! अब मैं क्या करूंगा!" लोग पागल हो रहे हैं और यह हो रहा है और वह हो रहा है। लेकिन मेरी मानिये जो मुद्दा है वह यह है कि सबसे पहले तो आप यह वक्त कैसे बिताना चाहते हैं ? बहुत आसान है —"हिम्मत रखिए, डर को छोड़ दीजिए!" ऐसे नहीं कि हे भगवान! अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा!" नहीं, हिम्मत रखिए!

दो चीजें चाहिए आपको — अगर आप चाहते हैं कि यह समय आराम से निकल जाए, जल्दी भी, जो भी दो चीजें चाहिए। ‘धैर्य’ — आपने सोचा आप में है क्यों ? यह आपकी परीक्षा है ‘धैर्य’ और दूसरी बात 'हिम्मत' — बस यही दोनों चाहिए और यह समय बीत जाएगा। स्पष्टता आपके भीतर ही है, उसे ढूंढिए और बाहर मत देखिए उसे अंदर तलाशिये। खुशी आपके भीतर है, खुशी को तलाशें। वह सुंदर खजाने को जो दबे हुए हैं, अब आपको उसकी जरूरत है। देखिए! अब उनकी जरूरत है आपको। पहले पता है, मैं आता था, बैठता था, लोगों से बात करता था आपके भीतर है यह। लोग कहते थे “हां हां हां!” अब आपको उनकी जरूरत है, क्योंकि इसके बिना आप क्या करेंगे ? हम क्या करेंगे ? यह बुरा हो सकता है इसलिए ढूंढिए, उस धैर्य को खोजें, हिम्मत को खोजें। खुशी अब भी आप में ही है और आप इस समय को अच्छा बना सकते हैं, अकेलेपन में, हां आप इसे कमाल का समय बना सकते हैं।

यह सब मुझे हमेशा उस व्यक्ति की याद दिलाता है जो एक व्यक्ति — वह जेल में था और वह बंद था। वह पीस एजुकेशन प्रोग्राम को सुन रहा था और वह मानता भी था। और मैं हमेशा स्वांस की बात करता हूं और यह कैसे शांति देती है और स्वांस हमारी कितनी सुंदर है और ये सब चीजें। एक दिन वह गया और अपने कारावास के बिस्तर में लेट गया और यह तज़ुर्बा वह किसी को सुना रहा था और उसने कहा कि "प्रेम हमेशा स्वांस की बात करते रहते हैं, तो मैं स्वांस पर ध्यान दे रहा था। मैंने जैसे ही स्वांस पर ध्यान देना शुरू किया और ध्यान दिया, मैं शांति से भरने लग गया — कितना सुंदर है यह, कितना कमाल का, जबरदस्त है। उसने कहा, अचानक से ही इतनी शांति मिली मुझे, शांति का एहसास हुआ, जो पहले मुझे कभी नहीं हुआ था।"

मेरे लिए यह हमेशा से था कि "हे भगवान! इस व्यक्ति को शांति का तज़ुर्बा हुआ जेल में बंद रहते हुए भी।" उनका क्या जो जेल में बंद नहीं हैं। हां, वो — वह भी तज़ुर्बा कर सकते हैं। मैं कुछ करने के लिए तत्पर हूं और हम इसकी संभावना को देख रहे हैं कि जितने भी लोग लॉकडाउन में हैं, शायद हम सभी मेरे साथ पीस एजुकेशन प्रोग्राम को देख सकते हैं और मैं मदद करूंगा उनकी, पीस एजुकेशन प्रोग्राम को करने में। मेरा मतलब, यह कमाल की बात होगी सच में। क्योंकि यह उन पर कमाल का काम करता है, जो जेल के अंदर बंद हैं और एक तरह से हम सभी जेल के अंदर बंद हैं। यह ऐसा है कि हम सभी घरों में हैं, लेकिन बंद ही तो हैं, तो हम इसकी संभावना को देख रहे हैं मेरा मतलब, यह कमाल का हुआ, यह कमाल होगा।

लेकिन उस वक्त तक कृपया डरिये नहीं, बिलकुल मत डरिये, हिम्मत रखिये आप सभी लोग, धैर्य रखिये; समझ रखिये यह भी गुजर जायेगा वक्त। जी बिलकुल, यह चला जाएगा। और जहां तक सवाल है आपके परिवारजनों का और उनके साथ समय बिताने का — चाहे पसंद हो या ना हो वह आपका ही हिस्सा हैं और ठीक है, यह अच्छा है कि आप उन्हें स्वीकारें, उन्हें प्यार करें। आपको केवल उनके प्रति एक जिम्मेदारी का भाव ही नहीं रखना है कि “देखिए मुझे यह करना है; मुझे वह करना है; अब मुझे यह पता करना है; मुझे ऐसे पता करना है; यह करना है।” नहीं! बस वह रहिये, जो आप हैं और उन्हें वैसा रहने दीजिए जैसे वह हैं। बहुत-बहुत अच्छे तरीके हैं सब से जुड़ने में।

क्या लगता है कि लोग पुराने समय में क्या करते थे उस वक्त ? मेरा मतलब, हम वह सब भूल गए हैं "आइए! यहां आइए एक कहानी सुनते हैं या एक कहानी पढ़ते हैं, एक कहानी पर चर्चा करते हैं।" किसी बात पर खुश होते हैं। मैं खुशकिस्मत था लगता है मुझे — जब मैं बड़ा हो रहा था तब टीवी नहीं था, ऐसा नहीं कि इसका आविष्कार नहीं हुआ था। यह बस इंडिया में, यह नहीं आया था और मैं क्या करता था ? कहानी सुनता था मैं उनसे खुश होता था कोई भी ऐसा, जो मुझे कहानी सुना सकता था मैं उन पर ध्यान देता था। यह कितना अच्छा होता था। एक समय था जब टीवी नहीं था और उस समय इंडिया में जब रेडियो आया ही था, यह कभी-कभी आता था और यह कभी-कभी नहीं आता था। शायद एक घंटा या डेढ़ घंटा या फिर दो घंटे और फिर यह बंद हो जाता था — आप क्या करते थे उस समय ? कुछ समझते हैं, आप कुछ खोजते थे। आजकल तो इतना कुछ आता ही रहता है कि हम अपने आपको भूल गए हैं। इस तकनीकी का प्रयोग किए बिना रहना और इस फोन के बिना रहना और सोशल मीडिया के बिना रहना — हम यह सब बातें भूल गए हैं और एक समय की बात है लोग बस ऐसे ही थे और वह खुश भी थे। मेरा मतलब, कुछ बुरी बातें थीं, क्योंकि नालियां नहीं थीं शायद और सबकुछ बदबू देता था थोड़ी-सी लेकिन उन सबके अलावा, हे भगवान, लोग कहते हैं "मैं तो पागल हो रहा हूं!"

पर आप पागल कैसे हो सकते हैं, आप जीवित हैं। यहां पर कुछ कमाल का चल रहा है और फिर ऐसे लोग हैं जो उम्मीदों में बंधे हुए हैं कि उनकी उम्मीदें क्या हैं और एक-दूसरे से उनकी उम्मीदें और फिर वह साथ नहीं आ पाते। क्योंकि उम्मीदें बीच में आ जाती हैं। यह समय उम्मीदों का नहीं है। यह समय है जीने का। आप हो सकते हैं, जी हां! रह सकते हैं। आप एक इंसान हैं सबसे पहली चीज जो आप हैं वह, "आप एक इंसान हैं" और अब यह कहना ही अजीब-सा लगता है, पर मुझे कहना ही पड़ेगा, क्योंकि यही तो आप भूल गए हैं कि "आप एक इंसान हैं" और अगर हम यही भूल जाएं कि हम इंसान हैं तो हम क्या बन गए ?

बहुत-सी कंपनियां हैं, वह सब ज्यादा तकनीकी बनाती जा रही हैं, बनाती जा रही हैं और भी ज्यादा और असल में उनमें से एक — पर बात यह है हमें फर्क नहीं पता कि “जरूरत और चाहत क्या है ?” हम चाहत के गुलाम बन चुके हैं यह हम भूल गए हैं कि हमारी जरूरत क्या है ? एक बहुत ही बड़ी कंपनी है, यह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी में से एक है और वह बहुत-सी चीजें बनाते हैं और उसमें से एक भी चीज की हमें जरूरत नहीं है और वह बहुत-बहुत बड़ी कंपनी है। मेरा मतलब, बहुत ही बड़ी, आर्थिक रूप से बहुत बड़ी। लोग बस उनके लिए पागल से हैं और उनकी बनाई गई एक भी चीज हमें असल में चाहिए। यह हैरानी की बात है, चौंकाने वाली बात है और इतनी सारी चीजें जिन पर हम आकर्षित होते रहते हैं। हम नहीं समझते कि वह चीजें, जिन्हें हम सच में आकर्षण कहते हैं वह हमें भटकाती हैं। क्योंकि अगर वह आपको खुद से दूर ले जाती हैं — यही परिभाषा है ध्यान भटकाने की, जो आपसे आपको दूर ले जाए। यही है परिभाषा ध्यान भटकाने की।

आपको खुद के पास घर लौटना ही होगा। आपको वह अच्छाई महसूस करनी है, जो आपके हृदय में है; वह खुशी, जो हृदय में है; वह स्पष्टता, जो आप में नृत्य करती है; वह शांति, जो आपके भीतर है; वह धैर्य, जो आप में है; वह हिम्मत, जो आपके भीतर है; आपको उन चीजों को जानना ही है और यही वह मौका है यह सब करने का। यही मौका है वह करने का। जब मैं यह देखता हूं जैसे कि "हे भगवान! यह कोरोना वायरस अच्छा कैसे है ?" यह अच्छा नहीं है, सच मानिये अच्छा नहीं है। पर फिर मैंने एक फुटेज देखी — एक मछली पोर्पोइस (Porpoise) वेनिस इटली में प्रदूषण इतना कम हो गया है कि यह पोर्पोइस मछली यहां पर वापस आ गई है। आप पानी के भीतर देख सकते हैं, आप समुद्र की गहराई देख सकते हैं। जी हां! आप मछलियां देख सकते हैं; आप स्वॉनस (Swans) देख सकते हैं और ऐसा है, “हम्म!” फिर मैंने देखा जैसे चाइना का प्रदूषण बिल्कुल चला गया है जैसे कि “हम्म!”

हमने क्या किया है ? हमने क्या बनाया है ?” हमने अपनी चाहत की वजह से एक दैत्य बनाया है और यह धरती को नष्ट कर रहा है, हमें तबाह कर रहा है और इसके अलावा कुछ नहीं।

जब आप इस कोरोना वायरस के कुछ आंकड़ों को देखते हैं, हजारों-हजारों-हजारों की तादाद में लोग ठीक भी हुए हैं और कुछ लोगों को कम लक्षण दिखते हैं, काफी कम। कुछ जगह हैं जहां पर लोग मर रहे हैं वह मर रहे हैं हॉस्पिटल्स के ना होने की वजह से और इसलिए क्योंकि सही चिकित्सक उपकरण नहीं है वहां पर। पर, जो भी हो रहा है शायद यह एक तरीका है याद दिलाने का कि हम इंसानों की तरह हमें लौटना है उस कमाल की चीज पर जो कहलाती है "इंसानियत!" हमें दोबारा इंसान बनना है, हमें समझना है कि हम कौन हैं और जरूरतें हमारी क्या हैं ? चाहत नहीं, हमारी जरूरतें। शायद यही एक बढ़िया तरीका है पुरानी चीजों पर लौटने का, उस तक लौटने का जो हमारे भीतर पहले से है।

तो मेरे दोस्तों चाहे जो भी हो बस याद रखिए — “धैर्य रखें; हिम्मत से काम लें!” आपके भीतर कमाल की चीजें हैं वह। अब समय है उसे साझा करने का, उसे बाहर लाने का, समय है खजाना निकालने का और यही है संभावना; यह मौका। तो ख्याल रखिये; सुरक्षित रहिए; सेहतमंद रहिये — और सबसे जरूरी बात खुश रहिये आप सभी!

लॉकडाउन — पांचवा दिन 00:17:09 लॉकडाउन — पांचवा दिन Video Duration : 00:17:09 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

सबको नमस्कार! उम्मीद है कि इस ड्रामा और ट्रामा में आप ठीक हैं। मैं हूं प्रेम रावत।

एक और दिन, एक और मौका आपसे बात करने का इस अजीब स्थिति में जहां गलत फैसले, विचार और डर और बाकी सबकुछ यूं ही फैल रहे हैं और फैलते जा रहे हैं और फैलते जा रहे हैं। पर, मैं जो बात करना चाहता हूं इस सबके बीच में वह है स्पष्टता — आपके पास स्वांस के रूप में एक तोहफा है आप जीवित हैं। आप इस सुंदर धरती पर हैं।

सूरज नहीं बदला है वह वही है। हम खबरें सुन रहे हैं “कोरोना वायरस” वही न्यूज़, केंद्रित न्यूज़: “यह गलत है; वह गलत है। यह इस तरीके का नहीं हो रहा; यह उस तरीके से नहीं हो रहा।”

हर रोज संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती रही है और बढ़ती जा रही है और बढ़ती जा रही है और फिर मैं कुछ पढ़ रहा था 'न्यू ऑरलियंस' के बारे में जहां उनके पास मार्डी ग्रास है और सभी लोग बाहर आ गए और अब काफी लोग बीमार हो गए हैं। ऐसे बहुत सारे लोग हैं आज जवान लोग जो कह रहे हैं “कोरोना वायरस होने से फर्क नहीं पड़ेगा मुझे तो बस मजे करने हैं।” और जिस उम्र के लोग बीमार पड़ रहे हैं अमेरिका में वह बहुत-बहुत अलग है। सच मानिये, बाकी जगह के मुकाबले अमेरिका में जवान लोग ही बीमार पड़ रहे हैं। हां! सच है यह!

तो आप सोचते होंगे “हम क्या करने में समर्थ हैं ?” यह आसान-सी बात है आपको दूर रहना है। अगर दूर रहेंगे संक्रमण नहीं लगेगा। आज नहीं तो कल यह बीमारी खत्म होगी आपको बीमार नहीं पड़ना है। आपको बाकियों से दूरी बनानी ही है। बस दूर रहना है सिर्फ इतना। यह लोगों के लिए मुश्किल है बहुत ज्यादा कि वह बाकियों से दूरी बनायें। वह तो बस होना चाहते हैं। “हमें यह भी करना है; हमें वह भी करना है” उनकी ऐसी आदत है। लेकिन उनको आदत पड़ चुकी है और अचानक से ही कुछ होता है और सब जो आपको साधारण लगता है वह साधारण नहीं रहता और आप नहीं कर पाते असल में तो अगर आप करेंगे तो वह आपके लिए बुरा होगा। तो इससे मुझे एक कहानी याद आती है “कौन-सा सच्चा है ?”

तो एक बार काफी समय पहले एक राजा था वह बहुत अमीर था और एक सुंदर राज्य था और सबकुछ अच्छा था और एक दिन उसने एक सपना देखा और उस सपने में उसने देखा कि वह पड़ोसियों से लड़ रहा है और एक जंग चल रही है — यह बहुत-बहुत बड़ी जंग है और अचानक ही वह सबकुछ हार जाता है।

उसे जंग के मैदान से भागना पड़ता है और उसे दूर जाना है जितना दूर हो सके उतना दूर जिंदा रहने के लिए और वह भागता है, भागता है, भागता है, और अंत में एक जंगल में पहुंचता है और उस जंगल के बीच में वह यह बात सोचता है कि वह थक गया है; वह घायल है; वह बहुत देर से भाग रहा था; वह भूखा है। यह अच्छा दृश्य बिल्कुल नहीं है और अचानक से उसे एक झोपड़ी दिखती है वह उस झोपड़ी में जाता है और उसमें वहां एक बूढ़ी महिला है। वह उनके पास जाकर कहता है "क्या आप मुझे कुछ खाने को दे सकती हैं ?"

वह कहती हैं, "देखो तुम्हें देने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है जो पका हुआ हो, पर यह रहे थोड़े-से चावल और यह रही थोड़ी-सी दाल। तुम दोनों को पका लो, खिचड़ी बना लो और भूख मिटा लो अपनी!"

राजा कहता है — धन्यवाद! चावल लेता है, दाल लेता है, एक भगोना लेता है। अब उसे लकड़ियां चाहिए — बारिश की वजह से लकड़ियां गीली हैं और वह आग जलाने की कोशिश करता है उसे बहुत वक्त लगता है। पर, अंत में आग जल जाती है तो, बहुत भूखा है वह। बहुत थका है, परेशान है, उसका राज्य खो गया है मतलब कि सब कुछ उस पर हावी है और बस अंत में चावल बन ही जाते हैं, दाल बन जाती है लेकिन खाने के लिए अभी गर्म है तो वह एक पत्ता ढूंढता है और उस पर दाल और चावल रख लेता है उसे ठंडा होने के लिए। इसी बीच यह दो बैल — जो आपस में लड़ रहे हैं वह उस जगह आ जाते हैं, जहां खाना ठंडा हो रहा है और फिर उसके बाद क्या हुआ ? वह ले लेते हैं उस सबको जो उसने बनाया है और सबकुछ मिट्टी में मिला देते हैं, नष्ट कर देते हैं और यह उसके लिए बहुत ज्यादा हो जाता है।

तो अंत में वह रोने लगता है और आंसू टपकने लगते हैं। वह उठ जाता है। उसका चेहरा गीला है, चेहरे के आंसू उसे उठा देते हैं और वह उठ जाता है। वह आस-पास देखता है और अचानक से वह देखता है वह अपने कमरे में है और उसके पास यह सुंदर मखमल का बिस्तर है और सजे हुए खंभे हैं, दीये और उसके पास सुरक्षाकर्मी — यह सब लोग हैं और वह हैरान हो जाता है यह सपना उसके लिए सच था।

वह वाकई हैरान है और वह उठकर कहता है कि "हे भगवान कौन-सा वाला सपना है कि जंग हारना, जंगल में होना; वह खाना बनाना, क्या वह सपना था — और यह सच है ? या यह दूसरी बात सच है कि यह सब सपना है कि मैं राजा हूं और सब कुछ ठीक है और वह सच था कि मैं जंग में हारा; मैं कोई नहीं हूं; मैं उस स्थिति में फंसा हुआ हूं, वह सच था, वह?"

वह उससे घबरा जाता है तो अगले दिन वह उठकर अपनी सभा में जाता है और उसी समय वह घोषणा करता है। वह कहता है "मैं जानना चाहता हूं, मुझे एक सपना आया और मुझे पता करना है कौन-सा वाला सच था ? यह है सच या वह था सच कि मैं फंसा हुआ हूँ, वह सच था ? या फिर मैं राजा हूँ यह सच है?"

बहुत से लोग (और मैं कहानी को छोटा करता हूं) कि कई लोगों ने कहा कि "हां वह सपना था। यह सच है आप राजा हैं, आप चाहे कुछ भी सोचें।” पर वह संतुष्ट नहीं होता और अंत में यह बच्चा जिसका नाम था — अष्टावक्र, जो असल में (जिसका मतलब है शरीर से अजीब-सा) और वह राजा को बताता है और यह कहता है वह बच्चा (क्योंकि मुझे लगता है थोड़ा बहुत ड्रामा है) वह आया और जब वह आया सबने उसे सभा में आते हुए देखा कि सबको लगा कि क्या यह जवाब देगा ? सभी लोग हंसने लग गए जैसे कि "कैसे हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति जो कि ऐसा अजीब-सा है! यह कैसे इस सवाल का जवाब दे सकता है?"

अचानक से उसने राजा को देखा और उसने कहा कि “राजा आपने मुझे इन लोगों के बीच, इनके समक्ष बुलाया है जो मुझे देखकर ही मेरे बारे में कह रहे हैं, मेरी चमड़ी को देखकर (चमड़ी मतलब खाल) यह लोग यही देखते हैं और इन्होंने पहले ही सोच लिया है कि मैं कौन हूं! इन्होंने मुझसे बात भी नहीं कि इन्होंने देखा भी नहीं कि मेरे भीतर क्या है और बस मुझे बाहर से देखकर अंदाजा लगा रहे हैं।”

राजा को एहसास हुआ कि यह कोई आम आदमी नहीं है मतलब आम नहीं है, यह खास है और वह उसे सिंहासन दे देता है यह कहकर कि "यहां पर बैठें।" उसका स्वागत करता है और फिर वह बच्चा कहता है कि "राजा यह सवाल पूछने के बाद कि वो जब आप जंग हार गए थे और आप जंगल में थे, वह एक सपना था राजा।" और आपका सवाल कि "आप राज्य देख सकते हैं; आप देख सकते हैं; महल, बिस्तर; यह देख सकते हैं क्या यह सपना है ?"

बच्चा कहता है “यह भी सपना ही है। सच्चाई इन दोनों से परे है सच्चाई, वह सच्चाई है जो आपके भीतर है उसमें नहीं जो आप देखते हैं पर आप जो समझते हैं यह सब बदल जाएगा।”

इसलिए इन समय में मैं उसी कहानी के बारे में सोच रहा हूं कि जो भी हम समझते हैं वह सब एक सपना है (सच्चाई जैसा ही एक सपना)। यह सपना है दो दीवारों की वजह से — जिस दीवार से हम आए और जिस दीवार में हम गायब हो जाएंगे। उसकी दूसरी तरफ, यही इससे एक सपना बनाता है, सच्चाई जैसा सपना… पर, कई-कई संतों ने अपने-अपने समय में कहा है कि “यह बस एक सपना ही है। क्योंकि एक दिन आप उठेंगे और यह ऐसा नहीं रहेगा। यह कुछ और ही बन जाएगा सब बदलता रहता है, सब बदलता रहता है और बुरे सपने आते हैं और यह होता है और वह होता रहता है तो आप क्या करेंगे ?

अब आपको किसी तरह उस असल सच्चाई तक पहुंचना ही है और वह असल सच्चाई है, वह सच्चाई जो आपके भीतर है। कोई विचार नहीं, कोई बात नहीं और शायद, शायद इस समय में परिस्थिति की वजह से यह कहानी थोड़ी ज्यादा सच्ची लगती है। बाकी साधारण आम दिनों से जहां सब हमारे हिसाब से हो रहा होता है और अब जब हमारे हिसाब से नहीं हो रहा है, पर आपको कहना ही है कि "हां मैं यहां हूँ सबसे जरूरी बात है — यह स्वांस मुझसे अंदर और बाहर जा रही है। मैं हूं! अस्तित्व है! सबसे बड़ा जादू हो रहा है यह। मैं यहां हूं और क्योंकि मैं हूं, क्योंकि मैं जानना चाहता हूं कि मैं कौन हूं! मुझे भीतर जाकर पता लगाना होगा कि यह प्रक्रिया क्या है जानने की, कि मैं कौन हूं! यह सब बदलेगा। चीजें पहले जैसी हो ही जाएंगी।”

वह जीवन जब सब साधारण-सा था। और जब जीवन नीरस हो जाए तो आप खुद से संपर्क में नहीं रहते क्योंकि हर रोज कुछ ना कुछ मजेदार होता ही है। हर एक क्षण मजेदार हो रहा है और आप में आती है वह स्वांस जो मजेदार है और यह आप की सच्चाई है — यह है आप की सच्चाई जो आप देख रहे हैं, जो आप समझ रहे हैं यह ऐसा नहीं है। यह तो नहीं रहेगा ऐसा, यह है इसकी सच्चाई और फिर कुछ ऐसा है जो था और वह ऐसा ही रहेगा। मेरा मतलब अंत में इस धरती और बाकी चीजों का बनना ज्यादा पुराना नहीं है। हम यहां पर तुलनात्मक रूप से हम यहां उतने लंबे समय से नहीं है। हां! हमने काफी तरक्की की है पर, वह तरक्की, वह हमारे लिए क्या करती है ? अचानक से हम देखते हैं कि आम इंसानी जरूरतें और आवश्यकताएं आ गई हैं।

आम बातें साधारण-सी, जो बहुत साधारण-सी हैं और आप इन साधारण बातों से क्या समझते हैं ? क्या आपको यह पसंद है ? क्या आप इनसे मजे ले सकते हैं ? क्या आप हैं, आपका अस्तित्व ? क्या आप में समझ है ? क्या आप आज के लिए कृतज्ञता महसूस करते हैं ? यह ऐसा है कि आप हैरान हैं कि "हे भगवान हमारी यह समस्या है और हमारी वह समस्या है और क्या आपने वह खबर सुनी और यह सब — हां, सब जगे हुए हैं, सब जानते हैं, सब लोग जानते हैं कि यह नकारात्मक खबर है, वह नकारात्मक खबर है! यह समझते हैं आप कि “सब ठीक है”, सब ठीक है। अस्तित्व है, शुक्रगुज़ार रहें, सकारात्मक रहें, सच्चे रहें, सच्चाई को समझें क्योंकि आप एक हिस्सा हैं जो आपके आस-पास चल रहा है। उसके भाग हैं, आप उसके एक हिस्से हैं और जब आप चमक सकते हैं तब अंधकार किनारे हो जाता है और यह बहुत जरूरी है और यह हर रोज जरूरी है।

कोरोना वायरस हो या ना हो, हर एक रोज उस अंधकार को दूर रखना, भ्रान्ति को दूर रखना, स्पष्टता को भीतर आने देना और जीवित होने के लिए हर रोज कृतज्ञता महसूस करना, क्या आसान है ?

हे भगवान! आसान है, बिल्कुल आसान है यह। यह बेहद-बेहद आसान है। फिर भी मुझे पता है कि यह बहुत मुश्किल हो जाता है यह गहन है — पर मुश्किल भी है कि हर एक क्षण उस सच्चाई के साथ आपका रह पाना। तो उस राजा की तरह नहीं जो भ्रमित हो गया था, लेकिन स्पष्टता के साथ आगे बढ़ें हर रोज और उस सुंदर जगह में रहें।

तो मैं जल्द बात करूंगा आपसे। ध्यान रखिये; खुश रहिए और सेहतमंद — आप सभी लोग। नमस्कार!

लॉक डाउन , चौथा दिन 00:18:11 लॉक डाउन , चौथा दिन Video Duration : 00:18:11 प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)

प्रेम रावत:

सबको नमस्कार! मैं हूं प्रेम रावत। भरोसा नहीं हो रहा कि इन ब्रॉडकास्ट का चौथा दिन आ गया है। मुझे उम्मीद है कि जो भी हैं आपको अच्छा लग रहा होगा। आज मैं आपसे बात करूंगा “कृतज्ञता के बारे में।”

तो पता है मैं सोचता हूं कि लोग कहेंगे “क्या ? आप कृतज्ञता के बारे में क्यों बता रहे हैं। मेरा मतलब, इसे देखिए जानते हैं यह दुनिया अनिश्चितता, इसका अर्थशास्त्र आपको नहीं पता कि कल क्या होगा। नेता भी नहीं जानते हैं। पूरा देश परेशान है; समाज परेशान है। तो ऐसा क्या है जिसका हम धन्यवाद करें इस वक्त।”

अब इस बात को शुरू करें सबसे पहले कल आपने देखा होगा कि — कल के वीडियो में मैं नहीं दिख रहा था बस पिक्चर्स थीं रुकी हुई। तो क्या हुआ था ?

तो मैंने सोचा मैं कुछ बेहतर करने की कोशिश करूं। और अब (मुझे नहीं पता कि आपको पता भी है) मैं फोन से ही रिकॉर्ड कर रहा हूं — और यहां कोई बड़ा सेटअप नहीं है। बस एक छोटा-सा ट्राइपॉड है, मेरा फोन — पीछे की पिक्चर साफ की है और बस यहां खड़ा हूं कोई रोशनी नहीं है; यह सुबह की रोशनी है बस!

तो क्या हुआ था ? अब यह हुआ था कि यहां फोन के पीछे वाला बेहतर लेंस इस्तेमाल करने के लिए मैंने फोन को घुमा दिया ताकि खुद को ना देख पाऊं — और बिल्कुल जानते हैं इसमें जो भी सॉफ्टवेयर इन्होंने डाला है, यह एक चेहरा पहचान कर नहीं कहता, “ओके मैं यहीं फोकस करूंगा।”

इसे खत्म करके मैंने फुटेज को देखा और यह थी, "वाह! यह क्या हो गया! यह फोकस से बाहर था, अच्छा नहीं था। पर मैंने जो कहा था वह उसी वक्त था, उसी क्षण में था।

फिर पहले तो — पहले मैंने भी वही किया, “हे भगवान, यह बहुत बुरा हुआ! और यह क्यों हुआ और ऐसी ही बातें।” कुछ आएगा और आपको परेशान करेगा जैसे कि “आप कैसे कर सकते हैं।” “यह तो बेवकूफी की बात थी” और ऐसे ही बातें।

और फिर मैंने उसके बारे में सोचा और कहा "देखिए! यह तो हो चुका है आपने कुछ बहुत ही अच्छा कहा है। आपके हृदय से निकला था और इसका लाभ उठाइए।” तो मैंने वह भेज दी — और मैंने कहा, "इसमें बस कुछ पिक्चर लगाकर चला दें” क्योंकि मैं दोबारा नहीं कह पाऊंगा; ऐसा नहीं कि स्क्रिप्ट से पढ़ रहा हूँ; यह सब इसी वक्त कहता हूं मैं।

और यह हमेशा मुझे एक कहानी याद दिलाता है, महाभारत के बाद महाभारत की महाजंग खत्म हुई। कृष्ण बात करने गए अर्जुन के साथ और कहा "मुझे बताओ सब ठीक है!"

तो अर्जुन ने कहा — "जी हां! सबकुछ ठीक है। वनवास में रहने से तो अच्छा ही है जंगल में रहने से, मैं अब महल में हूं और सबकुछ ठीक है।”

और फिर कृष्ण बोले — "तो मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूं ?"

तो अर्जुन ने कहा — "अब असल में वह जो ज्ञान आपने मुझे युद्धभूमि में दिया था, मैं लगभग भूल गया हूं और वह काफी मुश्किल समय था। तो क्या आप मुझे वह सब दोबारा बता सकते हैं ?”

और कृष्ण बोले, “जानते हो! उसी वक्त मेरे मन में आया था वह सब! मुझे नहीं पता अगर मैं वह याद कर पाऊंगा की नहीं” — लेकिन जो भी उन्होंने अर्जुन के लिए उस ज्ञान का एक अंश उन्होंने अर्जुन को बता दिया और वह कहलाती है "अनुगीता” — “छोटी गीता!"

तो ऐसी बात है जैसे कि “मैं इस फुटेज को फेंक दूं ?” या मैंने जो कहा था वह अच्छा था; मेरे हृदय से गया था; बहुत ही शुद्ध था, तो उसी वक्त आया था और मैंने रख लिया उसको। मैं शुक्रगुज़ार हूं कि वह हुआ। मैं खुश नहीं कि मैंने गलती कर दी। और कैमरे से गलती हुई और फोन से भी यह हुआ पर मुझे खुशी है — उस बात पर नहीं जो होनी थी, पर नहीं हुई। पर मैं उसके लिए खुश नहीं हूं, मैं खुश हूं कि हृदय से क्या निकला या जो महसूस किया और आपसे सचेत जीवन की बात कर पाया। क्योंकि “सचेतना से जीना” इसी का नाम है।

सबकुछ देखना जो आसपास है इस दुनिया में है जो भी हो रहा है वह समझना। क्योंकि आप से मतलब है आपके अस्तित्व से वह जुड़ा हुआ है, क्योंकि जो आप देखते हैं, अपनी आंखों से देखते हैं, जो देखते हैं अपने दृष्टिकोण से देखते हैं जो भी आपके साथ हुआ है वह सबकुछ आपके नज़रिये का हिस्सा बन जाता है।

अब कोई हमेशा पहाड़ ही देखता हो, तो वह पहाड़ को देखकर ज्यादा खुश नहीं होंगे। कोई ऐसा जो पहाड़ नहीं देखता हो, वह समुद्र के किनारे रहता हो वह पहाड़ को देखकर बहुत खुश होते हैं, जैसे कि "वाह! देखो यह पहाड़ है वहां पर!" और इसके विपरीत कोई ऐसा जो समुद्र के पास रहता है और वह कहता है कि "अच्छा यह रहा समुद्र!" और कोई जो समुद्र के पास नहीं रहता है या फिर वह रेगिस्तान में रहता है और वह समुद्र देखे तो कहे, वाह! यह देखो समुद्र!"

सबका अलग नज़रिया होता है। हर कोई बात को समझने में बिलकुल अलग होता है और इसलिए यह जीवन एक जैसा नहीं होता। यह बहुत-बहुत भिन्न है। आप कैसे समझते हैं, आप कैसे देखते हैं!

तो आसान है जैसे कि — एक बार मैं जेल गया था और यह ऑस्ट्रेलिया में था, वॉल्सटन जेल में और वहां के कैदी उनमें से एक, जब सवाल-जवाब का वक्त आया तो उसने कहा कि "आपको कैसे पता आप तो जेल में रहते नहीं हैं। आप क्या जानते हैं इसके बारे में!"

और उसके बारे में मैं काफी सोचता हूं और जैसे कि “हां जीवन में उसका नज़रिया, आजादी क्या है इन सभी बातों के साथ मुझसे बिल्कुल अलग होगा।” पर ऐसा ही है और मैं सबकुछ एक जैसा करने की कोशिश नहीं कर रहा। मैं नहीं कहता यह सब ऐसा होना चाहिए, जो तज़ुर्बा आपको जीवन में मिला है वैसा ही बाकियों को मिलेगा। नहीं! वह अलग होगा और इसलिए क्योंकि वह अलग है। कृतज्ञता भी अलग होगी सबके लिए हर व्यक्ति का धन्यवाद देने का तरीका अलग ही होगा — क्योंकि तज़ुर्बा अलग-अलग है।

तो अगर आप सचेत जीवन जीते हैं, आपको खुद को जानने का महत्व पता चल जाएगा और फिर जब खुद को जान जाएंगे और जीवन सचेत ढंग से जीयेंगे सबकुछ अलग होगा। आपकी कृतज्ञता अलग होगी, क्योंकि अब आप उसे अलग ढंग से देखते हैं। आप उसे पहले की भांति नहीं देख रहे और वह कृतज्ञता एक फल की तरह है जो एक अच्छा पेड़ उसे उगाता है। सचेत जीवन एक फूल की तरह है और आपका अस्तित्व एक सुंदर से पेड़ की तरह है — और यह फलता है और फिर जब सचेत जीवन जीयेंगे आप एक उद्देश्य पूरा कर पाएंगे और अपने आपको जानने का उद्देश्य पूरा होगा और जब आप खुद को जानेंगे बहुत ज्यादा कृतज्ञता आएगी और वही है फल और फिर आप फल को साझा करेंगे। आप कृतज्ञता साझा करेंगे आप जिसके लिए कृतज्ञ हैं!

तो क्या आप कोरोना वायरस के लिए शुक्रगुज़ार हैं — मुझे नहीं लगता, मुझे नहीं लगता कोई भी इसके लिए धन्यवाद दे रहा है। पर, आप किसी और चीज के लिए कृतज्ञ हो सकते हैं — और वह है कि आपके पास मौका है, आपके पास एक संभावना है, सोचने की, समझने की, बताने की, महसूस करने, और देखने की।

और देखिए — यही जरूरी है कि आप यह कर सकते हैं और यह कृतज्ञता कितनी ज्यादा जरूरी है ? क्योंकि देखिए “कृतज्ञता” का क्या मतलब होता है — कृतज्ञता का मतलब आप उस फल को लेते हैं। आपका हृदय भरा हुआ है। आप अभिव्यक्त करते हैं; महसूस कर सकते हैं; आप समझ सकते हैं और इसलिए कृतज्ञता इतनी अहम है, क्योंकि कृतज्ञता के बिना कृतज्ञता सेहत मापने का एक तरीका है। अगर आप देखें, अगर आप वह फल लेते हैं — "वाह! अच्छा है, बहुत अच्छा।” सेहतमंद हो जाएंगे। और अगर नहीं तो कुछ कमी हो गई है कुछ ठीक नहीं है; शायद सराहना नहीं है। यहां पर शायद समझते नहीं खुद को जानने का मतलब। शायद आप खुद को नहीं जानते — और खुद को जानने की अहमियत क्योंकि मैं देख सकता हूं कि घर पर बंद होने से और आप बाहर नहीं जा रहे दूसरों से दूर हैं क्यों और हम “सामाजिक जंतु” तो हैं ही। ओके! आप टीवी देख सकते हैं, आप एक हद तक ही देख सकते हैं। लेकिन अभी या बाद में यहां होंगे बस आप और आप ही — सिर्फ आप!

मैं टीवी को देख रहा था, जब किसी ने कहा कि "ओह! एक व्यक्ति था एक देश के अंदर और उसे जेल में डाल दिया, बीवी बच्चों के साथ और वह भी तीन दिनों के लिए और चौथे दिन वह भाग गया।" वह यह झेल नहीं पाया। पर, जब आप झेल नहीं पाते, सच में वह झेल नहीं सकते जो सच में आपके ही अंदर है, वरना अगर खुद से खुश हैं आप संतुष्ट हो सकते हैं काफी हद तक किसी भी स्थिति में। लेकिन जब खुद से संतुष्ट नहीं होते फर्क़ नहीं पड़ता कि किस परिस्थिति में हैं!

आप असंतुष्टि में ही रहेंगे और खुद को जानना बस इतना ही है। जीवन को सचेतना से जीना जरूरी है, क्योंकि देख पायें, आप सोच पायें तोहफे को समझना; तोहफे को लेना जो आपको मिला है यही तो है सचेत जीवन में — जैसे मैं बोलता हूं पर हां, जो भी, आपके भीतर जो भी है, वह लें ताकि अस्तित्व बड़ा हो सके “जिंदा रहने में।”

और अगर आप यह कर पाते हैं, तो “वाह!” आप सच में समझ लेंगे कि मतलब क्या है इस सबका, इस सबका — आप देखिए कभी-कभी “यह अच्छे फोटोग्राफर हैं” और यह व्यक्ति अच्छा फोटोग्राफर क्यों है ? क्योंकि जो भी होता है वह उसे असल में पकड़ लेते हैं। वह असल में कहानी को दिखा पाते हैं। क्या आपने अपनी कहानी बना ली ? क्या आपने अस्तित्व को थाम लिया ? क्या आप यहां होने का मतलब समझ पाए ? और शायद हर रोज के काम में सभी चीजें जो जीवन में चलती हैं हम सब नहीं समझ पाते। क्योंकि हम ऐसे सोचने में व्यस्त हैं, लेकिन आपके पास एक मौका है उन सभी व्यस्त रखने वाली बातों को ना करने का और बस कुछ और करने का। इसके विपरीत कुछ सोचने का वक्त, जानने का, ध्यान लगाने का, समझने का और इस अस्तित्व की अहमियत को समझना; जीवन में खुशी की अहमियत को जानना; जीवन में स्पष्टता होने की अहमियत को समझना; एक भरा हुआ हृदय होने की अहमियत; जीवन में शांति होने की अहमियत; वह भावना होने की अहमियत जिसमें लगे कि आप पूर्ण हो गए हैं। हर वह पल जब आप जीवित हैं आप उसका पूरा लाभ उठा रहे हैं — इस तोहफे का लाभ! और यह — जब सबकुछ साथ में आता है, जब सारी उलझन खत्म होती है छोटे-छोटे तरीके से जब साथ आते हैं फिर आती है कृतज्ञता और यह बात कि आप अस्तित्व के लिए धन्यवाद दें कि आप जीवन के लिए धन्यवाद कहें — वाह! कितनी अच्छी है इससे बेहतर और क्या हो सकता है ? हर एक दिन जो आता है उसके लिए धन्यवाद देना! इससे बेहतर क्या हो सकता है ? हर घंटे के लिए आप शुक्रगुजार हों! इससे बेहतर और क्या हो सकता है! हर स्वांस के साथ ताकि आप पूर्ण होना महसूस कर सकें, भरे हुए, इससे बेहतर क्या हो सकता है ?

तो मैं और कुछ नहीं सोच सकता जो इससे बेहतर हो, क्योंकि वह करिश्मा, सराहना वह और बढ़ जाती है। महानता, सराहना के बिना छुपी हुई रहती है, अधूरी रहती है और हालांकि यह सुंदर है, हालांकि यह कमाल की है यह हमेशा रहेगी। हर सितारा, रेत का हर टुकड़ा, इस दुनिया में सब कुछ, हर रोज सूरज का चमकना, बादल आते हैं; बारिश आती है। सूरज की रोशनी होती है; गर्मी आती है; सर्दी जाती है; सर्दी आती है। फिर पतझड़, सभी मौसम, सबकुछ और फिर — आपके मौसम, आप समझें कि आप में बहुत कुछ है; समझिये कि आप में भी एक ब्रह्मांड है। आप ब्रह्मांड की सराहना करें। आप ब्रह्मांड को देखकर, सितारों को देखकर, आप चांद को देखते हैं, आप सूरज को देखते हैं और आप अपने सूरज को देखते हैं। हृदय की रोशनी को भी अपने चांद को देखते हैं, अपने सितारों को देखते हैं, अपना ब्रह्मांड देखते हैं।

आप देखिए! वह खुशी जो हृदय में नाचती है, वह संगीत जो भीतर चलता रहता है; वह नृत्य जो आप में चलता है; वह खेल जो भीतर चलता है; वह पिक्चर जो चलती है, जिसमें आप ही सितारे हैं — वाह!

जैसा कि बाहर है और हमारे पास कैमरा है और साथ ही स्टीरियो उपकरण है और हम सबकुछ रख लेना चाहते हैं। यह कमाल की रिकॉर्डिंग है और हम सुनना चाहते हैं उसे फिर से और फिर से…

पर, फिर भी आप ही अपना कैमरा हैं, आप भीतर के ब्रह्मांड का इकलौता कैमरा हैं। और अगर आप समझ पाएं, अगर आप सराहना करें फिर कृतज्ञता आएगी। जैसे कि आप सुंदर संगीत सुनते हैं और नृत्य करना चाहते हैं और उसे पसंद करते हैं आप हंसते हैं, उसमें खो जाते हैं और अच्छा महसूस करते हैं — तो जब आप अंदरूनी ब्रह्मांड को समझेंगे तो ऐसा ही होगा। यही तो है कृतज्ञता — यह वहां सब जीवित हो जाता है। और मैं कहता जाऊंगा शायद लेकिन मुद्दा है कि अगर आपने तज़ुर्बा किया है; अगर आपने कभी भी तज़ुर्बा किया है, चाहे छोटा ही सही फिर आप जानते हैं मैं क्या कह रहा हूं! अगर नहीं किया तो यह समझ नहीं आएगा — फिर इस बात का कोई मतलब नहीं है।

जो भी, मुझे उम्मीद है आपने premrawat.com पर सवाल भेजे हैं — और बिल्कुल अगर आप टाइमलेस टुडे पर सवाल भेजना चाहें। वह भी ठीक है, वह मुझे मिल जाएंगे।

तो मुझे उन सवालों का इंतजार है। कई ऐसे सवाल हैं जो मुझे भेजे जा चुके हैं, लेकिन मैंने सोचा दोबारा, यह अनोखा समय है और इस परिस्थिति में लोगों के अलग-अलग सवाल हो सकते हैं, तो मैं अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से उनका जवाब देना चाहता हूं।

तो सबसे अहम बात जो होगी दोस्तों कि, सेहतमंद रहें — आराम से रहें और सुरक्षित यह सबसे जरूरी है! जी हां!

तो बहुत-बहुत धन्यवाद — आपसे फिर मिलूंगा!

लॉकडाउन 57 00:16:27 लॉकडाउन 57 Video Duration : 00:16:27 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (21 मई, 2020)

प्रेम रावत:

तो जो बात मैं कहना चाहता हूं कि यहां आप इस जेल में हैं और मैं कई जेलों में जाता हूं अपनी बात कहने के लिए और मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि आप लोगों के ध्यान में सबेरे से लेकर शाम तक एक ही बात रहती है — और वो यह है कि ‘‘यहां से कैसे निकलें ?"

क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं ? शर्माइए नहीं आप! मेरे को मालूम है। पर इस जेल से निकलने में मैं आपकी मदद नहीं कर सकता, पर एक और जेल है, जिसमें सभी लोग बंद हैं। और वो जेल ऐसी है कि इससे भी खतरनाक। यहां से एक दिन न एक दिन तो आपको जाना है, पर एक ऐसी जेल है, जिसके ताले इतने बड़े हैं कि उनको खोलना बहुत मुश्किल है। और उस जेल से — वो, जो दूसरी जेल है, उससे मैं आपको बाहर निकाल सकता हूं। और यही मैं करता हूं। और उस जेल में सब बंद हैं। जो अपने को स्वतंत्र भी समझते हैं, वो भी उस जेल में बंद हैं। और वो क्या जेल है ? वो ऐसी जेल है, जिसमें मनुष्य अपनी अच्छाई को नहीं, पर अपनी बुराई को आगे लेता है। शांति को नहीं, वो अशांति का साथ देता है। प्रकाश का नहीं, वो अंधेरे का साथ देता है। और इसी वजह से जहां भी आप देख लो, इस संसार के अंदर हाहाकार मची हुई है। जहां भी आप देख लो, इस संसार के अंदर लोग एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं। आखिर होगा क्या ? एक तरफ हमको यह मनुष्य शरीर मिला है। एक तरफ हमको यह मनुष्य शरीर मिला है और यह क्या है ?

घट घट मोरा सांइयां, सूनी सेज न कोय।

बलिहारी उस घट की, जिस घट परगट होय।।

ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिसके घट में वो सांई न बसा हो! ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है इस संसार के अंदर! बस, इतनी बात है कि — बलिहारी उस घट की, जिस घट में उस सांई को प्रगट होने का मौका मिला है।

आपने अपने जीवन में — या कोई भी हो यहां। ऐसा आप क्या करते हैं एक दिन में, ऐसा आप क्या करते हैं अपने जीवन में, जिससे वो अच्छाई, वो सच्चाई जो आपके अंदर व्यापक है, वो बाहर उभरकर के आए ?

भीखा भूखा कोई नहीं, सबकी गठरी लाल।

गठरी खोलना भूल गए, इस विधि भए कंगाल।।

कितने लोग हैं यहां, जो अपनी तकदीर को कोसते हैं ? ‘‘क्या हो गया मेरे साथ ?’’ जेल में ही नहीं, जेल से बाहर भी बहुत हैं, जो अपनी तकदीर को दोष दे रहे हैं कि ‘‘मेरे साथ क्या हो रहा है ?’’ अपने को अभागा महसूस करते हैं। कोई ऐसा नहीं है, जो अपने को अभागा महसूस न करता हो। चाहे थोड़े ही क्षण के लिए करता हो, पर अपने को अभागा महसूस करता है। बच्चा फेल हो जाता है। उसके मां-बाप उसको कोसते हैं और वह अपने को अभागा मानना शुरू कर देता है। किसी की नौकरी निकल जाती है, वह अपने भाग्य को कोसता है। किसी से गलती हो जाती है, वह अपने भाग्य को कोसता है। और एक तरफ तो यह बात है कि मनुष्य अपने भाग्य को कोस रहा है और दूसरी तरफ कबीरदास जी कहते हैं कि —

भीखा भूखा कोई नहीं, सबकी गठरी लाल।

गठरी खोलना भूल गए, इस विधि भए कंगाल।।

किस गठरी की बात हो रही है ? क्या भूल गए हम ऐसी चीज ?

तो सबसे पहले क्या भूल जाते हैं हम कि हम मनुष्य हैं।

तुम जब इस संसार के अंदर आए तो कैसे आए ? तुम किसी भी धर्म के हो, तुमने अपने जीवन में कुछ भी किया हो, पर आए कैसे इस संसार के अंदर ? पहली स्वांस — पहली स्वांस जो तुमने ली, वो क्या ली ? बाहर से अंदर! पहली जो स्वांस तुमने ली, वो ली, बाहर से अंदर! और जब तुम इस दुनिया से जाओगे, जो तुम्हारी आखिरी स्वांस होगी, वो क्या होगी ? अंदर से बाहर! अंदर से बाहर! बाहर से अंदर नहीं, अंदर से बाहर! आए कैसे थे ? अंदर से बाहर नहीं, बाहर से अंदर वो स्वांस ली और जब जाओगे तो जो अंदर से बाहर आएगी, वो तुम्हारी आखिरी स्वांस होगी।

जब तुम आए थे संसार के अंदर, किसी ने — एक समय था, जिसमें किसी ने ये नहीं पूछा — तुम लड़का हो, लड़की हो, सिर्फ एक ध्यान था — स्वांस ले रहे हो या नहीं ले रहे हो ? सिर्फ! उसके बाद — लड़का है, लड़की है। ये है, वो है! स्वांस ले रहे हो या नहीं ले रहे हो। और जब तुम्हारा अंतिम समय आएगा तो डॉक्टर क्या देखेगा ? स्वांस ले रहे हो या नहीं ले रहे हो ? कभी ख्याल गया है इसके ऊपर ? कभी ख्याल गया है इसके ऊपर ? नहीं। अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ना है। मेरी क्या समस्या है ? ‘‘आज यह समस्या है। आज यह समस्या है। आज यह समस्या है, आज यह समस्या है। मेरे साथ यह बुरा हुआ, मेरे साथ यह बुरा हुआ, मेरे साथ यह बुरा हुआ। अब मैं यह कैसे करूंगा ? अब मैं यह कैसे करूंगा ? अब मैं यह कैसे करूंगा ?’’ और यह जो स्वांस आ रहा है, जा रहा है, इसके ऊपर एक सेकेंड का ध्यान नहीं है। और इसके बिना तुम हो क्या ?

यह जो जीवन मिला है, आज जो तुम जीवित हो, इसका क्या मायने है तुम्हारे जीवन के अंदर ? आज जो तुम जीवित हो! फिर मैं एक कबीरदास जी का भजन है, मुझे बहुत अच्छा लगता है यह भजन। और आप ने हो सकता है, सुना हो कि —

पानी में मीन पियासी, मोहे सुन सुन आवे हाँसी।

मीन का मतलब है — मछली! पानी का मतलब तो आप लोग जानते हैं।

पानी में मीन पियासी, मोहे सुन सुन आवे हाँसी।

वो मीन है कौन ? वो मीन तुम हो! हम सब लोग हैं वो मीन। वो मछली, जो पानी में रहते हुए भी प्यासी है। पानी में रहते हुए भी प्यासी है और कबीरदास जी कहते हैं — यह सुनकर के मेरे को हँसी आती है।

आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।

आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।।

मृग नाभि में है कस्तूरी, बन बन फिरै उदासी।।

सुनिए बात! आत्मज्ञान! अब जिसने अपने आपको नहीं समझा, वो भाग रहा है। कुछ कर रहा है, कुछ कर रहा है, कुछ कर रहा है!

क्या मथुरा, क्या काशी। मृग नाभि में है कस्तूरी

उस कस्तूरी को वो खोज रहा है।

मृग नाभि में है कस्तूरी!

सबसे बड़ी बात क्या ? बन-बन — हर एक-एक वन से लेकर, एक जंगल से लेकर दूसरे जंगल तक। बन बन फिरै — कैसे ? उदासी! उदास होकर के! यही नहीं बात है कि वो खोज रहा है। नहीं! वो उदास भी है, क्योंकि जिस चीज को वो खोज रहा है, वो मिल नहीं रही है। वो मिल नहीं रही है। और जब मनुष्य अपने आपको नहीं समझता है — जब मनुष्य अपने आपको नहीं समझता है तो वो भी इस संसार में रहते हुए भी उदास है, क्योंकि जो है उसके पास, वो नहीं जानता है कि वो कहां है, क्या है ?

जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।

तालाब के बीच में कमल का फूल, उसमें कलियां होती हैं।

जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।

उसमें भौरें घूमते रहते हैं उस कमल के आसपास — भौं, भौं, भौं, भौं! भौं, भौं, भौं, भौं करके!

सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।

जैसे वो भौरें कमल के फूल के पास घूमते रहते हैं, भँवरते रहते हैं, वैसे ही तुम्हारा मन तीनों लोकों में जाता रहता है, भ्रमण करता रहता है — कभी कहीं, कभी कहीं, कभी कहीं, कभी कहीं।

कभी कहीं भाग रहा है, कभी कहीं भाग रहा है, कभी कहीं भाग रहा है, कभी कहीं भाग रहा है। तो —

विधि, हरि, हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सब मुनिजन जिसका ध्यान करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिसका ध्यान करते हैं। यह बात पहले कभी नहीं सुनी होगी आपने। जिसका सब ध्यान करते हैं — ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

.....मुनिजन सहस अट्ठासी।

सोई हंस तेरे घट माहीं —

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।

ये क्या कह दिया ? जिसका ध्यान ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी करते हैं, जो अलख पुरुष है, जो अविनाशी है, वो तुम्हारे घट में विराजमान है। कबीरदास जी तो यही कह रहे हैं।

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।

समझे आप इस बात को ? मतलब, वो कह रहे हैं कि वो जो चीज है, जिसका सब ध्यान करते हैं, वो जो अलख पुरुष है, वो — जिसका सब ध्यान करते हैं, वो आपके घट में मौजूद है। आपके अंदर मौजूद है। समझ में आई बात ?

तो आप अपने को अभागा समझते हैं ? मैं पूछता हूं, जिसके अंदर वो विराजमान है — जबतक आप जीवित हैं, जिसके अंदर वो विराजमान है, आपको कमी किस चीज की है ? पर नहीं जानते न ? नहीं जानते हैं उसको ? नहीं जानते इस स्वांस की कीमत ? नहीं जानते कि क्या मिला है ? नहीं जानते कि यह मनुष्य शरीर जो मिला है, इसका सच में सदुपयोग कैसे किया जाए, क्योंकि यह कितनी सुंदर चीज है।

अगर जो बात मैं कह रहा हूं, यह समझे कि जो हो गया, सो हो गया, पर आगे क्या करना है ? यह आपके ऊपर निर्भर है। आप स्वर्ग बना सकते हैं या नरक बना सकते हैं। यह बात सिर्फ जेल की नहीं है। यह बात तो परिवार की भी है। परिवार में माता, बहन, पति, बेटे, बच्चे, जो कुछ भी हैं, ये भी नरक बना सकते हैं, वो भी स्वर्ग बना सकते हैं। अगर हम चाहें तो सारे संसार के अंदर स्वर्ग स्थापित कर सकते हैं। तो यही मैं आपसे कहना चाहता था। मेरे को आशा है कि आप कम से कम इस बात पर विचार करेंगे और अपने जीवन को सफल करेंगे।

लॉकडाउन 49 00:19:58 लॉकडाउन 49 Video Duration : 00:19:58 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (13 मई, 2020)

ऐंकर : सर! आपका बहुत-बहुत स्वागत है 92.7 बिग एफ.एम. में।

प्रेम रावत जी : बहुत मेरे को खुशी है कि ये मेरे को मौका मिला कि आपके जो श्रोता हैं, उन तक मैं अपनी बात पहुंचा सकूं।

ऐंकर : सर! आपकी जिंदगी कैसी रही है ?

प्रेम रावत जी : मेरी जिंदगी जैसी सबकी है — कभी अच्छा है, कभी बुरा है! कभी ऊपर जाती है, कभी नीचे जाती है! कुछ ये होता है; कभी कुछ होता है, कभी कुछ होता है, कभी कुछ होता है। परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि मेरे अंदर शांति नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि जब अच्छा भी हो रहा है, तब भी मेरे अंदर शांति है; जब बुरा भी हो रहा है, तब भी मेरे अंदर शांति है। अगर मैं अपनी — अपनी तरफ झांकना, अपने घट में झांकना न भूलूं तो उस दृश्य से मेरे को वंचित नहीं होना पड़ेगा। ये तो मैं जानता हूं, ये तो मैं समझता हूं। परंतु इसको — इसका अभ्यास करने के लिए कोई आसान काम नहीं है। इसका अभ्यास करना पड़ता है।

ऐंकर : सर! आप किसके करीब बहुत ज्यादा हैं और क्यों ?

प्रेम रावत जी : जो मेरे अंदर स्थित शक्ति है, मैं तो यही समझता हूं कि अगर मेरा कोई दोस्त है तो वो है। क्योंकि स्कूल में जो मेरे दोस्त थे, कई तो गुजर गए और उनसे हमेशा मिलना नहीं होता है, जैसे स्कूल में थे। उसके बाद जो दोस्त थे, वो भी इधर-उधर हो गए।

तो कौन है ऐसा दोस्त मेरा, जो आज भी मेरे साथ है और उस समय तक मेरे साथ रहेगा, जबतक मैं आखिरी स्वांस न लूं ? तो एक अंदर है दोस्त मेरा। और मैं उसी के करीब होना चाहता हूं और कोशिश कर रहा हूं। अभी भी कोशिश कर रहा हूं। क्योंकि कई बार आता हूं और कई बार अपनी वजह से — क्योंकि जिस बात को मैं नहीं समझता हूं, उसी वजह से मैं दूर भी चला जाता हूं। जब दूर चला जाता हूं तो मेरे को लगता है कि ‘‘नहीं! मेरे को पास रहना चाहिए!’’ जब पास रहता हूं तो मेरे को ये याद रखना है कि मैं कुछ भी करूं, यहां से दूर न होऊं!

ऐंकर : सर! जिंदगी में, लाइफ में मतलब, प्रॉब्लम्स, चैलेंजेज़ आते रहते हैं।

प्रेम रावत जी : बिल्कुल आते हैं।

ऐंकर : सर! इनका सामना एक्चुअली कैसे करना चाहिए ?

प्रेम रावत जी : देखिए! ये चैलेंज कहीं आसमान से नहीं आते हैं। ये हमारी करनी के फल हैं। ये हम ही करते हैं, इनका बीज हम ही बोते हैं। तो हम नहीं समझते हैं कि बीज बोते हैं।

अब देखिए! मनुष्य जो है, आज का जो मनुष्य है, वो चाहता है कि भगवान अपने कानूनों को उसके लिए तोड़े!

ऐंकर : अपने कानूनों को उसके लिए तोड़े ?

प्रेम रावत जी : हां! जो भगवान ने प्रकृति के कानून बनाए हुए हैं — मनुष्य चाहता है कि भगवान उस व्यक्ति के लिए उन कानूनों को तोड़ दे! तो मनुष्य समझता है कि मेरे पास पैसा नहीं है। मेरे को पैसा चाहिए! भगवान से जाकर प्रार्थना करता है, ‘‘हे भगवान! मेरे को खूब सारा पैसा दे दे!’’

अब कहां से ? मतलब, किस काम के लिए ? काहे के लिए ? क्या है ? कहां से आएगा ? नहीं! ‘‘दे दे! दे दे! वो तोड़ दे!’’

अब देखिए! मैं सोच रहा था एक दिन कि जब जादूगर लोग कई बार जादू दिखाते हैं — तो कोई कागज लेता है, उसको मशीन में डालता है तो उसमें से सौ का नोट निकल आता है और सब लोग ताली बजाते हैं।

देखिए! हुआ ये है कि आपको बेवकूफ बनाया गया है। सौ प्रतिशत आपको बेवकूफ बनाया गया है। परंतु इस क़दर बेवकूफ बनाया गया है कि आपको अच्छा लगा। {हँसते हुए} तो मनुष्य जब देखता है कि प्रकृति के कानूनों को तोड़ा जा रहा है तो उसको लगता है कि ये चमत्कार है! ये चमत्कार है!

परंतु अगर भगवान राम को देखा जाए तो भगवान राम ने कानून नहीं तोड़े। मां से जन्म लिया। अब आपको — देखिए! छोटा बच्चा जब चलने की कोशिश करता है तो गिरता भी है, दर्द भी होता है, रोता भी है! तो अगर भगवान को कानून तोड़ने का ही कोई रिवाज है तो वो सारा बायपास कर देते! पेड़ से आ जाते! कहीं और से आ जाते, ताकि न मां की दिक्कत रहे, न चलने की दिक्कत रहे। नहीं! परंतु ऐसा नहीं किया। भगवान कृष्ण ने भी ऐसा नहीं किया। परंतु मनुष्य चाहता है कि वो किसी तरीके से प्रकृति के जो कानून, जो भगवान के बनाए हुए हैं, भगवान ही उनको तोड़ दे, ये उसकी कृपा हुई! परंतु ये उसकी कृपा नहीं है। कृपा उसकी ये है कि आपको जीवन मिला है!

आप क्या थे ? देखिए! मैं कई बार ये कहता हूं कि दो दीवालें हैं। एक दीवाल से आप आए, आपका जो जन्म हुआ और ये बीच में आपकी जिंदगी है और एक दीवाल दूसरी है, उससे जाना पड़ेगा। कहां जाएंगे आप ? क्या थे आप ? अगर वैज्ञानिकों की तरफ देखें, जो वैज्ञानिक लोग हैं, तो उनका कहना है कि आप धूल थे — डस्ट! आप धूल थे, अब आप धूल नहीं हो! हो, परंतु अभी धूल नहीं लगते हो! और जब आप उस दीवाल से जाएंगे तो फिर आप धूल बन जाएंगे।

तो मैं लोगों से कहता हूं कि अगर ये सच है तो ये आपका जो जीवन है, ये एक आपका vacation है, छुट्टी है धूल बनने से। धूल ही आपको रहना है करोड़ो-करोड़ों सालों तक! वैज्ञानिकों का यही कहना है। और इस संसार के अंदर — अभी मैं एक मैनेजिंग यूनिवर्सिटी में था। तो वहां यही बात मैंने कही तो वहां पढ़े-लिखे लड़के थे तो उन्होंने कहा कि हां! वैज्ञानिकों का तो यही कहना है कि पहले भी धूल थे। अब धूल नहीं हैं। फिर धूल बनेंगे। और सारा संसार जो है, धूल का बना है। पृथ्वी धूल की बनी हुई है। सूरज भी धूल का बना हुआ है। चंद्रमा भी धूल का बना हुआ है। सारे jupiters, planets, sun, stars, सबकुछ धूल, धूल, धूल, धूल, धूल!

तो ये आपका एक होली-डे है धूल बनने से। तो मेरा प्रश्न ये है कि ‘‘ये होली-डे कैसा चल रहा है आपका ?’’

ऐंकर : फर्स्ट क्लास।

प्रेम रावत जी : क्योंकि अगर दुविधा में हैं आप, परेशान हो रहे हैं — ये परेशानी है, वो परेशानी है, तो ये कोई होली-डे नहीं हुआ। क्योंकि ये होली-डे है तब, जब आप इसमें relaxed हैं। जब इसको आप इंज्वॉय कर रहे हैं। हर एक दिन को इंज्वॉय कर रहे हैं, तब ये बनेगा होली-डे! और ये सबसे बड़ी बात है!

ऐंकर : यस सर! सर! चैलेंजेज़, जैसे कि मैंने अभी पहले भी कहा कि सभी की लाइफ में आते हैं तो आपकी भी लाइफ में चैलेंजेज जरूर आए होंगे।

प्रेम रावत जी : आते हैं!

ऐंकर : आपने उनका सामना कैसे किया, या कैसे करते हैं सर ?

प्रेम रावत जी : देखिए! चैलेंजेज जब आते हैं तो उसका ये मतलब नहीं है कि हर एक चैलेंज में आप सक्सेसफुल होंगे। पर आप कुछ कर सकते हैं। आप हिम्मत रखिए, धीरज रखिए और अपने दिमाग का प्रयोग कीजिए। अपने डर का नहीं, अपने दिमाग का प्रयोग कीजिए। हिम्मत से आगे चलिए। आप मनुष्य हैं! हिम्मत से आगे चलिए। आपके पास हिम्मत है। ये आपकी ताकत है! अगर आप अपने आपको जानेंगे तो आपको पता लगेगा कि आपकी कमजोरियां क्या हैं और आपको ये पता लगेगा कि आपकी ताकतें क्या हैं ? अपने आपको जानना, क्यों ? इसीलिए तो जरूरी बन जाता है! क्योंकि हमको नहीं मालूम कि हमारी कमजोरी क्या है, हमारी ताकतें क्या हैं ? और अगर ताकत से चलेंगे तो किसी भी समस्या का — चैलेंज का सामना किया जा सकता है।

अब देखिए! एक बार मैं इंग्लैंड में था। ट्रैफिक बहुत हो गया है अब लंदन में। तो मैं बैठा हुआ था कार में और मैंने देखा कि एक व्यक्ति, जो visually challenged था, देख नहीं सकता था बेचारा। तो वो अपनी छड़ी लिए हुए और जा रहा है और काफी तेज चल रहा था वो! कार से भी तेज! कार अटकी हुई थी ट्रैफिक में। फिर थोड़ी देर के बाद कार चलने लगी तो उसको ओवरटेक किया, फिर कार रुक गई तो फिर वो आया। फिर मैं देख रहा था — मैं देख रहा था उसकी तरफ कि वो बड़ी अच्छी तरीके से जा रहा है और बड़ी तेज जा रहा है! मैं उसकी तरफ देखता रहा, देखता रहा, देखता रहा काफी समय तक। तब मेरे को लगा — अच्छा! ये क्या कर रहा है ?

ये अपनी छड़ी से साफ रास्ते को देख रहा है। कहां रास्ता साफ है ? वो ये नहीं देख रहा है कि उधर खंभा है, उधर ये बिल्डिंग है, उधर ये लगा हुआ है, उधर ये लगा हुआ है! है न ? वो सिर्फ ये देख रहा है कि कहां रास्ता साफ है ? और कितना साफ है कि वो उससे गुजर जाए। बस!

ऐंकर : बाकी चीजों को वो देख ही नहीं रहा है।

प्रेम रावत जी : देख ही नहीं रहा है। पर हम क्या करते हैं ? हम और चीजों को देखते हैं। हम पहाड़ को देखते हैं। उस रास्ते को नहीं देखते हैं, जो पहाड़ के साथ है। अगर पहाड़ है तो कहीं न कहीं नदी होगी और नदी रास्ता बनाएगी और आप उस रास्ते से कहीं भी जा सकते हैं। तो जरा अपना focus shift कीजिए, आप obstacles को नहीं देखिए! आप clearpath को देखिए!

ऐंकर : परफेक्ट सर! सर! आपकी जिंदगी का कोई ऐसा incident, जिसने आपकी लाइफ को चेंज कर दिया हो ?

ऐंकर : परफेक्ट सर! सर! आपकी जिंदगी का कोई ऐसा incident, जिसने आपकी लाइफ को चेंज कर दिया हो ?

प्रेम रावत जी : हां! एक तो था, पर मेरे को याद नहीं है वो। पर मैं जानता हूं कि वो हुआ है जब मैंने पहला स्वांस लिया। मेरी सारी जिंदगी को बदल दिया। {हँसने लगते हैं}

ऐंकर : अरे सर! {हँसने लगते हैं}

प्रेम रावत जी : मेरे को जीवित कर दिया! उससे पहले मैं क्या था ? अब, मैं स्वांस तो ले नहीं रहा था! जब मैं बाहर आया तो किसी न किसी तरीके से — या तो मेरे को उल्टा पकड़ा होगा या कुछ किया होगा, परंतु मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है, क्योंकि मैंने देखा है बच्चों का जन्म होते हुए, मेरे अपने, कि उस समय, जब बच्चा बाहर आता है तो ख्याल एक ही चीज पर जाता है। ये नहीं कि वो लड़का है या लड़की है; ये कैसा है, कैसा नहीं है! सिर्फ एक चीज पर जाता है — स्वांस ले रहा है या नहीं ?

चाहे वो किसी भी धर्म का हो, किसी भी मजहब का हो; अमीर हो, गरीब हो — स्वांस ले रहा है या नहीं ? और जैसे ही — अगर वो स्वांस नहीं ले रहा है तो डॉक्टर उसको उल्टा पकड़ता है और एक देता है पीछे से, जबतक वो स्वांस लेना शुरू न कर दे। और जब वो स्वांस लेना शुरू करता है तो वो घर आ सकता है। और अगर वो स्वांस नहीं लेगा तो वो घर नहीं आएगा। अस्पताल से ही कहीं और जाएगा। हां! जबतक वो स्वांस ले रहा है, उसके लिए — उसके चाचा होंगे, उसके मामा होंगे, उसकी मां होगी, उसके बाप होंगे, उसके भाई होंगे, उसके दोस्त होंगे, उसके दुश्मन होंगे, उसके सबकुछ होगा। और जिस दिन वो स्वांस लेना बंद कर देगा, उसको अपने ही घर से ले जाएंगे।

वहां रह नहीं सकते। ये स्वांस का चमत्कार है! और इसको नहीं समझेंगे अगर — तो यही एक चीज है, जो हुई मेरे भी जीवन के अंदर! और आज भी वो चीज मेरे अंदर आ रही है और जा रही है।

ऐंकर : राइट सर! सर! आपके हिसाब से धर्म, रिलिजन, मजहब क्या है और क्यों ?

प्रेम रावत जी : देखिए! ये लोगों की आस्था है। लोग जिस चीज में विश्वास करना चाहते हैं, ये करते हैं और इसमें कोई दिक्कत नहीं है। कई लोग हैं, जो हिन्दुस्तान में हैं, सब्जियां खाते हैं। कई लोग हैं — नॉर्थपोल की तरफ या अपर कनाडा में, जो सब्जियां नहीं खाते हैं। मतलब, सब्जी की बात है कि उसमें गरम मसाला और टमाटर का छौंक या प्याज या लहसुन या जो कुछ भी है। कई लोग हैं, जो कि प्याज-लहसुन नहीं खाते हैं। कई लोग हैं, जो फुलका खाते हैं। कई लोग हैं, जो फुलका नहीं खाते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि वो खाते ही नहीं हैं। खाते हैं। कुछ न कुछ जरूर मनुष्य को खाना है। कोई साफ पानी पीता है, कोई इतना साफ पानी नहीं पीता है। पर पानी सब पीते हैं।

आजकल हिन्दुस्तान में कई शहर हैं, जिनमें हवा बहुत contaminated है, polluted है, प्रदूषण बहुत हो गया है। और इसका ये मतलब नहीं है कि — अब कई लोग हैं, जो स्वांस लेते हैं। कई ऐसी जगह हैं, जहां हवा स्वच्छ है; कई ऐसी जगह है, जहां हवा स्वच्छ नहीं है परंतु स्वांस तो फिर भी लेना है।

तो बाहर जो कुछ भी हो रहा है, हो रहा है। धर्म हैं, लोग उन पर विश्वास करते हैं। और जहां तक मेरी बात है, तो कम से कम वो विश्वास तो कर रहे हैं कि कोई एक है! अब नाम उनके अलग-अलग हैं। अलग-अलग उनके तरीके हैं, पर बात वही है। कहीं का भी कोई हो, किसी भी धर्म का हो, जब मुसीबत आती है, भगवान का नाम लेते हैं और कोशिश करता है कि मुसीबत न आए। और ये भी उसकी इच्छा है, ये भी भगवान की तरफ से ही उसकी इच्छा है कि मुझे मुसीबतों से बचाना। कहीं भी चले जाइए आप!

तो बात उसकी नहीं है, बात मनुष्य की है। और बात ये है कि वो अपने जीवन के अंदर असली चीज, जो वो है और उसके अंदर है, उसको समझे!

ऐंकर : सर! इंसानियत की definition क्या है और क्या हो रहा है इंसानियत के लिए सर! इंसानियत के लिए क्या हो रहा है ?

प्रेम रावत जी : नहीं! इंसानियत की तो बहुत definitions हैं। एक तो ये है कि जो इंसान हैं, जो इंसानों की प्रकृति है, वो इंसानियत है! परंतु दोनों ही संभावना है। आज मनुष्य एक-दूसरे को मारने में लगा हुआ है, ठगने में लगा हुआ है। और एक-दूसरे का भला भी चाह सकता है! पर एक-दूसरे का भला नहीं चाहता है।

इंसानियत चालू कहां से होती है ? क्या आपके परिवार से नहीं होती है ? जब सबेरे-सबेरे आप उठते हैं, आपके बच्चे हैं, आपके परिवार के लोग हैं। कितनी मां हैं, जो सबसे पहला शब्द बच्चों को बोलती हैं, ‘‘लेट हो गया तू! लेट हो जाएगा! जल्दी कर!’’ मतलब, क्या मतलब जल्दी कर ? लेट हो गया!

क्या तुमको कोई खुशी नहीं है अपने बच्चे को देख के ? तो क्या आपको शर्म आती है कि आप उस खुशी को व्यक्त करें ? क्योंकि अगर छोटी-सी भी बात आप कर दें, ‘‘गुड मॉर्निंग बेटा! कैसे हो ?’’

इंसानियत यहां से चालू होती है। एक इंसान, दूसरे इंसान से इस तरीके से व्यवहार करना शुरू करे। पति! अब देखिए! कितने झंझट होते हैं पति-पत्नी में ? क्लेश होता है, डिवोर्स होता है, लड़ाइयां होती हैं!

सबेरे-सबेरे पत्नी उठती है, ‘‘ये ले आना! ये ले आना! ये ले आना!’’

‘‘ये कहां रखा है ?’’ पति बोल रहा है अपनी पत्नी से, ‘‘ये कहां रखा है ? मेरा नाश्ता कहां है ? मेरा ये नहीं है! मेरा वो नहीं है!’’

जिम्मेवारी के बोझ में मनुष्य ऐसा बदल गया है, ऐसा बदल गया है, ऐसा बदल गया है, ऐसा बदल गया है कि — आप जानवरों को देखें, वो अपने बच्चों से ज्यादा प्यार कर रहे हैं, बनिस्पत मनुष्य अपने बच्चों से, अपने परिवार से।

तो जब ऐसा माहौल बन गया है तो इंसानियत कहां रही ? कैसे जाएगी ? जिन लोगों की तरफ हम देखते हैं कि वो हमारा मार्गदर्शन करेंगे, वो ही हमको गुमराह कर रहे हैं! वो ही हमको गुमराह करने में लगे हुए हैं! आज झूठ की क्या कीमत है ? बल्कि ये कहना चाहिए कि सत्य की क्या कीमत है ? सत्य! सत्य की कीमत तो कुछ है ही नहीं! जो चाहे, जैसा चाहे, जितना झूठ बोलना चाहे, उतना झूठ बोलता है। अब उसको ये नहीं है कि इसका क्या नतीजा होगा।

तो जब ये, ऐसा माहौल हमने बना ही लिया है तो इसमें फिर इंसानियत का नाम ही कहां से आएगा ? तो इंसानियत अगर शुरू करनी है दोबारा, तो बड़ी बेसिक से शुरू करनी पड़ेगी, अपने से शुरू करनी पड़ेगी, अपने परिवार से शुरू करनी पड़ेगी, उन लोगों से, जिनसे सचमुच में प्यार है, उनसे चालू करनी पड़ेगी। तभी हम समझ पाएंगे कि दूसरे के साथ कैसा व्यहार करना चाहिए। आजकल का माहौल ये है कि जो पराया है, उसको गुड-मॉर्निंग कहने के लिए हम तैयार हैं और जो अपने हैं, उनके लिए कुछ नहीं है।

ऐंकर : सर! आजकल लोग बहुत जल्दी घबरा जाते हैं किसी भी बात को लेकर और उस घबराहट में गलत कदम भी उठा लेते हैं। तो ऐसे लोगों से आप क्या कहना चाहते हैं ?

प्रेम रावत जी : वो अपनी — अपने आपको नहीं जानते हैं! क्योंकि आपके अंदर हिम्मत है, हिम्मत से काम लीजिए। तभी सब्र आएगा! जिसके पास हिम्मत नहीं है, जिसके पास स्ट्रेंथ नहीं है, जो अपनी स्ट्रेंथ को नहीं समझता है, वो कुछ नहीं कर पाएगा। ये एक चूहे को भी मालूम है। चूहा भागने की कोशिश करता है। सबसे पहले तो भागने की कोशिश करेगा। पर अगर भाग नहीं सका वो तो उसको भी मालूम है कि उसको जो कुछ भी वो कर सकता है — वो है तो बहुत छोटा! परंतु उसको मालूम है कि जो मेरे को करना है — उसमें हिम्मत है! वो हिम्मत नहीं हारता। वो उल्टा मुंह करेगा और कोशिश करेगा, कोशिश करेगा काटने की। उसको मालूम है। उसको मालूम है! देखिए!

हित अनहित पशु पक्षिय जाना।

मानुष तन गुन ग्यान निधाना।।

अच्छा-बुरा तो सब जानते हैं। मनुष्य ही नहीं जानता है। क्योंकि क्या गुण है ? मानुष तन — ये जो शरीर मिला है — गुण, इसका गुण यही है कि वो ज्ञान प्राप्त कर सकता है। तो जब वो है ही नहीं मनुष्य के पास तो फिर ये सारे झंझट होते हैं।

लॉकडाउन 56 00:22:23 लॉकडाउन 56 Video Duration : 00:22:23 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (20 मई, 2020)

गंगटोक, सिक्किम

प्रेम रावत:

क्या तुम जानते हो कि इस धरती पर हर क्षण सूर्य उदय होता है। क्या तुम जानते हो ? और इस पृथ्वी पर हर क्षण सूर्य अस्त होता है। पृथ्वी घूम रही है। कहीं न कहीं सूर्य उधर उग रहा है, उदय हो रहा है और कहीं अस्त हो रहा है। कहीं उदय हो रहा है, कहीं अस्त हो रहा है। कहीं उदय हो रहा है, कहीं अस्त हो रहा है। कहीं उदय हो रहा है, कहीं अस्त हो रहा है। परंतु तुम्हारे को क्या है ? ‘‘ओह! अब सबेरा हो गया!’’ कहीं रात हो रही है, कहीं दिन हो रहा है। ये सारा इस पृथ्वी पर सब समय होता रहता है। कभी ऐसा समय नहीं है कि ऐसा नहीं होता है। सूर्य कभी छिपता नहीं है। सूर्य कभी उठता नहीं है। ये तुम सिर्फ देखते हो तो कहते हो, ‘‘अब सूर्य उदय हो गया है!’’ नहीं, सूर्य तो हमेशा कहीं उदय हो रहा है, कहीं अस्त हो रहा है। और जहां मनुष्य है, वो ऊपर की तरफ देखता है, कहता है — ‘‘अब रात हो गयी! अब दिन हो गया! अब उदय हो गया, अब अस्त हो गया।’’ परंतु ये तो सब जगह हो रहा है। एक जगह की बात नहीं है। सब जगह हो रहा है! हमेशा हो रहा है। इसी प्रकार तुम्हारे जीवन में जो भी हो रहा है, तुम उसी चीज को देखते हो, उसी चीज को पहचानते हो और उसी के आधार पर तुम जीना चाहते हो! परंतु सोचो, क्या हो रहा है ?

दुःख क्या है ? दुःख क्या है ? दुःख तुम्हारे अंदर है। सुख क्या है ? सुख तुम्हारे अंदर है। दुःख का स्रोत तुमसे बाहर हो सकता है, पर दुःख तुम्हारे अंदर है। सुख का स्रोत तुमसे बाहर हो सकता है, पर सुख तुम्हारे अंदर है।

एक दिन सचमुच में मैं बहुत परेशान था! परेशान था — क्योंकि मेरे को ऐसी खबर मिली, ऐसी खबर मिली कि उस खबर ने मेरे को परेशान कर दिया। अब मैं अपने ऑफिस में बैठा हूं और परेशान हूं। और वो सारी बातें — ये कैसे हो गया ? ये तो नहीं होना चाहिए था। ये…! मन है! ब्रूम्पऽऽऽ! अपनी बैण्ड बजाने लगा। मैंने कहा — ठीक है! जो भी खबर मेरे को मिली! मिली! इसके बारे में तो मैं कुछ कर नहीं सकता। ये तो हो गया! परंतु ये परेशानी जो मैं महसूस कर रहा हूं, क्या मैं महसूस करना चाहता हूं या नहीं ? ये मैंने अपने आपसे कहा। परेशान होना चाहता है तू या नहीं ? तो अंदर से आवाज आयी — क्या आवाज आयी होगी ?

श्रोतागण: नहीं!

प्रेम रावत:

तुम वहां नहीं थे तो तुमको कैसे मालूम ? वहां नहीं भी थे, फिर भी तुमको मालूम है, क्योंकि तुम भी मनुष्य हो, मैं भी मनुष्य हूं। परेशान तुम भी नहीं होना चाहते, मैं भी नहीं होना चाहता। तो वही बात हुई। ठीक उसी तरीके से मैंने कहा — ‘‘हां तो भाई! परेशान होने की क्या जरूरत है ? काहे के लिए परेशान होता है ?’’

सुख भी मेरे अंदर है, दुःख भी मेरे अंदर है। सुख भी मेरे अंदर है, दुःख भी मेरे अंदर है। परंतु मैं अपना संबंध दुःख से नहीं, सुख से बनाना चाहता हूं। मैं अपना संबंध अंधेरे से नहीं, प्रकाश से बनाना चाहता हूं। मैं अपना संबंध मौत से नहीं, जीवन से बनाना चाहता हूं।

हम तो अपने जीवन में मौत को लिए फिरते हैं। जीवन का हमको पता नहीं। स्वांस की क़दर नहीं, जिसके बिना जीवन नहीं।

स्वांस को क्या जानते हैं हम ? जिस दिन निकलने लगता है, उस दिन हमको याद आती है — स्वांस गया, अरे बाप रे! कहां गया ? बिना स्वांस के तीन मिनट से ज्यादा — चाहे तुम कितने भी बलवान हो, कितनी भी कसरत करते हो, तुम्हारी मसल्स यहां तक भी हों — तीन मिनट जो स्वांस नहीं चला, तो मसल्स भी कुछ नहीं कर पाएंगी। कसरत भी कुछ नहीं कर पाएगी। कितनी जरूरी चीज है ये! अगर तुम स्वांस नहीं ले पाए तो तुम मर जाओगे और तुम्हारे डेथ सर्टिफिकेट में क्या लिखा जाएगा ? मौत हुई, एफेक्सीएशन से। स्वांस न लेने के कारण से मौत हुई! है न ? यही तो लिखा जाएगा न, डेथ सर्टिफिकेट पर ? ये एक मेडिकल कन्डीशन है। ये रैकग्नाइज्ड — इसको मेडिकल साइन्स, डॉक्टर लोग रैकग्नाइज़ करते हैं, इसको जानते हैं कि अगर आदमी स्वांस न ले तो वो मर जाएगा। ठीक है न ?

अच्छा, कभी किसी को टीवी न देखने से मरना जो है, कभी सुना है इसके बारे में ? क्योंकि इसके लिए कोई मेडिकल टर्म नहीं है कि — ये आदमी टीवी न देखने के कारण मर गया। या ये आदमी बस की इंतजार करते-करते मर गया। या ये आदमी अपनी गर्ल-फ्रैण्ड के पीछे भागता-भागता मर गया। या ये लड़की अपने ब्वाय-फ्रैण्ड के पीछे भागते-भागते मर गयी। नहीं। ये कोई मेडिकल इस पर नाम नहीं है इसका। परंतु अगर तुमको खाना न मिले, तीन दिन पानी न मिले, तीन हफ्ते खाना न मिले और तीन मिनट हवा न मिले, तुम्हारी हवा निकल जाएगी। तो क्या समझे ?

तो जो मैं कहने के लिए मैं यहां आया हूं, वो खुशखबरी है! क्यों खुशखबरी है कि — शांति आपके अंदर है, सुख आपके अंदर है। क्यों ? जिस चीज की तुमको तलाश है, वो तुम्हारे ही अंदर है। वो ब्रह्म, वो तुम्हारे ही अंदर है। वो भगवान, जिसको तुम बाहर खोजते हो, वो तुम्हारे ही अंदर है। जबतक तुम जीवित हो, तुम्हारे ही अंदर है और उसी की वजह से तुम्हारे अंदर परमानन्द बैठा हुआ है, परमानन्द है! और जहां परमानन्द है, वहां अपार सुख है, अपार शांति है और उसको न जानना ही अपार दुःख है।

मनुष्य के लिए दुःख की क्या परिभाषा है ? सुख में न होना ही मनुष्य के लिए दुःख है। कारण की वजह से नहीं — अगर तुम सुख में नहीं हो तो तुम दुखी हो! चाहे तुम उसको जानते हो या नहीं जानते हो।

ज्ञानी में और अज्ञानी में क्या अंतर है ? यह नहीं है कि ज्ञानी का सिर बड़ा है। यह नहीं है कि ज्ञानी के कंधे बड़े हैं। यह नहीं है कि ज्ञानी का कद बड़ा है। यह नहीं है कि ज्ञानी का वजन कम है। ना! ज्ञानी और अज्ञानी में अंतर यह है कि ज्ञानी जानता है, अज्ञानी नहीं जानता है। और जिसको जानना है, जिसको जानने से वो ज्ञानी बन सकता है और जिसको न जानने से वो अज्ञानी है, वो चीज भी तुम्हारे ही अंदर है। उसको पहचानो, उसको जानो! और जब तुम जान जाओगे, तुम दुःख से बच जाओगे — ये है मेरा संदेश!

लोग सोचते हैं, लोग सोचते हैं कि इस पृथ्वी पर शांति कैसे होगी ? ना, ना, ना, ना, ना, ना! यह गलत सवाल है। क्यों ? सबसे पहले तुममें शांति होनी चाहिए। सबसे पहले तुममें शांति होनी चाहिए। और तब जब तुममें शांति होगी, तब तुम इस संसार से शांति बनाओ! और जब तुम इस संसार से शांति बनाओगे, तब जाकर के इस संसार के अंदर शांति होगी। क्योंकि इस संसार में अशांति का कारण तुम हीं हो। यह अच्छी खबर नहीं है, परंतु मैं क्या करूं ? जब हो ही तुम कारण, तो मैं कैसे कहूं कि तुम नहीं हो। अशांति का कारण मनुष्य है।

शेर को शिकार करने की जरूरत है — है कि नहीं ? शेर को शिकार करने की जरूरत है, परंतु अगर शेर का पेट भरा हुआ है तो वो शिकार नहीं करेगा। मनुष्य ही ऐसा जानवर है कि पेट भरा हुआ है, फिर भी शिकार करेगा। शेर नहीं करेगा ये। शेर को तो शिकार करने की जरूरत है और यहां दुकानें भरी पड़ी हैं खाने के लिए, फिर भी जा रहा है। ऐसा शेर तुमको कहीं नहीं मिलेगा। ऐसा शेर तुमको कहीं नहीं मिलेगा। मच्छर भी — मच्छर भी नहीं काटेगा, अगर उसने पहले काट लिया किसी को, उसका पेट भरा हुआ है। पहले उसको पचाएगा, तब बाद में काटेगा किसी को अगर भूख लगेगी। बिना भूख के वो मच्छर भी नहीं काटता है।

पर मनुष्य है कि बिना भूख के भी शिकार करता है, बिना किसी कारण के काटता है और धर्म क्या है, मनुष्य भूल गया है। और जो कुछ भी मनुष्य करता है, जिसको नहीं मालूम कि असली धर्म क्या है, वही अधर्म है। और इस संसार के अंदर जो अशांति फैली हुई है, वो अधर्म के कारण फैली हुई है। अधर्म जो मनुष्य करता है। क्योंकि उसको यही नहीं मालूम कि वो कौन है ? उसको ये नहीं मालूम कि वो शेर है या बकरी ? कौन है वो ? उसको नहीं मालूम! और अधर्म होता है।

सबसे पहला धर्म क्या है ? विचार करो! उससे पहले कि मनुष्य ने देवी-देवताओं को स्वीकार करना शुरू किया, सबसे पहला धर्म जो मनुष्य ने बनाया, वो धर्म है — दया होनी चाहिए। उदारता होनी चाहिए। इसीलिए तो इन सब चीजों का वर्णन हर एक धार्मिक धर्म में मिलता है। चाहे वो हिन्दू हो, चाहे वो मुसलमान हो, चाहे वो सिख हो, चाहे वो ईसाई हो, चाहे वो बुद्धिष्ट हो! किसी भी धर्म का हो, सभी धर्मों में ये सारी चीजें बराबर हैं। उदारता होनी चाहिए, दया होनी चाहिए, क्षमता होनी चाहिए, क्षमा होनी चाहिए! ये है तुम्हारा धर्म! और जब तुम क्षमा नहीं करते हो, जब तुम दया नहीं करते हो, तुम अधर्म करते हो! और इस अधर्म — नर्क की बात छोड़ो! नर्क की बात छोड़ो! क्यों छोड़ो ? क्योंकि अधर्म के कारण मनुष्य ने नर्क यहीं बना दिया है। मरने की क्या जरूरत है ? नर्क यहीं बना हुआ है! जहां स्वर्ग होना चाहिए, वहां मनुष्य ने नर्क बना दिया है।

असली धर्म को पकड़ो! और वो असली धर्म है — मानवता का धर्म! मानवता का धर्म! जिसमें दया है, उदारता है! और जब उसको पकड़ोगे, अपने आपको पहचानोगे कि तुम कौन हो ? और जब तुम अपने आपको जानोगे, कौन हो ? तो तुम जानोगे कि सुख भी तुम्हारे अंदर है, परमात्मा भी तुम्हारे अंदर है, शांति भी तुम्हारे अंदर है, ज्ञान भी तुम्हारे अंदर है। और यह भी जानोगे कि अज्ञानता भी तुम्हारे अंदर है। अगर तुम जानोगे कि अज्ञानता तुम्हारे अंदर है — नम्र रहो! नम्र रहो! नम्र! नम्रता को स्वीकार करो! क्यों ? अज्ञानता तुम्हारे अंदर है। इसलिए सिर थोड़ा बचा के। नहीं तो जब अज्ञानता की तलवार चलेगी और तुम्हारा — तुम्हारी गरदन होगी ज्यादा ऊपर तो तुरंत जाके तुम्हारी गरदन पर पड़ेगी।

तुम क्या समझते हो ? तुम्हारी अज्ञानता का सबसे बड़ा शिकार कौन बनता है ? कोई और ? तुम्हीं बनते हो। तुम जब गुस्सा करते हो, तुम समझते हो कि वो तुम्हारे गुस्से का शिकार बन रहा है ? नहीं भाई! सबसे पहले तुम्हारे गुस्से का शिकार तुम बनते हो। ब्लड-प्रेशर तुम्हारा बढ़ता है। उसका बढ़े, न बढ़े! दूसरे का बढ़े, न बढ़े, गला तुम्हारा दर्द करेगा। ब्लड-प्रेशर तुम्हारा बढ़ेगा! लाल तुम होगे, दुःख तुमको होगा! तो गुस्से का सबसे पहला शिकार तो हो तुम! उसके बाद दूसरा हो या न हो। पर ये तुमको नहीं मालूम!

जब तुम गुस्सा करते हो — अब गुस्सा भी तो ऐसी चीज है कि जब आता है तो दरवाजे पर खटखटाता तो है नहीं कि ‘‘मैं आ जाऊं ?’’ कहां से आया, कब आया, पता ही नहीं! क्योंकि शब्द क्या है — गुस्सा आया! यही है न ? गुस्सा आया! गुस्सा आता है। ये गलत है। गुस्सा आता नहीं है। गुस्सा तो पहले से ही अंदर है। गुस्सा तो पहले से ही अंदर है! तुम समझते हो, तुमने दरवाजे की चिटकनी बंद कर दी, अब कोई अंदर नहीं आयेगा ? बहुत सारे अंदर आ गये हैं। तुम नहीं जानते हो उनको, पर वो बहुत ही आ गये हैं अंदर। तुम्हारा गुस्सा भी तुम्हारे साथ चलता है। तुम बस में एक सीट की टिकट लेते हो, अरे! तुम्हारा गुस्सा भी तुम्हारे साथ चलता है। तुम्हारी दया भी तुम्हारे साथ चलती है। तुम्हारा ज्ञान भी तुम्हारे साथ चलता है, तुम्हारा अज्ञान भी तुम्हारे साथ चलता है। ये सारी चीजें तो जहां भी तुम जाते हो, तुम्हारे साथ हैं। कोई घर से पैक्ड थोड़े ही करता है ? ये थोड़े ही है कि घर छोड़ दिया अगर तुमने दो दिन के लिए या तीन दिन के लिए तो गुस्सा भी तुम्हारा घर पर ही रह गया या भूल गये पैक करना। ना! जहां भी तुम जाओ, गुस्सा साथ में है। तो गुस्सा आता नहीं है, दुःख आता नहीं है। दुःख पहले से ही वहां है। पर इस बात को समझो! इस बात को जानो!

क्योंकि अगर तुम इन चीजों से ऊपर उठना चाहते हो तो तुम उठ सकते हो। यह तुम पर निर्भर करता है। जिस शांति की मैं बात कर रहा हूं, इसीलिए खुशखबरी है कि — वो शांति पहले से ही तुम्हारे अंदर है। पर शांति का अनुभव कैसे कर पाओगे, अगर दिन-रात तुम अधर्म करते रहते हो ? अधर्म मत करो! धर्म, जो तुम्हारा धर्म है, जो मानवता का धर्म है — देवी-देवताओं के धर्म की बात नहीं कर रहा हूं। ये तो तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है। मैं बात कर रहा हूं, तुम्हारा! जो मानव होने के नाते जो तुम्हारा धर्म है, इसको निभाना सीखो! और जिस दिन तुम इसको निभाने लगोगे, तुम्हारे जीवन के अंदर भी आनंद ही आनंद होगा। ये आज की बात नहीं है। ये आज की बात नहीं है। ये बात तो पता नहीं कितने समय से चली आ रही है। तो जानो, पहचानो और अपने जीवन को सफल करो।

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